पैसे लेने नहीं, देने की सोच ने मन्जीत कुमारी को बनाया आत्मनिर्भर
एक महिला क्यों किसी पर आत्मनिर्भर रहे। क्यों ना वह परिवार से पैसे मांगने की बजाय देने के लायक बने। इसी सोच ने मात्र 10वीं पास मन्जीत कुमारी को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। खुद की प्रेरणा से आज वह आत्मनिर्भर बनकर दूसरी महिलाओं को भी आगे बढ़ा रही हैं। उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत कर रही है।
गांव नाहरपुर मानेसर की रहने वाली मन्जीत कुमारी बताती हैं कि उनके पिता जी और दादा जी बीमार रहते थे। दादी का निधन हो चुका था। दादा जी अपने सामने उनकी शादी कराना चाहते थे, इसलिए 10वीं कक्षा पास करते ही 17 साल की उम्र में उनकी शादी ख्वासपुर गांव निवासी बलजीत यादव के साथ हो गई। ससुराल में भी हालात कुछ ज्यादा बढ़िया नहीं थे।
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आर्थिक तंगी वहां नजर आई। वे कहती हैं कि उसकी शुरू से ही सोच यही रही कि वह किसी पर भी बोझ बनकर नहीं रहेगी। यानी वह खुद ऐसा काम करके जिससे परिवार की आर्थिक तंगी दूर हो और परिवार से पैसे मांगने की बजाय वह देने वाली बने। आगे पढ़ने का मन था, लेकिन हालात इसकी इजाजत नहीं दे रहे थे। उसने सोचा कि भले ही वह कम पढ़ी है, लेकिन उसे खाली नहीं बैठना।
आगे बढ़ने की शुरूआत मन्जीत कुमारी ने हरियाणा राज्य ग्रामीण आजिविका मिशन से जुड़कर की। मिशन में काम करने वाली दीप्ति ढींढसा की प्रेरणा से उन्होंने नारी शक्ति महिला स्वयं सहायता समूह बनाया। जिसके बैनर तले उन्होंने अपना और गांव की महिलाओं का विकास शुरू किया। मात्र 100 रुपये से शुरूआत करके तीन-चार महीने बाद 200-200 रुपये इकट्ठे करके समूह में फंड जुटाया। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र शिकोहपुर से सोया नट, अचार, नमकीन, बाजरे के लड्डू, आंवला, कैंडी, आंवला अचार आदि बनाने का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के बाद उन्हें केंद्र से ही पैकिंग की मशीन भी दी गई।
यहां से उनकी प्रोफेशनल महिला के रूप में नई जिंदगी की शुरूआत हुई।
गरीब तबके की महिलाओं का किया उत्थान
मन्जीत कुमारी कहती हैं कि मेरी तरह से बाकी महिलाएं भी आगे बढ़ें, आत्मनिर्भर बनें, इसलिए उन्होंने दूसरी महिलाओं को भी प्रशिक्षण दिलाया। इसमें वे महिलाएं शामिल की, जिन्हें कोई पैसे उधार तक नहीं देता था। अगर कोई देता था तो उनसे ज्यादा ब्याज वसूलता था। बीपीएल परिवारों की ऐसी महिलाओं को उन्होंने कदम-कदम पर साथ दिया और मुख्यधारा में लेकर आर्इं।
200 महिलाओं को दिखाया बैंक का रास्ता
मन्जीत कुमारी कहती हैं कि पैसे ही हर किसी को दिक्कत रहती है। हम भले ही किसी को पैसा ना दे पाएं, लेकिन उसे रोजगार के लायक बनाकर उसका जीवन बदल सकते हैं। वे कहती हैं कि उन्हें भी जब जरूरत होती तो पति, सास, ससुर या फिर मां-बाप से पैसे मांगने पड़ते थे। जब सोचा कि कोई महिला किसी से पैसे मांगने की बजाय पैसे देने वाली क्यों ना बने। गृहस्थ जीवन में कभी बैंक का मुंह तक नहीं देखा था, लेकिन आज मन्जीत कुमारी ने अपने गांव की करीब 200 महिलाओं को हरियाणा ग्रामीण बैंक से जोड़ दिया है। इसके लिए उन्हें बैंक की ओर से सम्मानित भी किया गया।
लोगों ने मनोबल गिराने के भी किए प्रयास
अपने इस काम को लेकर मन्जीत कुमारी को गांव से भी बहुत कुछ सुनने को मिला। लोगों ने उनका मनोबल गिराने के भी प्रयास किए हैं। जब वह घर से निकलती तो लोग कहते थे इनको कुछ नहीं मिलना। ऐसे ही बैग उठाकर चले देती है और शाम को आ जाएगी। मन्जीत कुमारी ने गांव वालों की ऐसी बोलियों को ही अपना मजबूत हथियार बनाया। हां, उन्होंने यह बातें जब घर पर बताई तो परिवार को बुरा लगता। लेकिन उसने सोचा कि जब कदम बढ़ा दिया है तो अब कुछ करके ही दिखाना है। उसके काम में पति, सास, ससुर व अन्य परिवारजनों का पूरा सहयोग मिला।
घर पर ही बनाई वर्कशॉप
मन्जीत कुमारी ने ख्वासपुर गांव में अपने घर पर ही सभी प्रोडक्ट बनाने के लिए वर्कशॉप बना रखी है। वह अचार, सोया नट, बाजरे के लड्डू, बाजरे की नमकीन, आंवल के लड्डू, मुरब्बा, अचार, गूंद के लड्डू व सीजन अनुसार मिठाई बनाती हैं। घर पर सारा काम होने के कारण बच्चों व परिवार की संभाल हो जाती है और अपना काम भी कर लेती हैं। उनके दो बच्चे एक बेटी (10) व एक बेटा (4) है। उनके पति बलजीत यादव खेती करते हैं, लेकिन खेती में अब कोई खास बचत नहीं होती। बच्चों की फीस, घर के खर्च भी नहीं चलते। यह भी मन्जीत का स्वरोजगार के क्षेत्र में आने का बड़ा कारण है। उसकी वजह से अब गांव की गरीब महिलाओं को भी फायदा हुआ है। नारी शक्ति महिला उनके गु्रप का नाम है।
महिलाओं को गांव में ही मिला रोजगार
मन्जीत कुमारी के प्रयासों से ही अब गांव की काफी महिलाओं को गांव में ही रोजगार मिल चका है। कोई महिला बुटिक चला रही है तो कोई ब्यूटी पार्लर तो किसी की कपड़े की दुकान है। अपने गांव में ही 15 स्वयं सहायता गु्रप मन्जीत कुमारी ने बना दिए हैं। गांव की लग•ाग हर महिला को उन्होंने कोई ना कोई काम जरूर दिया है। मन्जीत कुमार पटौदी से सुशीला देवी को •ाी धन्यवाद देती हैं, जो उनकी रिपोर्ट तैयार करती हैं।