Children's story

बाल कथा: सच्चा धन
काशी में धर्मदास नामक एक प्रकांड पंडित रहते थे। वे ज्योतिष विद्या में अत्यंत निपुण थे। उनका गणित कभी गलत नहीं हुआ, फिर भी घर में सदा कंगाली छाई रहती थी। पत्नी किसी न किसी अभाव की चर्चा कर, सदा उन्हें उलाहने दिया करती कि तुम दूसरों के भाग्य बदलने के दिन देखते हो। कभी यह भी देखा, अपने घर के दिन कब पलटेंगे?

हर समय की चिक-चिक से परेशान हो, आखिर एक दिन धर्मदत्त ने अपनी कुंडली देखी। पता चला, यदि आज ही रात को रोहिणी नक्षत्र के लगते ही घर त्याग कर चल दिया जाए तो धन लाभ होगा। फिर क्या था। धर्मदत्त ने पत्नी को बिना बताए घर छोड़ने का इरादा बना लिया। ज्योतिष और धर्म की कुछ पुस्तकें उन्हें अत्यंत प्रिय थीं। पत्नी से छिपकर वे पुस्तकें भी उन्होंने एक थैले में भर बाहर चबूतरे की ओट में रख दीं। सोचा कि चलूंगा, तब इन्हें लेता जाऊंगा।

लगभग उसी समय कोई चोर भी चोरी करके उधर से गुजरा। अचानक उसे कुछ लोग सामने से आते दिखाई दिए। उसने चोरी के माल से भरा थैला भी उसी ओट में छिपा दिया। स्वयं दूसरी गली में जा छिपा। तभी रोहिणी नक्षत्र लग गया। धर्मदत्त चुपचाप उठे। चारों ओर घुप्प अंधकार था। सांकल खोलकर वह बाहर आए। ओट में रखा थैला उठाया और चल दिए।

उनके जाने के बाद चोर आया। उसने भी ओट में रखा थैला उठाया और खिसक गया। सवेरा होने तक धर्मदत्त काशी से काफी दूर निकल गए। अचानक उनकी दृष्टि हाथ में उठाए थैले पर गई तो चौंक उठे। वह उनका थैला नहीं था। झटपट उसमें झांका तो चकित रह गए। थैले में सोने-चांदी के आभूषण थे। वह हंसने लगे। उनकी कुंडली का गणित शत-प्रतिशत सही निकला था।

एक साथ इतना धन हाथ आते ही धर्मदत्त की भावनाएं बदलने लगीं। पाप-पुण्य का भेद मिटने लगा। सोचने लगा कि पत्नी दिन भर धन के लिए हाय-हाय करती थी। अब इस धन को कई गुना करके ही घर लौटूंगा। बस, वह दूसरे नगर में चले गए। थैले के आभूषण बेचकर व्यापार करने लगे। जैसे-जैसे व्यापार बढ़ा, सीधे-सादे पंडित धर्मदत्त निन्यानवे के फेर में पड़ते चले गए। पूजा-पाठ, दया-धर्म, दान-पुण्य सब छूट गए।

अजूबा उस चोर के साथ भी हुआ। घर जाकर उसने थैला देखा तो सिर पीट लिया। आभूषणों के स्थान पर थैले में धर्म और ज्योतिष की पुरानी पुस्तकें निकलीं। चोर ने सोचा कि शायद गलती से मेरा थैला वहीं छूट गया है। उसे ढूंढने के लिए वह जाने ही वाला था कि उसकी पत्नी ने टोक दिया, ‘किधर चले। अभी तो पाठशाला से आए थे।’

चोर को जैसे कुछ ध्यान आया। उसने अपनी पत्नी को यह कभी नहीं बताया था कि वह रात को चोरी करने जाता है। सदा यही कहा था, वह एक रात्रिकालीन पाठशाला में पढ़ाता है। अपनी बात रखने के लिए वह फिर बिस्तर पर बैठ गया। थैले में से एक पुस्तक निकाली और पढ़ने लगा। लिखा था, ‘यूं तो हर मनुष्य भगवान के आधीन है, किंतु वह कौन-सा कर्म करे, यह उसे स्वयं सोचना पड़ता है। यदि वह चाहे तो अपने कर्म द्वारा अपना भाग्य तक बदल सकता है।’

चोर को यह बात अच्छी लगी। वह रोज सोने से पहले एक न एक पुस्तक पढ़ने लगा। रोज उसे नई-नई बातें पढ़ने को मिलती थीं। पत्नी भी उनको सुनकर प्रसन्न होती थी। जैसे-जैसे पुस्तकों में चोर की रूचि बढ़ी, उसकी आदतों में सुधार होने लगा। समय बीतते-बीतते वह चोर से एक सदाचारी मनुष्य बन गया। उसने चोरी छोड़ दी। मेहनत करने लगा। पूजा-पाठ में भी उसकी रूचि बढ़ गई।

जैसे-जैसे चोर में सद्गुण जागे, धर्मदत्त में दिन दुगना, रात चौगुना लोभ जागा। धन को एकदम बढ़ाने के चक्कर में वह सट्टा लगाने लगे। कुछ दिन वह जीते मगर एक दिन उनका सारा धन सट्टे की भेंट चढ़ गया। परेशान धर्मदत्त हवेली छोड़कर नदी में कूद अपनी जीवन लीला समाप्त करने के लिए चल दिए। रास्ते में उन्होंने सुना, ‘नगर में कोई सिद्ध महात्मा आए हैं। वह भविष्य बताते हैं।’ धर्मदत्त भी उन महात्मा के आश्रम पर जा पहुंचे। उन्हें प्रणाम कर, अपना दु:ख बताया। खोए धन को फिर से प्राप्त करने का उपाय पूछा।

धर्मदत्त की विपदा सुनकर महात्मा जी मुस्कुराए। बोले, ‘लालच बढ़ता है, तो धन डूबता है। मेरे साथ भी कभी ऐसा ही हुआ था मगर मैं डूबने से बच गया। मेरे हाथ सच्चा धन लग गया था।’ ‘कैसे?’ धर्मदत्त ने पूछा।

महात्मा जी उठे। अंदर गए। फिर ढेर सारी पुस्तकें लाकर धर्मदत्त के सामने रख दीं। बोले, ‘यही है वह सच्चा धन। इसी ने मुझे डूबने से बचाया।’ धर्मदत्त उन पुस्तकों को देखकर चौंक उठे। उन्हीं की थीं वे पुस्तकें। सोचने लगे कि मैंने इन्हें थैले में भरकर अपने घर के चबूतरे की ओट में छिपाया था।’ आज उन पुस्तकों को फिर देख, उनका सोया ज्ञान जाग उठा। उन्हें अपना अतीत याद हो आया। वह चुपचाप उठ खड़े हुए। महात्मा जी पुकारते रह गए मगर वह नहीं रूके। उन्होंने अपने सच्चे धन को फिर से प्राप्त करने की ठान ली थी। -नरेन्द्र देवांगन

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!