A Miracle - Sachi Shiksha Hindi

सत्संगियों के अनुभव पूज्य हजूर पिता जी की रहमत

प्रेमी विजय कुमार इन्सां (विजय बंसरी वाला) सुपुत्र प्रेमी सतपाल इन्सां मेला ग्राउंड शाह सतनाम जी चौक वाली गली, सरसा (हरियाणा)

प्रेमी जी पूज्य मुर्शिद प्यारे हजूर पिता संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार दया-रहमत के उपरोक्त अनुसार प्रत्यक्ष करिश्मे का इस प्रकार वर्णन करते हैं।

घटना 1994 की है। मेरी पत्नी मथरा रानी इन्सां के बच्चेदानी में कैंसर बन गया था जो उसकी मेडिकल रिपोर्टस में अलग-अलग डाक्टर साहिबानों ने घोषित किया गया था। उससे पहले हम उसे आठ-नौ महीने तक अलग-अलग हॉस्पिटल्ज से दवाई वगैरा दिलाते रहे। ज्यादा दर्द, परेशानी आदि दवाई वगैरा खाने, इंजैक्शन लगवाने कुछ समय के लिए टिक जाता दवाई आदि का असर खत्म होने पर फिर से वही चिंताजनक हालत। उस दिन मैं उसे अपने एक डाक्टर दोस्त डा. दयाल की सलाह लेकर शहर में जनता मेटरिनटी अस्पताल में चैकअप करवाने के लिए ले गया।

डा. तलवाड़-लेडी डाक्टर ने चैकअप करने के बाद हमें उसका तुरंत ऑपरेशन करवाने की सलाह दी कि हालत बहुत ज्यादा बिगड़ सकती है, इसका अभी ऑपरेशन करना होगा। उस दिन वीरवार का दिन था।?वह उस महीने का पहला हफ्ता था। रविवार को शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा (यूपी) में सत्संग निश्चित था।?सरसा शहर से उन दिनों यूपी (आश्रम) में हर सत्संग के लिए एक ट्रक जाया करता था। साध-संगत ने गाड़ी करने व साध-संगत को ले जाने व लाने की मेरी ड्यूटी लगा रखी थी। लेकिन डा. तलवाड़ के अनुसार, मेरी पत्नी का उस स्थिति में अगर ऑपरेशन वीरवार या शुक्रवार को होता है तो मेरी सेवा में रुकावट पड़ती है।

मैं अपनी पत्नी को उस हालत में छोड़ कर ट्रक व साध-संगत के साथ जा ही नहीं सकता था, जबकि डाक्टर कह रही थी कि ऑपरेशन तुरंत करना पड़ेगा। वह भी जरूरी था।?मेरी घरवाली की जिंदगी का सवाल था। अब करें तो क्या करें! क्योंकि डाक्टर साहिब को मेरी पत्नी की बिगड़ी बीमारी का पता था। उनके अनुसार ऑपरेशन जरूरी भी था। क्योंकि हम उनके यहां चैकअप करवाने गए थे, इसलिए बीमारी की उस भयानकता के बारे हमें आगाह करना उनका धर्म व फर्ज भी था। वो अपनी जगह सही थे।

लेकिन मैं चाहता था कि ऑपरेशन सत्संग से वापस आकर सोमवार को करवा लें ताकि मेरी सेवा में भी रुकावट न आए। मैंने अपने मित्र डा. दयाल से अपने अंदर की यह बात स्पष्ट करते हुए कहा कि अगर ऑपरेशन जरूरी है?तो बरनावा (यूपी) में सत्संग के बाद आकर सोमवार करवा लेंगे। इस तरह डा. दयाल के कहने से डा. तलवाड़ ने उसे दर्द रोकने के लिए वोवरन (श्ङ्म५१ंल्ल) का इंजेक्शन दे दिया क्योंकि उस समय उसे बहुत ज्यादा असहनीय दर्द हो रहा था। इंजेक्शन लगवा कर मैं उसे घर पर ले आया।?

इंजेक्शन से दर्द रुक गया। वह रात-भर ठीक रही। मेरी पत्नी ने मुझे हौंसला दिया कि अब मैं ठीक हूं, आप सेवा पे चले जाएं। शुक्रवार को मैं अपनी सेवा की ड्यूटी के अनुसार ट्रक में साध-संगत के साथ यूपी दरबार बरनावा में पहुंच गया। इसी दौरान ट्रक में चलते-चलते मैंने अपनी पत्नी की बीमारी की हालत के बारे पूज्य गुरू जी को दया-मेहर बख्शने के लिए अरदास रूप में एक पत्र लिख लिया।

अगले दिन शनिवार को मैं आज्ञा मिलने पर पूज्य गुरू जी की पावन हजूरी में दर्शनों के लिए तेरावास में चला गया और अपनी पत्नी की बीमारी की उपरोक्त अनुसार स्थिति बताते हुए वह पत्र भी पूज्य गुरू जी को दे दिया। पूज्य सतगुरु, दयालु दातार जी ने उसी समय मेरे वहां पर बैठे-बैठे ही पत्र पढ़ लिया और इतने में तेरावास में अंदर चले गए और मुझे भीअपने पास अंदर बुला लिया। ? शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘ विजय बेटा, सभी से चैकअप करवा लिया? मैंने अर्ज की, जी पिता जी, चैक करवा लिया है जी।

पूज्य पिता जी ने फिर पूछा, ‘‘ चंडीगढ़ चैक करवा लिया ’’ ? मैंने विनती की, पिता जी, चंडीगढ़ से तो नहीं करवाया। पूज्य सर्व?सामर्थ शहनशाह जी ने वचन फरमाया, ‘‘ बेटा, चंडीगढ़ दिखाओ। ’’ और इसके साथ ही पूज्य शहनशाह जी ने एक जिम्मेवार सेवादार का नाम लेते हुए फरमाया ‘विजय बेटा, ऑपरेशन करवाना है तो उनसे जितनी जरूरत हो, पैसे ले लेना।’ सत् वचन कह कर मैं बाहर आ गया। मैंने सोचा कि अपनी घरवाली के ऑपरेशन के लिए जो दो-अढ़ाई लाख खर्चा डाक्टरों ने बताया था, मैं दरबार से लूं! मेरा यह दिल नहीं मान रहा था। पूज्य पिता जी का पहला वचन चंडीगढ़ में दिखाने का, मैंने उस वचन को गांठ बांध लिया और बरनावा सत्संग से वापस आकर मैं अपनी पत्नी को लेकर चंडीगढ़ चैकअप करवाने का पूज्य पिता जी का वचन बताया। दूसरी तरफ जब मैंने डा. दयाल से चंडीगढ़ में जाने की बात बताई तो उन्होंने कहा कि वहां पर किसी ने तुम्हारी रिपोर्टस वगैरह नहीं देखनी।

वो अपने खुद दोबारा टैस्ट करवाएंगे। डा. दयाल ने यह भी कहा कि कम से कम अढ़ाई तीन लाख रुपया खर्चा आ सकता है और 15-20 दिन भी लग सकते हैं और यही बात डा. मुंजाल ने भी मुझे कही। परंतु मुझे अपने सतगुरु मुर्शिदे कामिल पर पूरा यकीन था क्योंकि पूज्य पिता जी ने चंडीगढ़ में केवल दिखाने का वचन फरमाया था कि ‘चंडीगढ़ दिखाओ।’ अगले दिन मैं अपनी पत्नी को तथा उसकी अब तक की सारी रिपोर्टस लेकर चंडीगढ़ पहुंच गया।?वहां पर जब डॉक्टर साहिबानों ने चैकअप किया तो हैरान रह गए। वे मेरी पत्नी से कहने लगे, (क्योंकि मुझे तो अंदर जाने नहीं दिया गया था, इसलिए मैं बाहर बैठ रहा था) कि किसने कहा है कि तुम्हें कैंसर है! मेरी पत्नी ने उन्हें कहा कि मेरे पति बाहर बैठे हुए हैं और उनके पास अब तक की सभी रिपोर्टस हैं।

इस पर डाक्टर साहिब ने मुझे अंदर बुला लिया और रिपोर्टस मेरे से लेकर एक-एक करके सारी बड़े ध्यान से देखी। वो बहुत ही आश्चर्य चकित थे। कहने लगे कि तुम लोग कहां से आए हो मैंने बताया कि हम सरसा से आए हैं और मैंने अपने पर्स में पूज्य गुरू जी का स्वरूप उन्हें दिखाया कि ये डेरा सच्चा सौदा सरसा वाले हमारे पूज्य गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां हैं। हम पूज्य गुरू जी के वचनानुसार ही यहां पर दिखाने (चैक करवाने) आए हैं। डाक्टर साहिब पूज्य गुरू जी के फोटो -स्वरूप के दर्शन करके बहुत खुश हुए। उन्होंने हमें दृढ़ता से यकीन दिलाया कि इसे (मेरी पत्नी को) अब बिल्कुल भी कैंसर नहीं है। रिपोर्टस के मुताबिक माना कि इनकी स्थिति बहुत गंभीर थी लेकिन अब कैंसर नहीं है,? यह भगवान ही जाने, उनकी ही कृपा है।?

इस तरह सर्व-सामर्थ दाता प्यारे ने अपने बच्चों की लाज रखी और अपनी दया-मेहर से ही, ‘चंडीगढ़ दिखाओ’ के वचन से मेरी पत्नी का कैंसर कैंसिल कर दिया तथा हमें हर तरह के नुकसान व परेशानियों से भी बचा लिया तथा वहीं पूज्य पिता जी ने अपनी दया-मेहर से मेरी पत्नी को नई, बिल्कुल नई जिंदगी बख्शी।

ऐसे सच्चे मुर्शिदे कामिल का कोटि-कोटि धन्यवाद। लाखों करोड़ों जन्म पाकर भी हम अपने मुर्शिद के उपकारों का बदला चुका नहीं सकते। सतगुरु दाता जी ने स्वयं ही अपने चरणों से लगाया है, यही दुआ है कि आखिरी स्वास तक मालिक प्यारे से ओड़ निभ जाए जी।

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