Whatever you like it doesn't have to be right! -sachi shiksha hindi

जो अच्छा लगे, वो सही हो ये जरूरी नहीं!

चोर जब चोरी करने में कामयाब हो जाता है तो उसे बहुत अच्छा लगता है। भ्रष्टाचारी को जनता के पैसे लूटने में आनंद आता है। दबंग को कमजोरों को सताते हुए बहुत खुशी होती है। हमारे बीच कुछ लोग हमेशा यह तर्क देते हैं कि मुझे जो अच्छा लगता है मैं वही करता हॅू या फिर कुछ लोग ये भी तर्क देते हैं कि सामने वाला मेरे लिए अच्छा है न, बस मेरे लिए यही काफी है। इस संसार में जो अच्छा लगे वो सही ही हो इसकी कोई गारंटी नही है।

आपको ठग कर खुश होने वाले को आप क्या कहेंगे? जो व्यवहार से आपके साथ चीटिंग करता हो और खुशी महसूस करता हो, उसे क्या नाम देंगे आप? कुछ लोग अहिंसक होते हैं, मांस आदि का सेवन इसलिए नहीं करते हैं कि इससे जीव हिंसा होती है। ठीक इसके विपरीत कुछ लोग पशुओं की बलि देकर उत्सव मनाते हैं।

एक के लिए यही परिस्थिति जीव हिंसा के कारण वेदना वाला होती हैं, वहीं दूसरी ओर इसी परिस्थति में कुछ लोग आनंद विभोर हो जाते है, इसे क्या कहेंगे आप? परिवार में कुछ लोग अपनों का हक मार कर खुशी महसूस करते हैं, वहीं जिसके साथ हकमारी होती है, वो संताप में जीता है। क्या ये सही है? हकमारी करने वाले को खुशी मिलती है, क्या वो सही है?

अगर आपके साथ हकमारी हो और सामने वाला इस पर जश्न मनाए, इसे क्या कहेंगे? क्या आपको खुशी होगी? नहीं होगी, बिल्कुल नहीं होगी। ये सही है कि आप हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां चिंतन के लिए कहीं कोई जगह नहीं है, अगर कुछ है तो शिकायत, तंज और उलाहना। हम कभी अपने भीतर नहीं झांकना चाहते हैं और चाहते हैं कि दूसरे अपने भीतर झांकें, ऐसा कभी संभव है? असल मसला ये है कि हम बिना विचारे जीवन जीना चाहते हैं।

हमारे पास शिकायत और उलाहने के लिए तो समय है लेकिन चिंतन के लिए समय नही है। अध्ययन हम नहीं करना चाहते। बस लौकिक कुछ मान्यताओं को पकड़ लेते हैं और उसे ही जीवन का आदर्श मान कर जीते हैं, किसी महापुरुष का जीवन हम नहीं जीना चाहते, ज्ञान अध्यात्म अपनाना नहीं चाहते और जीवन में सब कुछ बेहतर चाहते हैं। ऐसा कभी संभव नहीं हो सकता। जो जीवन हम जीना नहीं चाहते हैं। उस जीवन का आदर्श हमारे जीवन में कभी नहीं आएगा? हमारा लक्ष्य पश्चिम में हैं और पूरब की यात्र कर रहे हों तो हमें मंजिल कभी मिलेगी?

कल्पना कीजिए एक व्यक्ति आॅखों पर पटटी बांधे रास्ते पर चल रहा है तो उसकी क्या गति होगी? बार-बार समझाने के बाद भी वो इस बात से इंकार करे कि वे आंखों से पटटी नहीं हटायेगा, तो इस संसार में उसे कौन बचा सकता है? ऐसे व्यक्ति खुद के लिए तो खतरनाक हो ही जाते हैं दूसरे लोगो के लिए भी खतरा लेकर आते हैैैं। बहुत कुछ हमारी गति भी यही है, हम चिंतन करने को तैयार नहीं हैं। ज्ञान-अध्यात्म को समझना नहीं चाहते हैं। अब ऐसे में हमारा जीवन आदर्श कैसे हो सकता है? भाग्य से इन्सान को कुछ मिल भी जाता है तो वो प्रगति का नहीं विनाश का कारण बन जाता है। क्या आप ऐसे व्यक्तियों को नहीं जानते जिन्हें थोड़ी प्रगति हांसिल हुई और वो अहंकारी हो गए?

इसलिए जरूरी है कि हम चिंतन करें, हमारे जीने के तरीके से किसी को किसी भी तरह से परेशानी तो नहीं है। तत्वज्ञानी ए एम पटेल जिसे दुनिया दादा भगवान के नाम से जानती है, कहते है कि किसी को दु:ख देकर हम कभी सुखी नहीं हो सकते है। वो ये भी कहते हैं कि सर्व धर्मो का सार यही है कि हमारे जीने के तरीके से किसी को किसी भी प्रकार से कष्ट न हो। दादा ने इसके लिए प्रतिक्र मण का सिद्वांत दिया है।

इसलिए हमें यह सदा स्मरण रखना होगा कि हमारी खुशी किसी के दु:ख का कारण तो नही है? बस यही स्मरण जीवन-भर रह जाए तो जीवन का रूप आनन्द स्वरूप हो जाएगा। तकलीफ के समय तो हम बहुत गहराई से चिंतन करते है लेकिन सुख के समय कुतर्क करने लगते हैं, यहां जागृति बहुत जरूरी है यानी ये जरूरी नहीें कि जो अच्छा लगे हो सही ही हो!
-सूरज रजक

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