सबसे बड़ी दौलत क्या?
रियासत काफी छोटी थी लेकिन वहां के खलीफा महमूद की कर्त्तव्य परायणता ने उसे धन-धान्य से समृद्ध कर रखा था। एक रात जब वह सोने जा रहा था, तो उसने अलमारी के पीछे एक व्यक्ति को छिपे देखा।
महमूद ने उस व्यक्ति को पकड़ कर बाहर खींचा। वह कोई चोर था। पकड़े जाने के कारण वह थर-थर कांप रहा था। महमूद ने उसे अपने पास बिठाया और कहा-‘घबराओ मत। मेरे रहते तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
जो मैं पूछता हूं, उसका सही-सही जवाब दो। क्या तुम यहां चोरी करने आए थे।’ ‘जी हां हुजूर, मैं इसी बदनीयत से यहां आया था।’ चोर ने कहा। ‘कुछ हाथ लगा?’ ‘जी नहीं, मैं अभी-अभी ही यहां आया हूं।’ महमूद ने चोर को गौर से देखा। वह किसी अच्छे घराने का शरीफ युवक लगता था। महमूद ने सवाल किया-‘तुम किसी अच्छे घराने के लगते हो। इस गंदे काम को कब से करना शुरू किया?’
खलीफा के इस हमदर्दी पूर्ण व्यवहार से चोर रो पड़ा। रोते हुए उसने जो दास्तान सुनायी, वह बेहद दर्दनाक थी। उसके अनुसार उसका पिता बगदाद का व्यापारी था। उसके पास ढेरों संपत्ति थी किंतु उनके मरने के बाद उनके दोस्तों ने उनकी सारी संपत्ति हड़प ली और उसे तथा उसकी मां को बेघर कर दिया। अपनी बीमार मां के लिए वह पैसों का बन्दोबस्त करना चाहता था जिसके लिए मजबूरन उसे चोरी का रास्ता ही अख्तियार करना पड़ा और पहली बार में ही वह पकड़ा गया।
खलीफा को चोर की बताई बातें सच लगी। खलीफा चोर के पिता को निजी तौर पर जानता था। सारी कहानी सुनकर उसका दिल भर आया। उसने चोरी करने आए नौजवान की पीठ सहलाते हुए कहा – ‘बेटे् मालिक अपने बन्दों को कभी-कभी मुसीबत में डाल कर उनका इम्तहान लेता है। हमें मुसीबतों में भी नेकनीयती से ही काम लेना चाहिए। अल्लाह बड़ा कारसाज है। उसके रहम पर भरोसा रखो और मेहनत करते हुए ईमान के रास्ते पर चलो।’ इतना कहकर खलीफा ने उस नौजवान को अपनी तिजोरी से तीन सौ दीनारें निकालकर दे दीं।
तीन सौ दीनारे उस नौजवान के लिए काफी थी। मां का इलाज कम में ही हो गया। वह शेष दीनारें खलीफा को लौटाने आया। खलीफा ने रकम लेने से इंकार करते हुए कहा-‘बेटे, इस रकम से तुम फलों का व्यापार शुरू कर दो। इससे जो आमदनी होगी, उससे तुम अपना और मां का पेट भरना।’ नौजवान को महमूद का यह विचार अच्छा लगा। उसने फलों की दुकान खोल ली। धीरे-धीरे दुकान चल पड़ी। कुछ दिनों बाद उसने फलों का धन्धा छोड़कर सूखे मेवों का व्यापार शुरू कर दिया। इसी बीच उसकी मां मर गयी।
कारोबार में तरक्की हो जाने के कारण वह पास की एक बड़ी रियासत में रहने लगा। इस घटना को चौदह वर्ष बीत गए। खलीफा महमूद बूढ़ा हो चला था। उसके लड़के नहीं थे, जो काम संभालते। धीरे-धीरे पूरी रियासत उसके हाथ से निकल गयी। हवेली और कुछ जमा पूंजी के सिवाय उसके पास कुछ नहीं बचा था। दूसरी ओर चोरी करने आया वह नौजवान मुल्क का बहुत बड़ा व्यापारी बन गया। लोग उसे सेठ हाशिम अली के नाम से जानने लगे थे।
खलीफा की एक बेटी थी जो अब विवाह योग्य हो गई थी। वह अपनी बेटी फातिमा के विवाह के लिए धन नहीं जुटा पा रहा था। बड़ी मुश्किल से उसने बीस हजार दीनारे इकट्ठा की थीं लेकिन इतने में विवाह नहीं हो पा रहा था। अपनी चिंता का कोई हल न देखकर बूढेÞ महमूद ने खानदानी हीरा बेचने का निर्णय किया और लाठी टेकता हुआ जैसे ही हवेली के मुख्य दरवाजे पर पहुंचा, उसके सामने एक आकर्षक युवक आकर खड़ा हो गया।
महमूद ने आंखें मिचमिचाते हुए पूछा-‘कौन हो मियां?’ ‘मैं आपसे ही मिलने आया हूं चचा जान। आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं आपकी हवेली का चोर …. आपका हाशिम हूं।’ ‘अरे हाशिम, तुम यहां? कैसे आना हुआ बेटे? तुम तो बहुत बड़े आदमी बन गये हो।’ कहते हुए महमूद की आंखें छलक पड़ीं।
‘चचा, मुझे मालूम हुआ है कि फातिमा बहन की शादी हो रही है। उसी के लिए कुछ उपहार लाया हूं।’ इतना कहकर हाशिम ने नौकरों को इशारा किया। हवेली का आंगन बहुमूल्य उपहारों से भर गया। महमूद जो खुशी के आंसू नहीं रोक पा रहा था, बोला – ‘‘अरे बेटे यह सब इतना….?’’
हाशिम ने महमूद को रोकते हुए कहा-‘‘यह सब आपके द्वारा दिए गए अच्छे विचार का फल है। आपकी सलाह मानकर मेैं मेहनत और ईमान के रास्ते पर चला और आज इस मुकाम पर हूं।’’ ‘‘ठीक कहते हो बेटे, अच्छे विचारों से बढ़कर इस दुनिया में कुछ नहीं है। जो इन पर अमल करते हैं, उनको दुनिया की दौलत से लेकर रूहानी सुकुन तक सब हासिल हो जाता है। अल्लाह के नूर का नजारा भी उनके लिए मुश्किल नहीं होता।’’ अपनी बात पूरी करते हुए महमूद ने हाशिम को गले से लगा लिया। फातिमा एक कोने में खड़ी सोच रही थी-‘विचारों की दौलत सबसे बड़ी दौलत है।’’
-आरती रानी