याद्दाश्त ठीक रखने के लिए जरूरी है मस्तिष्क का अधिकाधिक इस्तेमाल
भूलना एक स्वाभाविक क्रि या है। अमेरिका के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक विलियम जेम्स कहते हैं कि दिमाग के सही इस्तेमाल के लिए भूलना भी उतना ही जरूरी है जितना कि याद रखना। यदि हम हर चीज को याद रखने की कोशिश करें तो हमारा दिमाग परेशान हो जाए और सही वक्त पर एक चीज भी याद न आए।
कुछ चीजें भूल जाने में ही हमारी भलाई है लेकिन इतना भी नहीं कि हम सामान्य बातें भी भूल जाएँ। हमें चाहिए कि हम केवल जरूरी चीजÞों को ही याद रखें लेकिन हमारी याद्दाश्त सामान्य बनी रहे, इस बात का भी हमें अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
वास्तव में याद्दाश्त अच्छी या बुरी नहीं होती। अन्य बातों की तरह हमारी याद्दाश्त भी हमारी सोच द्वारा प्रभावित होती है। यदि हम सोचते हैं कि हमारी याददाश्त कमजोर है तो हमारी याददाश्त ठीक होते हुए भी एक दिन वह अवश्य ही कमजोर हो जाएगी। इसके विपरीत यदि हम सोचते हैं और अपने मन को विश्वास दिला देते हैं कि हमारी याददाश्त अच्छी है तो वह निश्चित रूप से अच्छी हो जाएगी। हमारी याददाश्त में हमारे मस्तिष्क का महत्त्वपूर्ण रोल होता है लेकिन जब तक उसका इस्तेमाल न किया जाए, वह बेकार है।
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सामान्यत:
हम अपने मस्तिष्क की क्षमता का बहुत कम इस्तेमाल करते हैं। प्राय: हम अपने मस्तिष्क के आठ-दस प्रतिशत भाग का ही इस्तेमाल करते हैं। हम अपने मस्तिष्क की क्षमता का जितना ज्यादा इस्तेमाल करेंगे, वह उतनी ही बढ़ती चली जाएगी। याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए अपने मस्तिष्क की क्षमता का अधिकाधिक इस्तेमाल कीजिए। कुछ न कुछ ऐसा करते रहिए जिसमें दिमाग लगाना पड़े।
हास्य का भी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने से गहरा संबंध है। हंसने के दौरान हमारे प्रसुप्त ब्रेन सेल्स या न्यूरॉन्स सक्रि य हो जाते हैं और हमारी याददाश्त को तेजÞ करने में सहायता करते हैं। अपनी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिए जब भी मौकÞा मिले, ख़ूब हंसें-हंसाएं। पर्याप्त नींद लेना भी जरूरी है क्योंकि कम सोने से हमारे ब्रेन के एक हिस्से में ब्रेन सेल्स या न्यूरॉन्स की संख्या कम हो जाती है जिससे याददाश्त कमजोर पड़ जाती है।
नई वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि बचपन में सीखी गई कई भाषाएं वृद्धावस्था में व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती हैं, क्योंकि एक से अधिक भाषाएं बोलने वाले व्यक्ति का दिमाग केवल एक भाषा जानने वाले व्यक्ति की तुलना में वृद्धावस्था में भी अपेक्षाकृत अधिक सक्रि य रहता है। अधिक भाषाओं की जानकारी व्यक्ति के दिमाग के अंदर ऐसे लिंक्स तैयार कर देती हैं जिनसे व्यक्ति की मानसिक सक्रि यता बनी रहती है। यदि आप बचपन में अधिक भाषाएं नहीं सीख पाए हैं तो कोई बात नहीं, आज ही किसी भाषा को सीखना आरंभ कर दें।
गायन-वादन, नृत्य, अभिनय व अन्य कलाओं जैसे मूर्तिकला व शिल्प आदि कलाओं के द्वारा एकाग्रता का विकास होता है
अत:
तनाव दूर करने तथा अपनी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिए इन कलाओं का सहारा लिया जा सकता है। इसके लिए बड़ा चित्रकार या कलाकार होने की भी जरूरत नहीं। मनमाफिक रंगों द्वारा आड़ी तिरछी रेखाएं खींचकर अथवा गीली मिट्टी से विभिन्न आकृतियां बनाकर हम आसानी से अपनी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त बनाए रख सकते हैं।
याददाश्त अच्छी बनी रहे, इसके लिए कुछ नया याद करते रहें, कुछ नया सीखते रहें। अपनी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिये न केवल ख़ुद सीखते रहें अपितु दूसरों को सिखाने में भी कुछ न कुछ समय लगाएं। जो लोग दूसरों की समस्याओं को ध्यान से सुनकर वास्तव में उनका समाधान निकालने में रुचि लेते हैं, उनकी याददाश्त भी अपेक्षाकृत अच्छी बनी रहती है। -सीताराम गुप्ता