Fun monsoon drizzle

मस्ती भरी मानसून की रिमझिम फुहारें : प्रकृति की सुन्दरता मन मोह लेती है। सचमुच, ऊपरवाले से बड़ा कोई चित्रकार नहीं! नीले नभ में इन्द्रधनुष देखकर जितने बच्चे खुश होते हैं, उतने ही हर उम्र के लोग भी। ये मौसम सभी के तन-मन को ताजगी का अहसास कराता है। ऐसा कोई भी नहीं होगा, जो इस हसीं मौसम में खुश न हो!

‘सावन का महीना, पवन करे शोर, जियरा झूमे ऐसे, जैसे बन मा नाचे मोर…’ गाने की ये पक्तियां मदहोश सावन के ही आने का संदेश नहीं देती, अपितु तन-मन के खुशी से झूमने की बात भी कहती हैं। सावन-भादों या फिर जुलाई-अगस्त के ये दो महीने खुशगवार बारिश की रिमझिम लेकर आते हैं। इस मौसम में किसान तो खुशी से झूमते ही हैं, युवा तन मन भी मस्ती में झूमने लगते हैं। पकवानों और पके आमों के खाने का मजा ही कुछ और है सावन की इन फुहारों में।

मई-जून की झुलसा देने वाली गर्मी और लू के बाद सावन की ठंडी बयार सबको मस्त बना देती है। कभी रिमझिम हल्की फुहार, कभी घनघोर घटाओं का खूब बरसना और उसके बाद सारी प्रकृति का धुलकर निखर जाना, सबके मन को खूब भाता है। प्रकृति की सुन्दरता मन मोह लेती है। सचमुच, ऊपरवाले से बड़ा कोई चित्रकार नहीं! नीले नभ में इन्द्रधनुष देखकर जितने बच्चे खुश होते हैं, उतने ही हर उम्र के लोग भी। ये मौसम सभी के तन-मन को ताज़गी का अहसास कराता है। ऐसा कोई भी नहीं होगा, जो इस हसीं मौसम में खुश न हो!

monsoonयूं तो एक बरस में भारतीय परम्परा के अनुसार मूलत: छ: ऋतुएं होती हैं, पर मुख्यत: तीन ऋतुएं ही हम सबके स्मृतिपटल में अंकित रहती हैं- ग्रीष्म, बरखा और शीत! हर ऋतु जीवन के उस सत्य को उद्घाटित करती है जिसे जानते तो हम सब हैं, पर समझने का यत्न बहुत कम लोग करते हैं और यह ‘जीवन-चक्र’ सत्य है! यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है।

वर्षा ऋतु हर बार एक सन्देश लेकर आती है और वह सन्देश है ‘अपनी धरती को भी प्यार करो! कुछ पल उसको भी दो! जन-जन का जीवन निहाल करो!’ कुछ समझे आप? नहीं न! क्या हम नहीं जानते कि कहीं इतनी बरसात है कि घर उजड़ रहे हैं और कहीं एक-एक बूँद को तरसती निगाहें! ऐसा क्यों? क्योंकि हमने अपनी धरती का ध्यान रखा ही नहीं! हज़ारों पेड़ काटे! धरती की जड़ों को खोखला कर दिया! पर अभी भी देर नहीं हुई है! कुछ बीज नन्हे हाथों में रख उसे धरती में बो कर देखो! बरसात का पानी कैसे उनका पोषण करता है और फिर मिलेगी घने पेड़ों की छाँव, उनके मीठे फल और निर्मल वातावरण। यह ऋतु पुकार रही है कि ‘आओ, मेरे समीप आओ और देखो कि जीवन कितना सुन्दर है।’

बारिश की मौज-मस्ती और इस सुहाने मौसम में खाने-पीने का मजा तंदुरुस्त व स्वस्थ तन-मन ही ले सकता है। बारिश का मौसम खुशगवार व सुहावना होने के साथ-साथ बड़ा नाजुक भी होता है। पल में गर्मी, पल में बारिश मौसम के उतार-चढ़ाव को बल देती है। इन दिनों तापमान के अधिक होने तथा वातावरण में नमी के होने और पसीना आने से सर्द-गरम होने एवं जुकाम होने की प्रबल संभावना बनी रहती है, अत: धूप से तुरंत उठकर भीगने से बचना चाहिए।

घर से बाहर जाते समय रेनकोट या छाता अवश्य ही साथ लेकर चलना चाहिए, ताकि अचानक ही उमड़ घुमड़ आए बादलों से बरसी चांदी सी बूंदें आपके स्वास्थ्य की दुश्मन न बन जाएं। बारिश के मौसम में अनेक कीटाणु एवं वायरस भी वातावरण में आ जाते हैं तथा जरा-सा स्वास्थ्य नरम पाते ही ये टूट पड़ते हैं। जुकाम, बुखार, मलेरिया एवं वायरल तो जैसे घात ही लगाए बैठे रहते हैं। यही नहीं, अनेकों कीड़े मकोड़े व जहरीले जानवर (सांप, बिच्छू वगैरह) भी जमीन में पानी भरने से बाहर निकल आते हैं अत: नंगे पैर जमीन पर चलने से अंधेरे में तो विशेष रूप से बचना ही चाहिए।

बारिश के मौसम में बच्चे चार बूंद पड़ते ही नहाने निकल पड़ते हैं जो खतरे का सबब भी बन सकता है क्योंकि एक तो बच्चों का शरीर कोमल होता है, ऊपर से वातावरण में वायुमंडल में जमे धूल कण तथा जहरीली गैसें उस पानी में घुल कर आती हैं, जो त्वचा में संक्र मण कर सकती हैं। अत: नहाने का मन होने पर भी 10-15 मिनट की बारिश के बाद ही बाहर निकलने दें बच्चों को।

बच्चों को पानी का छपछपाना बहुत लुभाता है, अत: वे गलियों में इकट्ठे हुए पानी में निकल पड़ते हैं। यह गंदा पानी उनके कोमल पैरों में फंगल इंफेक्शन का कारण बन सकता है और अनेक त्वचा रोग पैदा कर सकता है। अत: बच्चों को गंदे पानी से बचाएं तथा बारिश-स्नान के बाद भी स्वच्छ पानी से जरूर नहलाएं। यदि बारिश में आप भीग जाएं तो घर लौटते ही सबसे पहले साफ तौलिए से शरीर पोंछ कर तुरंत ही सूखे कपड़े पहनकर खाज, खारिश व फफूंद के आक्र मण से बचें।

चप्पल या जूते भी ऐसे पहनें जिनके तले सपाट या फिसलने वाले न हों। चमड़े के चप्पल, जूते भीग कर खराब भी हो जाते हैं और इंफेक्शन का कारण भी बन जाते हैं। अत: इस मौसम में प्लास्टिक, नॉयलोन या सिंथेटिक जूते-चप्पल का इस्तेमाल किए जा सकते हैं, मगर पहले देख लें कि आप की त्वचा इनसे रियेक्शन तो नहीं करती। इन दिनों खान-पान पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है। मन तो पकौड़े व गर्मागर्म समोसों की तरफ भागता है परन्तु पाचनतंत्र इन दिनों अधिक क्रियाशील नहीं रह पाता, सो तले भुने एवं तेज मसालों वाले चटपटे पदार्थों से यथा संभव बचें।

कच्चे व कीटाणु रहित सलाद तथा ताजे फलों का सेवन धोकर करें। इन दिनों मौसमी फलों में आम, खीरा, नाशपाती, सेब, जामुन, आडू, अमरूद आदि का सेवन स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होता है। बाजार से कटे हुए व सड़े गले फल कदापि न खाएं। भोजन में दलिया, खिचड़ी, सत्तू, चावल तथा चपाती ले सकते हैं परन्तु ठण्डे बासी भोजन में बैक्टीरिया हो सकता है, अत: ताजा ही खाएं। बहुत ज्यादा आम भी फोड़े फुंसी का कारण बनते हैं अत: आम के साथ पर्याप्त मात्रा में दूध लें या फिर मैंगो शेक के रूप में आम के गुणों का लाभ लें।

बारिश के मौसम में त्वचा की रक्षा के लिए किसी अच्छी क्वालिटी की क्र ीम प्रयोग करें। एण्टीसेप्टिक या हर्बल क्र ीम अच्छी रहती है। हां माश्चराइजर एवं आॅयली क्र ीम से बचें क्योंकि इन दिनों वैसे ही त्वचा प्राय: नम एवं तैलीय रहती है, अत: इनसे त्वचा के रोमछिद्र बंद होने से परेशानी हो सकती है। तो फिर जैसे कि इन दिनों बारिशों का मौसम है, आप अपने आपको स्वस्थ रखकर इस का पूरा लुत्फ उठाएं, झूमें, नाचें और गाएं।
-घनश्याम बादल