Himachal Pradesh झीलों का प्रदेश हिमाचल प्रदेश
हिम के अंचल में बसा हिमाचल प्रकृति के सौंदर्य का अनमोल खजाना है। हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहलवाने का भी गौरव प्राप्त है। यहां कई स्थल ऐसे हैं जो श्रद्धालुओं व प्रकृति प्रेमियों के लिए समान रूप से आकर्षण के केंद्र हैं। इन स्थलों को हम सौंदर्य व श्रद्धा का संगम भी कह सकते हैं।
हिमाचल प्रदेश की झीलें भी ऐसे ही संगम स्थल हैं। कई पर्यटक तो हिमाचल को ‘झीलों का प्रदेश’ भी कहते हैं। वैसे तो हिमाचल प्रदेश में छोटी-बड़ी कई झीलें हैं लेकिन यहां कुछ प्रमुख झीलों का ही उल्लेख किया जा रहा है, जिन्होेंने न केवल भारत से, अपितु विदेशों से भी पर्यटकों को आकर्षित किया है।
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खजियार झील:
चंबा की पांच रमणीय झीलों में से खजियार की खूबसूरती बेमिसाल है। समुद्र तल से करीब सवा छह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित खजियार देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से घिरा करीब डेढ़ किलोमीटर लंबा और एक किलोमीटर चौड़ा मैदान है और इसी मैदान के बीचों-बीच पांच हजार वर्ग गज में फैली खूबसूरत झील है। बीस से पच्चीस फुट तक गहरी यह झील चंबा नगर के पश्चिम में बीस किलोमीटर की दूरी पर है। आजादी से पहले अंग्रेज अधिकारी इस मैदान में गोल्फ खेलने आया करते थे। लार्ड कर्जन को भी यह स्थल बहुत पसंद आया था। चंबा में डलहौजी व सुल्तानपुर की झीलें भी देखने योग्य हैं।
कमरूनाग झील:
मंडी नगर से 51 किलोमीटर दूर करसोग घाटी में स्थित यह झील समुद्र तल से नौ हजार फुट की ऊंचाई पर है। देवदार के घने जंगलों से घिरी यह झील प्रकृति प्रेमियों को अभिभूत कर देती है। इस झील तक पहुंचने का रास्ता भी बहुत सुगम है और यहां के लुभावने दृश्यों को देख पर्यटक अपनी सारी थकान भूल जाता है। झील के किनारे पहाड़ी शैली में निर्मित कमरूनाग देवता का प्राचीन मंदिर भी है जहां पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। जून महीने में यहां भव्य मेला लगता है।
डल व करेरी झील :
जिला कांगड़ा के ऐतिहासिक नगर धर्मशाला से करीब 10 किलोमीटर दूर 3 हजार फुट की ऊंचाई पर प्राकृतिक सौंदर्य से पूर्ण डल झील है। देवदार के घने पेड़ों के बीच स्थित यह झील अंडाकार है। एक किंवदंती के अनुसार इस झील के किनारे कभी भगवान शिव ने मात्र घास खा कर घोर तपस्या की थी।
झील के निकट ही द्रूवेश्वर महादेव का मंदिर भी है। उल्लेखनीय है कि घास को हिंदी में द्रूव (दूब) भी कहा जाता है। जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद राधाष्टमी को यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। डल झील के आगे करेरी नामक एक और झील स्थित है जो यहाँ के गद्दी समुदाय की आस्था की प्रतीक है। धर्मशाला व मैकलॉडगंज आने वाले पर्यटक इन झीलों को देखना नहीं भूलते।
पराशर झील:
मंडी नगर से 40 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में 9 हजार फुट की ऊंचाई पर यह झील स्थित है। इस झील के चारों ओर ऊंची-ऊंची पहाड़ियां देखने में ऐसी प्रतीत होती हैं, मानों प्रकृति ने इस झील की सुरक्षा के लिए इन पहाड़ियों की गोलाकार दीवार खड़ी कर दी हो। जन-बस्तियों से काफी दूर एकांत में स्थित इस झील के किनारे ‘पैगोड़ा शैली‘ में निर्मित महर्षि पराशर का 3 मंजिला मंदिर है। एक अनुमान के अनुसार इस झील का निर्माण 13वीं शताब्दी में तत्कालीन मंडी नरेश वाणसेन द्वारा करवाया गया था। कहा जाता है कि यहीं बैठकर महर्षि पराशर ने तपस्या की थी। इस मंदिर में की गई काष्ठकला इतनी उत्कृष्ट है कि कलाप्रेमी पर्यटक वाह-वाह किए बिना नहीं रहता। झील का सौंदर्य अवलोकन करने आए पर्यटक स्वयंमेव ही इस मंदिर में आकर नतमस्तक हो जाते हैं। इस झील के किनारे वर्ष भर कई मेले लगते हैं।
पोंग बांध झील:
हिमाचल और पंजाब की सीमाओं पर बनी पोंग बांध झील हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। 300 मीटर ऊंचे और 2.5 किलोमीटर चौड़े पौंग बांध के बनने से इसके पीछे यह झील स्वत: ही खड़ी हो गई है। इस झील की लंबाई 26 और चौड़ाई 11 किलोमीटर के करीब है। हिम से आच्छादित धौलाधार पर्वत श्रंखलाओं से घिरी यह झील सैलानियों के लिए एक बहुत ही लुभावना व मनोरम स्थल बन गई है। वाटर स्पोर्टस के शौकीनों के लिए भारत में इससे बढ़िया कोई दूसरा स्थान नहीं है। यही नहीं, यहां नौकाचालन, पानी पर स्कीइंग और कैनोइंग सिखाने का भी पर्यटक विभाग ने पूरा प्रबंध कर रखा है।
रेणुका झील:
जिला सिरमौर के ऐतिहासिक शहर नाहन से 38 किलोमीटर दूर यह झील करीब 2.5 हजार फुट की ऊंचाई पर है। हरी-भरी पहाड़ियों की गोद में स्थित यह झील 3 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में फैली है। इस झील की धार्मिक महत्ता के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार यह क्षेत्र महर्षि जमदग्नि की तपस्थली रहा है जिनकी पत्नी रेणुका के नाम पर इस झील का नाम रेणुका पड़ा। झील के निकट ही पर्यटन विभाग का एक खूबसूरत पर्यटक लॉज है। इसके अलावा रेणुका विकास बोर्ड के विश्राम गृह में भी पर्यटकों के ठहरने की सुविधा है। नौका विहार के शौकीनों के लिए पर्यटन विभाग की मोटर वोटों की भी व्यवस्था है। यहां का ‘सिंह विहार‘ भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।
रिवाल्सर झील:
मंडी से 25 किलोमीटर दूर 1350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रिवाल्सर झील 3 धर्मों का संगम स्थल है। इस झील के किनारे लोमष ऋषि व भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों के अलावा बौद्ध गुरू पद्मसंभव का एक प्राचीन गोंपा और सिक्खों के पूजनीय दसम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का गुरुद्वारा साहिब भी है। इस झील का सबसे बड़ा आकर्षण इसमें तैरते भूखंड है। पर्यटकों के लिए ये भूखंड प्रकृति के किसी अजूबे से कम नहीं। -नरेन्द्र देवांगन