child starts asking questions - sachi shiksha hindi

जब बच्चा सवाल पूछने लगे आयु बढ़ने के साथ-साथ बच्चे के मानसिक, शारीरिक आकार व ढांचे में भी परिवर्तन आने लगते हैं। विकसित मनो-मस्तिष्क का स्वामी छोटा बच्चा पग-पग पर अपने माता-पिता व अभिभावकों से प्रश्न पूछने लगता है। हर नयी वस्तु व घटना उसके जीवन में एक नवीन अनुभव व कौतूहल होती है।

बच्चा यह जानने का इच्छुक होता है कि आखिरकार यह क्या है? ऐसा क्यों है? ऐसे क्यूं होता है? यह कैसे चलता है, कैसे घूमता है, कैसे दौड़ता है आदि अनेकानेक प्रश्न नन्हे से बच्चे की मस्तिष्क रूपी पिटारी में भरे होते हैं। ऐसी स्थिति में माता-पिता व अभिभावकों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, क्योंकि बच्चे के इन सीधे-सादे प्रश्नों का उत्तर उन्हें ही देना होता है।

बच्चे के प्रश्न सरल व मासूम होते हैं जिनका शायद हमारी अवस्था के हिसाब से कोई महत्व नहीं होता, लेकिन बच्चे के लिए वो बहुत बड़े ज्ञान का प्रश्न होता है। ऐसा भी नहीं है कि बच्चे के सवाल हमेशा अटपटे व बचकाने ही होते हैं। आखिरकार कितने माता-पिता व अभिभावक इतने सक्षम हैं जो एक छोटे से बच्चे को यह बता पाने में सक्षम हैं कि आसमान का रंग नीला कैसे होता है, बादल कहां से आते हैं, वर्षा कैसे होती है, दूध का रंग सफेद क्यों होता है, फूलों में रंग कौन भरता है।

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पंखा कैसे चलता है, बिजली क्या होती है, बिजली दिखाई क्यों नहीं देती आदि इतने सहज व मासूम सवाल हैं जो किसी भी पढ़े-लिखे आदमी का सिर घुमा सकते हैं। अधिकतर मामलों में जब बच्चा माता-पिता व अभिभावकों से ऐसे प्रश्न पूछने लगता है तो हम उसका ध्यान बंटाने की कोशिश करते हैं या उलटा-सीधा उत्तर देकर उसकी बाल सुलभ जिज्ञासा का शमन करने का प्रयास करते हैं लेकिन सही मायनों में हम बच्चे को आधा-अधूरा उत्तर या अधकचरी जानकारी देकर बच्चे को दिग्भ्रमित तो करते ही हैं, वहीं उसे सही उत्तर न देकर उसके प्रश्न पूछने की जिज्ञासा व उत्कंठा को भी निरूत्साहित करते हैं।

समय के साथ जब बच्चा विद्यालय जाने लगता है तो वहां उसका सामाजिक दायरा बढ़ता है। विभिन्न पृष्ठभूमि वाले बालक बालिकाओं से उसका संपर्क स्थापित होता है। विभिन्न धर्म-जाति, बोली-भाषा, खान-पान के अनेक बच्चों को देखकर उसे प्रसन्नता तो प्राप्त होती ही है, वहीं जिज्ञासाएं भी मनोमस्तिष्क में उमड़ने-घुमडने लगती हैं। दिन भर की गतिविधियों को देखने समझने व सुनने के उपरांत जब बच्चा अनुतरित प्रश्नों व जिज्ञासाआें के शमन हेतु माता-पिता व अभिभावकों की शरण में जाता है तो हमारी भूमिका बढ़ जाती है।

बच्चे डर, संकोच व लज्जा के मारे किसी बाहरी से प्रश्न नहीं पूछते हैं क्योंकि उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान नहीं होती है। बच्चे की सारी दुनिया माता-पिता व अभिभावक में ही समाई होती है। इसलिए बच्चा जब भी कोई प्रश्न पूछे तो उसे सहज भाव से ग्रहण करना चाहिए और अपने ज्ञान के अनुसार उसे उत्तर देने का प्रयास करना चाहिए।

अगर किसी प्रश्न का उत्तर आपको मालूम न हो तो ‘बेटा, बाद में बताऊंगा’ कहकर उसके किसी अन्य प्रश्न का उत्तर दें। कभी भी भूलकर या ज्ञान दिखाने हेतु बच्चे को गलत उत्तर न दें क्योंकि जो छाप आप उस पर डालेंगे, उसका असर बच्चे के व्यक्तित्व पर ताउम्र रहता है।

बच्चे की जिज्ञासा शांत करने के लिए आप विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं की सहायता भी ले सकते हैं। आजकल बाजार में विभिन्न विषयों हेतु सैकड़ों पुस्तकें उपलब्ध हैं। इनमें बड़े रोचक तरीके से बच्चे की छोटी-छोटी जिज्ञासाओं व प्रश्नों का उत्तर दिया होता है। ऐसे में आप बिना वक्त गवाए इन पुस्तकों को क्र य कर लें।

अगर बच्चा थोड़ा बड़ा हो तो उसके लिए आप मासिक पत्र-पत्रिकाएं भी लगवा सकते हैं। इससे हर माह बच्चे को नयी व रोचक जानकारी उपलब्ध होगी और उसकी सैकड़ों जिज्ञासाएं भी शांत हो जाएंगी व नये नये विषयों की जानकारी भी प्राप्त होगी।

बच्चे का प्रश्न पूछना तो एक स्वाभाविक प्रक्रि या है। ऐसे में बच्चे के प्रश्न को सहज भाव से ही लेना चाहिए। बच्चे को प्रेमपूर्वक शिष्ट भाषा में उत्तर देना चाहिए। बच्चे के प्रश्नों के माध्यम से आप उसकी रूचियों व लगाव को भी समझ सकते हैं कि उसकी किस क्षेत्र में अधिक रूचि है और यह जानकारी बच्चे का करियर तय करने में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। -आशीष वशिष्ठ

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