जल-जंगल-जमीन बिना प्रकृति अधूरी -विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनुष्य को यह याद दिलाने का दिन है कि हमें अपनी प्रकृति को हर तरह से पोषित करना है। संरक्षण करना है। प्रकृति में जल, जंगल और जमीन तीनों तत्व आते हैं। ये तीनों ऐसे तत्व हैं जिनके बिना हमारी प्रकृति पूर्ण नहीं कही जा सकती है। इनके बिना हमारा जीवन भी संकट में है। दुनिया में समृद्ध देश वही हैं जहां पर यह तीनों तत्व भरपूर मात्रा में हों। हमारा भारत देश वन्य जीवों और जंगलों के लिए प्रसिद्ध है।
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस वर्ष 1972 में स्वीडन के स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में की गई थी। वैश्विक पर्यावरणीय कार्रवाई की महत्वपूर्ण आवश्यकता को पहचानते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 28 जुलाई को प्रकृति की सुरक्षा के महत्व को उजागर करने के लिए इसे एक दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। हर साल इस दिन को दुनिया भर के लोग प्रकृति संरक्षण को हमारे ग्रह की देखभाल और सुरक्षा के बेहतरीन तरीकों में से एक के रूप में मनाते हैं। यह दिन ग्रह के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के महत्वपूर्ण महत्व को स्मरण कराता है।
उन लोगों के प्रयासों और सफलताओं को आगे लाता है, जो हर दिन प्रकृति को बचाने में लगे हैं। हमारे सामने आने वाली चुनौतियां बहुत बड़ी हैं। अच्छी बात यह है कि इन चुनौतियों का समाधान भी हमारी पहुंच में है। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस केवल चिंतन का दिन नहीं है, बल्कि अपनी प्रकृति को बचाने के लिए यह आह्वान है। हमें इस आह्वान को गंभीरता से लेकर प्रकृति को संभालने, सहेजने में अपनी महत्ती भूमिका निभानी है।
प्राकृतिक वनों की कटाई और अवैध वन्यजीव व्यापार जैसी बड़ी समस्याओं का सामना हम कर रहे हैं। हर किसी को हरित जीवनशैली अपनाने के लिए अपने दैनिक जीवन में पर्यावरण के अनुकूल गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए। स्वच्छ भारत अभियान, प्रोजेक्ट टाइगर, भविष्य के लिए मैंग्रोव (एमएफएफ) कुछ ऐसी पहल हैं, जिन्हें भारत ने प्रकृति के संरक्षण के लिए शुरू किया है। विश्व प्रकृति दिवस हमारे ग्रह के प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के जागरुक करता है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता के नुकसान की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे विश्व में प्रकृति संरक्षण दिवस एक उम्मीद लिए खड़ा है। हमारे देश में भी वन्य जीवों की अनेक और विचित्र प्रजातियां पाई जाती हैं।
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कुछ आसान बदलावों से जीवनशैली बनाएं बेहतर

प्रकृति को दें उपहार
प्रकृति ने हमें बहुत ही बेहतर वस्तुएं दी हैं, ऐसे में हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम प्रकृति को कुछ दें। हमें प्रकृति सहेजने के लिए जमीन में उपलब्ध पानी का तब ही उपयोग करना चाहिए, जब हमें सख्त जरूरत हो। उपयोग किए गए पानी का चक्रीकरण करें, ताकि पानी की उपयोगिता बनी रही। जमीन के पानी को फिर से स्तर पर लाने के लिए बरसाती पानी को सहेजने की व्यवस्था करें। घर, दफ्तर या अन्य किसी स्थान पर पानी को खुला और व्यर्थ ना बहने दें। प्रकृति सहेजने के लिए सिर्फ सरकार के ही भरोसे ना रहें, अपितू अपने स्तर पर भी प्रयास करके बदलावों में अपना योगदान करें।
डिजिटल युग में कागज़ की उपयोगिता को खत्म कर दें

प्रदूषण फैलाने वालों से तौबा करें। खुद को फिट रखने और प्रकृति को सही रखने के लिए पैदल चलने की भी आदत डालें। या फिर साइकिल का इस्तेमाल करें।
पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास जारी रखें: प्रो. राम सिंह

ग्राम्य जीवन में भी हुए बदलावों से प्रकृति प्रभावित

प्रकृति संरक्षण में डेरा सच्चा सौदा का लाजवाब प्रयास
पौधारोपण के क्षेत्र में डेरा सच्चा सौदा के नाम गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में कई विश्व रिकॉर्ड दर्ज हो चुके हैं।
वर्ष 2009 में 15 अगस्त को पौधारोपण अभियान की शुरुआत के दिन मात्र एक घंटे में 9 लाख 38 हजार 7 पौधे लगाना। इसी दिन 8 घंटों में 68 लाख 73 हजार 451 पौधे रोपित करना। इसके दो वर्ष बाद 15 अगस्त 2011 में मात्र एक घंटे में 19,45,535 पौधे रोपित करना तथा चौथा रिकॉर्ड 15 अगस्त 2012 को तब बना जब डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत ने विश्वभर में मात्र 1 घंटे में 20 लाख 39 हजार 747 पौधे लगा दिए।
डेरा सच्चा सौदा का हर कार्य मानवता भलाई के साथ-साथ प्रकृति संरक्षण को भी बल देता है। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के आह्वान पर यहां के सेवादार पर्यावरण को हरियाली युक्त बनाने के लिए अब तक देश-विदेश में 17 करोड़ से अधिक पौधे रोपित कर चुके हैं। डेरा सच्चा सौदा द्वारा चलाए जा रहे मानवता भलाई के 168 कार्यों में से दर्जनों ऐसे कार्य हैं जो प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देते हैं, जैसे किसानों को पराली जलाने की बजाय गौशालाआें में चारे हेतु भेजने की प्रेरणा देना, जल संरक्षण के लिए प्रेरित करना, जीव सुरक्षा के तहत आवारा व बीमार पशु पक्षियों का इलाज कराना। पक्षियोंद्धार मुहिम के तहत पक्षियों के लिए घरों की छत पर दाना (चोगा) व पानी की व्यवस्था करना।
वहीं स्वच्छ समाज के अनुरूप सफाई महा अभियान ‘हो पृथ्वी साफ मिटे रोग अभिशाप’ चलाने के साथ-साथ गरीबी रेखा से नीचे परिवार जो अपने घर में शौचालय नहीं बना सकते, साध-संगत उनके घरों में शौचालय बनाकर देती है ताकि खुले में शौच जाना बंद हो तथा बैक्टीरिया वायरस ना फैलें। यही नहीं, प्राकृतिक आपदा की स्थिति से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण देना। बाढ़, भूकंप, बर्फबारी, सूखा इत्यादि प्राकृतिक आपदाआें के समय राहत पहुंचाना और पुनर्वास करवाना, वहीं प्रदूषण मुक्त मुहिम के तहत फसलों के अवशेषों को जलाने की बजाय खाद व तूड़ी बनाकर प्रदूषण रोकना तथा अस्थियों से परोपकार मुहिम में मानव अस्थियों पर पेड़ लगाकर समाज को प्रदूषण मुक्त बनाना इत्यादि।
 
            













































 
                             
                             
                            

















