Editorial

निंदा करना, मतलब दूसरों का बोझ अपने सिर लेना -सम्पादकीय

किसी की बुराई करना आजकल आम बात हो गई है। सुनी-सुनाई छोटी-सी बात का भी लोग बतंगड़ बना देते हैं, क्योंकि समय का दौर ही ऐसा है। झूठ व बुराई बड़ी तेजी से फैलती है। जबकि किसी के गुण या अच्छे कार्य की बहुत कम लोग ही तारीफ करते हैं। झूठ का प्रचार-प्रसार लोग बड़े चस्के लेकर करते हैं। इसे कहते हैं निंदा-चुगली। कोई सामने आए तो सही। लेकिन ये नहीं पता कि जिह्वा से किया गया यह कर्म कितना भयानक भी हो सकता है।

दूसरे शब्दों में कहें तो इसे किसी को ‘धो देना’ भी कहा जाता है। स्पष्ट है कि जिसकी बुराई की जा रही है, उसके पाप-कर्मों का बोझ बुराई करने वाले ने अपने हिस्से ले लिया। संत महात्मा इस बारे बड़ा समझाते हैं। निंदा-चुगली जैसे पाप-कर्म से वे बड़ा रोकते हैं, लेकिन वह बहुत ही भाग्यशाली हैं, जो उनकी बात मानते हैं। हमारे वेद-शास्त्र, धर्म-ग्रंथ भी इस पाप-कर्म से दूर रहने का सबक पढ़ाते हैं, क्योंकि जिह्वा द्वारा किए गए इस पाप-कर्म के फल से बचना मुश्किल है। इसके फल का भुगतान कैसे अपने सिर आता है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है।

एक राजा जो बहुत धर्मात्मा पुरुष था, वह विद्वानों, पंडितों का बड़ा आदर करता था। एक बार 10-12 विद्वान उसके पास आए। राजा ने उनको बड़ा मान-सम्मान दिया और अपनी तरफ से उनके लिए शाही भोज का प्रबंध किया। एक से बढ़कर एक पकवान तैयार किए जाने लगे। उसी दौरान कुदरत का ऐसा कोई खेल हुआ कि जहाँ पकवान तैयार हो रहे थे, उस खुले आसमान में एक चील उड़ती हुई आई। चील ने सांप को पकड़ रखा था। सांप अपने-आपको उसके पंजों से छुड़ाने का प्रयास कर रहा था। इसी बीच सांप के जहर की कुछ बूंदे नीचे बन रहे पकवान में गिर गई।

इस जहर वाले भोजन को जब परोसा गया तो 10-12 जो विद्वान थे, वो मर गए। राजा को इस बात का बहुत दु:ख व पछतावा हुआ, क्योंकि पाप तो हो गया था। कहते हैं, उधर जब वो आत्माएं यमलोक पहुंची, तो वहाँ उनका हिसाब होने लगा। यमदूत कहने लगे कि इनका दोष राजा के सिर हो, क्योंकि उसके कहने पर पकवान बनाए गए थे। धर्मराज कहने लगा, नहीं! उनका क्या कसूर है? फिर कहने लगे कि रसोइए के सिर हो। लेकिन उनका भी कसूर नहीं निकला। काफी विचार के बाद बात चली कि दोष चील का है। लेकिन धर्मराज कहने लगा कि नहीं, चील या सांप भी इसमें निर्दोष हैं। आखिर काफी मंथन करने के बाद धर्मराज ने कहा कि ये पाप-कर्म तो है, लेकिन इसमें ये सब लोग निर्दोष हैं। ये कर्म-फल किसके सिर आना है, इस बारे थोड़ा इंतजार करते हैं।

इधर इस घटना को हुए कुछ महीने बीत चुके थे। राजा के लिए लोगों के दिल में वही प्यार-सत्कार था। दूर-दूर से विद्वान राजा के पास आया करते। इसी प्रकार एक विद्वान ज्ञानी पुरुष नगर में आया। उसने एक औरत से राजा के महल को जाने का रास्ता पूछा। औरत निंदा-चुगली करने वाली थी। औरत कहने लगी कि मत जा राजा के पास। वो सही नहीं है। वैसे ही उसने अपने आपको धर्मात्मा बना रखा है। विद्वान कहने लगा कि नहीं, राजा बहुत सज्जन पुरुष है। वह नेकदिल इन्सान है। वह विद्वानों का बहुत मान-सम्मान करता है तथा अपनी प्रजा को भी सुखी रखता है।

इस पर महिला और खीझ गई, कहने लगी कि यह तो तेरी बात ठीक है। बड़े भोज करता है वह। लेकिन तेरे जैसा जो कोई एक बार महल में गया, जिंदा वापिस नहीं आया। अभी कुछ दिन हुए 10-12 विद्वान आए थे, वो जिंदा वापिस नहीं आए। तेरा भी यही हाल होगा। महिला के बस इतना कहने की देर थी, जैसे कहते हैं कि दरगाह में हर प्राणी का क्षण-क्षण का हिसाब रखा जाता है। तो औरत ने राजा की बुराई कर डाली। उसने जैसे ही ये बुराई की, धर्मराज ने उसी वक्त उस पाप-कर्म का दोष महिला के खाते डाल दिया। धर्मराज ने कहा कि इस महिला ने उस नेक पुरुष राजा की बुराई की, जबकि वो निर्दोष था। और इसका फल अब इस महिला को भुगतना होगा।

इस प्रकार उस महिला को निंदा-चुगली की बुरी आदत से पापों का बोझ अपने सिर उठाना पड़ गया। इसलिए परनिंदा भयानक कर्म है। पूज्य गुरु संत डॉ. एमएसजी इससे बचने के लिए बार-बार समझाते हैं। पूज्य गुरु जी के अनमोल वचनों पर चलकर इस बुराई से छुटकारा मिल जाता है। इसलिए किसी को बुरा कहने से पहले सौ बार सोचना चाहिए। जिह्वा पर नियंत्रण रखना चाहिए। किसी के लिए बुरा नहीं बोलना चाहिए।