चन्द्रगुप्त मोर्य
प्राचीन भारत के प्रमुख शासक
मगध साम्राज्य में हयर्क वंश के शक्तिशाली राजाओं के बाद नाग वंश व फिर नन्द वंश का शासन रहा।
नन्द वंश के शासन काल में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया। सिकन्दर के भारत से जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशान्ति एवं अव्यवस्था फैल गयी। परिणामस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से मगध की सत्ता पर अधिकार कर लिया।
मौर्य साम्राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। मौर्य वंश के सस्थांपक चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की आधार शिला रखकर पहली बार भारत को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म और जाति को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है।
बौद्ध साक्ष्यों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म मोरिय नामक जाति में हुआ था। इनके पिता का नाम नंद तथा माता का नाम मूरा था। इनके पिता मोरिय जाति के प्रमुख थे।
ऐसा कहा जाता है कि वह मगध के पड़ोसी राज्य के साथ हुए एक संघर्ष में मारे गये थे। पिता की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य की माता पाटलीपुत्र चली गयी। वहीं 344 ईसा पूर्व चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म हुआ।
जन्म के पश्चात चन्द्रगुप्त मौर्य की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए उनके मामा ने चन्द्रगुप्त को एक गौशाला में छोड दिया। गौशाला से एक गडरिया उनको अपने घर ले गया तथा पुत्र की भाँति उनका पालन-पोषण किया। बड़ा होने पर गडरिये ने चन्द्रगुप्त को एक शिकारी को बेच दिया। शिकार करने के बहाने चन्द्रगुप्त अपने दोस्तों के साथ जगंल में जाकर राजकीलन नामक खेल खेलता था, जिसमें वह स्वयं राजा बनकर न्याय का कार्य करता था, तथा अपने दोस्तों की नियुक्ति दूसरे छोटे-मोटे पदों पर करता था।
चाणक्य ने पहली बार चन्द्रगुप्त को इसी खेल को खेलते हुए देखा था, तभी उसकी प्रतिभा को पहचानकर उसे 1000 कर्षापण ( मुद्राएं) देकर शिकारी से खरीद लिया। चन्द्रगुप्त बचपन से ही बुद्धिमान और प्रतिभाशाली थे ही चाणक्य की शिक्षा ने उनकी प्रतिभा को ओर निखार दिया।
चाणक्य और चन्द्रगुप्त की मुलाकात भी भारतीय इतिहास की प्रसिद्ध घटनाओं में से एक है। चाणक्य ज्ञान की खोज में पाटलीपुत्र का भ्रमण कर रहे थे। उस समय मगध में नन्द वंश के शासक घनानंन्द का शासन था। इतिहासकारों के अनुसार घनानंद ने चाणक्य को अपनी दानशाला का अध्यक्ष नियुक्त किया था। परन्तु चाणक्य बहुत कुरूप था इसलिए धनानंद ने उसे इस पद से हटा दिया ।
अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए चाणक्य ने नन्द वंश को समाप्त करने की शपथ ली। इसके लिए उसने
चंद्रगुप्त को माध्यम बनाया।
चन्द्रगुप्त ने अपने गुरू चाणक्य की सहायता से नन्दवंशीय राजा घनानन्द को सिंहासन से उतारकर मगध में मौर्य वंश की स्थापना कर भारत को यूनानी शासकों से मुक्त करवाया। प्लूटार्क और जास्टिन जैसे इतिहासकारों ने तो चन्द्रगुप्त और सिकन्दर की मुलाकात का उल्लेख भी किया है।
चन्द्रगुप्त मौर्य एक वीर एवं साहसी योद्धा था। उसने अपने प्रथम असफल मगध अभियान से सबक लिया तथा हिम्मत और साहस से अपनी सेना का पुर्नगठन किया। सौभाग्य वश उसी समय सिकन्दर की मृत्यु हो गई ओर पंजाब में विद्रोह आरम्भ हो गया। चन्द्रगुप्त मौर्य ने इस अवसर का लाभ उठाया और पंजाब में अपनी पूरी शक्ति के साथ यूनानियों के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया।
इस युद्ध में चन्द्रगुप्त मौर्य विजयी रहा। इसके बाद चंद्रगुप्त मगद्य की सत्ता पर अधिकार कर समपूर्ण उतर भारत का स्वामी बन गया।
इसी वर्ष 322 ईसा पूर्व चाणक्य ने चन्द्रगुप्त का राजतिलक कर दिया। सिकन्दर का उतराधिकारी सेल्युकस निकेटर भी इस समय भारत विजय का सपना देख रहा था। 305 ईसा पूर्व सेल्युकस निकेटर ने भारत पर आक्रमण कर चन्द्रगुप्त मौर्य को युद्ध के लिए ललकारा।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने इस ऐतिहासिक युद्ध में अपनी वीरता का परिचय देते हुए न केवल सेल्युकस निकेटर को हराया बल्कि उसे एक सन्धि के लिए मजबुर कर दिया। इस ऐतिहासिक सन्धि की शर्तो के अनुसार चन्द्रगुप्त को एरिया (हिरात), काबुल अराकोशिया (कांधार), जड्रोशिया (ब्लुचिस्तान) जैसे महत्वपूर्ण प्रान्त प्राप्त हुए। साथ ही मैगस्थनीज जैसा राजदूत भी मौर्य दरबार की शोभा बना। सेल्युकस निकेटर की पुत्री हेलन का विवाह भी चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ सम्पन्न हुआ। अनेक साक्ष्यों से पता चलता है कि दक्षिण भारत के अनेक राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन के अधीन थे।
बौद्ध साक्ष्यों के अनुसार मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने 24 वर्षो के शासन में हिमालय से लेकर दक्षिण में मैसूर तथा पश्चिम में अरब सागर तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
जैन साहित्य के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अन्तिम दिनों में राजकाज का कार्य अपने पुत्र को सौंप दिया तथा जैन भिक्षु भद्रबाहु के साथ मैसूर चला गया और वहाँ सन्यासी जीवन व्यतीत करते हुए 298 ई़ में उसकी मृत्यु हो गई। विभिन्न परिस्थितियों में चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा किये गये कार्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि वह आत्मविश्वासी, दृढनिश्चयी, वीर, साहसी एवं महत्वकाँक्षी शासक था। उसके चरित्र में कुछ ऐसी विशेषताएं थी जिससे उसका नाम इतिहास में चिरस्थायी हो गया।
चन्द्रगुप्त के विजयी अभियानों से हमें नेपोलियन और बाबर जैसे साम्राज्य-निर्माताओं का स्मरण होता है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी विजयों के द्वारा भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम एक अखिल भारतीय साम्राज्य की नींव डाली। इस दृष्टि से वह एक महान राष्टÑ-निर्माता था।
चाणक्य की शिक्षा-दीक्षा ने उसे युद्ध नीति एवं व्युह रचना का विशेषज्ञ बना दिया। जब तक चन्द्रगुप्त मौर्य का भारत में शासन रहा तब तक किसी भी विदेशी शक्ति ने भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं दिखाया। सभी गुणों से सम्पन्न
चन्द्रगुप्त मौर्य का भारतीय इतिहास में अपना एक विशिष्ट स्थान है और उसकी गणना भारत में योग्यतम शासकों में की जाती है।
-डॉ़ नीलम शर्मा
असिस्टेंट प्रोफेसर, इतिहास विभाग
एमजेजे गर्ल्स कॉलेज, सूरतगढ़
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