बाल कथा : नन्हा चित्रकार
बंटी को चित्रकारी का बहुत शौक था। उसे नदी, पहाड़, झरने आदि प्राकृतिक दृश्यों के चित्र बनाना बहुत पसंद था।
उसके मामाजी का घर प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर एक गाँव में था। जब भी उसे छुट्टी मिलती, वह चित्रकारी का सामान लेकर अपने मामाजी के गाँव पहुंच जाता था और खूब चित्र बनाता था।
इस बार भी जब गर्मी की छुट्टियां हुई तो वह अपने मामाजी के गाँव पहुंच गया। मामाजी उसे देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने हंसते हुए पूछा, ‘चित्रकारी का सामान साथ ले कर आए हो न बेटा?’ ‘हाँ-हाँ, मामाजी।’ उसने तपाक से कहा।
‘शाबाश! इस बार मैं तुम्हें एक ऐसे स्थान का पता बताऊंगा जहाँ बैठकर तुम्हें चित्रकारी करने में बहुत मज़ा आएगा।’ मामाजी बोले।
‘सिर्फ पता बताने से काम नहीं चलेगा। आपको मेरे साथ उस स्थान पर चलना होगा।’ ‘ठीक है, मैं चलूंगा।’
अगली सुबह बंटी जल्दी-जल्दी तैयार हो गया और मामाजी से बोला, ‘मामाजी, चलिए, मैं तैयार हो गया हूँ।’ ‘बेटा, मुझे अभी पशुओं के लिए मशीन पर चारा काटना है।’ मामाजी ने कहा, ‘थोड़ी देर बाद चलेंगे। तुम तब तक खेलो।’ यह कहकर वे चारा काटने वाली मशीन पर चारा काटने लगे।
‘मामाजी, मैं आपको सहयोग करूं, तो काम जल्दी पूरा हो जाएगा।’ इतना कहकर वह चारा उठाकर मशीन में डालने लगा। ‘नहीं बेटा, तुम छोड़ दो।‘ मामाजी उसे समझाते हुए बोले, ‘तुम से नहीं होगा। यह बहुत सावधानी का काम है। तुम्हारा हाथ मशीन में कट जाएगा।’ लेकिन बंटी, मामाजी की बात अनसुनी करके मशीन में जल्दी-जल्दी चारा डालने लगा। तभी अचानक उसका दाहिना हाथ मशीन में फंस गया और उसकी पांचों उंगलियां कट गर्इं। वह खूब जोर से चीखा और बेहोश हो गया। चारों तरफ खून ही खून फैल गया।
यह देखकर मामाजी बुरी तरह घबरा गए। बंटी को तुरंत गोद में उठाकर गांव के ही एक डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने मरहमपट्टी कर दी और सुझाव देते हुए कहा, ‘मेरे विचार से इसे तुरंत शहर ले कर चले जाइए, क्योंकि खून बहना पूरी तरह बंद नहीं हो रहा है।‘ मामाजी ने अपनी जीप निकाली और अपने एक दोस्त के साथ बंटी को ले कर तुरंत शहर रवाना हो गए।
बंटी की हालत देखकर पापा बेहद घबरा गए। माँ तो जोर-जोर से रोने ही लगी। वे लोग बंटी को एक डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने अच्छी तरह मरहमपट्टी की और दवाइयां दी जिससे खून बहना बंद हो गया। डॉक्टर ने अफसोस प्रकट करते हुए कहा, ‘अब यह अपने दाहिने हाथ से कोई भी काम नहीं कर सकेगा।’ सबको इस हादसे पर बहुत दुख हुआ। धीरे-धीरे बंटी के हाथ का घाव ठीक हो गया। पर वह अपने हाथ को लेकर हमेशा दुखी रहता था। वह सोचता, ‘मैं अपाहिज हो गया हूँ। अब मैं हाथ से कभी लिख नहीं सकूंगा। चित्रकारी भी नहीं कर सकूंगा।
कभी-कभी वह फफक-फफक कर रो पड़ता था। माँ उसे हमेशा समझाती रहती थी और उसके मन से निराशा निकालने के प्रयास में लगी रहती थी। एक दिन मां ने उसे कहा, ‘बेटा, तुम बाएं हाथ से लिखने का अभ्यास करो। देखना, कुछ ही दिनों में तुम उसी तरह लिखना सीख जाओगे जैसा दाएं से लिखते थे।’
बाएं हाथ से तो वह अपना काम कर ही लेता था। शर्ट पहन लेता था, बटन भी लगा लेता था। खाना भी खा लेता था। उसने लिखने का भी अभ्यास शुरू कर दिया। शुरू में उसे बड़ी मुश्किल हुई। उसकी लिखाई ऐसी हो जाती जैसे कोई छोटा बच्चा लिखना सीख रहा हो लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक होता गया। उसके मन से निराशा के बादल भी छंटते चले गए।
तब एक दिन उसने अपनी माँ से कहा, ‘माँ, मैं फिर से चित्रकारी शुरू करना चाहता हूँ। क्या मैं बाएं हाथ से कूची पकड़ कर चित्र नहीं बना सकता।’ ‘हां बेटा,‘मां उसका हौसला बढ़ाती हुई बोली, ‘तुम बाएं हाथ से चित्र बना सकते हो। यदि मन में उत्साह हो और कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो व्यक्ति क्या कुछ नहीं कर सकता। वह बाएं हाथ से चित्र बनाने का अभ्यास करने लगा। शुरू में उससे चित्र ठीक से नहीं बन पाता था। फिर भी वह लगा ही रहता था।
आखिर उसकी मेहनत रंग लाने लगी। जो भी उसके बनाए चित्रों को देखता, खूब प्रशंसा करता। एक बार स्कूल में जिला स्तरीय हस्तशिल्प प्रतियोगिता का आयोजन हुआ जिसमें उसने अपने बाएं हाथ से बनाए हुए चित्रों का प्रदर्शन किया।
उसके चित्रों को खूब सराहा गया और पुरस्कार के लिए चुना गया। जब उसने पुरस्कार ग्रहण किया तो माहौल तालियों से गूंज उठा।
-हेमंत यादव