Planning is necessary three to four years in advance the way will be easy. study abroad

तीन-चार साल पहले प्लानिंग जरूरी, राह होगी आसान विदेश में पढ़ाई:
विदेश में पढ़ाई करना स्टूडेंट्स के लिए किसी सपने की तरह होता है।

हालांकि अमीरों के लिए विदेश में पढ़ाई के लिए पैसे जुटाना कोई बड़ी बात नहीं है।

वहीं प्रतिभाशाली छात्रों को स्कॉलरशिप मिल जाता है, जिससे उनका आर्थिक बोझ कम हो जाता है, लेकिन साधारण परिवार के आम छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए पैसे की व्यवस्था करने में भारी समस्या आती है। यदि आप भी अपने बच्चे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पहले से ही प्लानिंग शुरू कर देनी चाहिए। एक अभिभावक के रूप में आप हमेशा अपने बच्चे को बेस्ट देना चाहते हैं।

इसमें अगर उसे पढ़ाई के लिए विदेश भेजना भी शामिल है तो इसकी तैयारी जितनी जल्दी शुरू कर सकें, उतना ही बेहतर होगा। अगर आपका बच्चा अभी छोटा है, तो आप उसकी पढ़ाई के पैसे आराम से जोड़ सकते हैं। लेकिन अगर आपका बच्चा एक-दो साल में ही विदेश जाने वाला है तो आपको यह ध्यान रखने की जरूरत है कि उसे किन-किन चीजों की जरूरत पड़ सकती है।

यहां हम आपको बता रहे हैं कि आप बच्चे को विदेश भेजने से पहले किन बातों का ध्यान रखें।

कब प्लानिंग शुरू करें:

विदेश में शिक्षा पाने के लिए जाने में कई बातें हैं। हर कदम के बारे में पहले से योजना बनाकर चलना बेहतर कदम हो सकता है। जल्द योजना बनाने से हर कदम की बेहतर तरीके से तैयारी हो पायेगी। आम तौर पर बच्चे 11वीं या 12वीं क्लास में इस बारे में सोचना शुरू करते हैं। इसके बाद उन्हें लगता है कि अब तो काफी देर हो चुकी है। यदि आपका बच्चा आपसे यह 9वीं क्लास में बता दे कि उसे बेहतर पढ़ाई के लिए विदेश जाना है, तो आपको काफी आसानी हो सकती है।

काउंसिलिंग सेशन:

किसी मेंटर की तलाश करें। यदि कोई वहां पढ़ने वाला या पढ़ चुका व्यक्ति मिल जाए तो उसे आपको सही स्थिति की जानकारी मिल सकती है। काउंसिलिंग सेशन में भी एप्टीच्यूड, कोर्स, कॉलेज, एप्लिकेशन प्रोसेस, बेस्ट आॅप्शंस, वीजा संबंधी औपचारिकताएं, डिपार्चर से पहले के वर्कशॉप और फाइनल डिपार्चर आदि के बारे में जानकारी मिल सकती है। इन सबमें हालांकि 8-10 महीने का समय लगता है, इससे बच्चे को तैयारी में काफी मदद मिलती है। यह ध्यान रखें कि कुछ काउंसलर बच्चे को किसी खास कोर्स की तरफ खींचने की कोशिश करते हैं, वे किसी खास यूनिवर्सिटी के लिए भी जोर देते हैं, क्योंकि इसमें उनकी रूचि होती है। उनसे बात करने से पहले सारी तैयारी रखें। अपना सवाल भी रखें और हर समय काउंसिलर की बात ही न सुनें।

नियमों को जानना जरूरी:

आपकी प्राथमिकता अलग हो सकती हैं। कोर्स चुनना, किस देश में जाना है और आखिर में किस यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया जाए, यह फैसला लंबी अवधि में बच्चे के लिए लाभदायक हो सकता है। कुछ केस में हो सकता है कि बेस्ट यूनिवर्सिटी में ही कोर्स करना चाहे, इसमें वही डेस्टिनेशन कंट्री बन जाती है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि एक तरफ जहां ग्लोबलाइजेशन का ट्रेंड बढ़ रहा है, वहीं छात्रों की रूचि विदेशों में पढ़Þाई करने व काम करने की ज्यादा है। इसके लिए उस देश में काम करने संबंधी वीजा के नियम, रिसर्च की संभावनाएं, इंटरनेशनल स्टूडेंट्स सैटिस्फेक्शन सूचकांक, रहने का खर्च आदि पर विचार करना चाहिए।

कोर्स का चुनाव:

यूनिवर्सिटी में लगातार नए कोर्स लांच किए जाते हैं, हालांकि यह हर जगह उपलब्ध नहीं होते। स्पेशल कोर्स के लिए पहले ही संपर्क करें, जो आपका बच्चा करना चाहता है। आप शुरूआत में ही कोर्स सेलेक्ट कर अपना समय बचा सकते हैं।

देश का चुनाव:

एक बार कोर्स चुनने के बाद आपको वह देश चुनना चाहिए जहां आप पढ़ाई करना चाहते हैं। हर देश में किसी कोर्स के लिए आवेदन करने के नियम अलग हो सकते हैं। कुछ देशों में एक से अधिक कॉलेज के लिए भी एक ही आवेदन काफी होता है, जबकि कई देशों में आपको हर कॉलेज में अलग से आवेदन करना होता है। इस बीच आपको सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों से भी जूझना पड़ता है। मसलन आपने पढ़ाई के लिए किसी देश को चुना और आपके परिवार के लोग चाहते हैं कि आप वहां ना जाएं। यह भी ध्यान रखें हर देश में आपको पढ़ाई के बाद काम करने के लिए वीजा नहीं मिलता।

यूनिवर्सिटी चुनें:

आप अपने बजट और यूनिवर्सिटी के रैकिंग के हिसाब से इसका चयन कर सकते हैं। आप वहां के फैकल्टी और प्लेसमेंट रिकॉर्ड को भी देख सकते हैं। पांच-दस कॉलेजों की एक लिस्ट तैयार करें और सावधानी से किसी एक कॉलेज को चुनें।

खर्च:

आखिरी समय में आपको फंड की समस्या नहीं होनी चाहिए। खासतौर पर जब आपका बच्चा पढ़ाई के लिए विदेश जाने को बिल्कुल तैयार हो। इसके लिए आप ब्रेक-अप तैयार करें और खर्च का अनुमान लगाते समय सही खर्च जोड़ें। अमेरिका में पढ़ाई के लिए भेजने में सालाना 25-50 लाख रुपए का खर्च आ सकता है। दूसरे कई देशों में हालांकि यह सस्ता है। इंटरनेशनल स्टडीज के मामले में काउंसिलिंग सेशन का खर्च प्रति सेशन 5000 रुपए आ सकता है। यदि आॅल इनक्लूसिव पैकेज की बात करें तो यह 75000-100000 लाख रुपए के बीच आता है। औसत रूप से हर कॉलेज के लिए एप्लिकेशन फीस करीब 75 डॉलर होती है और आपको एक बार में 5-10 कॉलेज में आवेदन करना पड़ सकता है। इसके अलावा रहने, खाने और आने-जाने का खर्च शामिल है।

स्कॉलरशिप:

यदि कोई बच्चा स्कॉलरशिप लेना चाहता है और इसके जरिये पढ़ाई करने में रूचि ले रहा हो तो इससे ट्यूशन फीस कम रखने में काफी मदद मिलती है। कुछ स्कॉलरशिप में ट्यूशन फीस का कुछ हिस्सा कवर होता है, जबकि कई में पूरी फीस शामिल होती है। जितना हिस्सा स्कॉलरशिप से मिल जाये, उसके बाद बची रकम अभिभावक या बैंक लोन से पूरी की जा सकती है।

अभी से करेंगे निवेश तो नहीं पड़ेगा बोझ

विदेश में पढ़ाई करना अब सिर्फ सपना नहीं रह गया है। अब कोई भी मध्यम वर्ग परिवार का बच्चा अपने इस सपने को असानी से पूरा कर सकता है। इसका कारण है मिडिल क्लास की लगातार बढ़ती खर्च शक्ति, वहीं दूसरी ओर महामारी के दौरान भी भारतीय छात्रों का विदेशी संस्थानों में जाने का सिलसिला कम नहीं हुआ है।

एक रिपोर्ट के अनुसार 2019-2020 के स्तर की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय छात्र आवेदकों की संख्या में 10 फीसदी जिनमें से भारतीय छात्रों के आवेदकों की संख्या में 28 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है। अब सवाल यह है कि सभी छात्र विदेश में पढ़ाई करने के अपने सपने को कैसे पूरा कर रहे हैं खास बात तो ये है कि इस दौरान यूनिवर्सिटीज की ट्यूशन फीस, हॉस्टल, ट्रैवल करने का खर्च करीब दोगुना हो चुका है। आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर विदेश में पढ़ाई के लिए स्टूडेंट्स अपने खर्च को किस तरह से पूरा कर रहे हैं।

एसआईपी इंवेस्टमेंट आॅप्शन :

यह आॅप्शन इस बात पर निर्भर करता है कि आप एसआईपी कितनी जल्दी शुरू करते हैं। यह आॅप्शन उन प्रोफेशनल्स के लिए सही है जो काम करने के साथ हायर एजुकेशन की ओर जाना चाहते हैं। एसआईपी सैलरीड प्रोफेशनल्स के लिए इंवेस्टमेंट और सेविंग दोनों तरीकों से शानदार आॅप्शन है। इंवेस्टमेंट की फ्रीक्वेंसी कैसी होनी चाहिए वो स्टूडेंट्स के विवेक पर निर्भर करता है।

एफडी एक अच्छा निवेश:

यदि हम देश में पढ़ाई पर आने वाले खर्चों की तुलना विदेश की पढ़ाई से करें तो इसमें एक बड़ा अंतर देखने को मिलता है। भारत के सबसे बड़े कॉलेजों और विश्वविद्यालयों (ज्यादातर सरकार द्वारा संचालित) में फीस बेहद कम है और आम तौर पर आपके द्वारा की जाने वाली बचत इसके लिए पर्याप्त है। यदि सरकारी संस्थान में एडमिशन नहीं मिल पाता है तो एक अच्छे प्राइवेट कॉलेज में 10 से 30 लाख रुपये खर्च करके ग्रेजुएशन किया जा सकता है। इसका मतलब है कि आपको हर साल एक लाख रुपये (बच्चे की स्कूली शिक्षा के दौरान) का खर्च आएगा। इसके लिए आप फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे सुरक्षित विकल्पों में निवेश कर सकते हैं, इसके जरिए पढ़ाई पर आने वाली इन खर्चों को मैनेज कर सकते हैं।

सुरक्षित एवं कोलेटरल बेस्ड एजुकेशन लोन :

कई सरकारी, प्राइवेट बैंकों के अलावा नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी कोलेटरल बेस्ड एजुकेशन लोन लोन दे रहे हैं। जिसके बदले में आपको घर या लैंड गिरवी रखनी पड़ती है। जिससे आपको टैक्स सेव करने में भी मदद मिलती है। इस लोन को चुकाने के लिए आपको डिग्री मिलने के छह महीने के बाद तक का समय मिलता है। भले ही आपको यह लोन चुकाने के लिए सात साल का समय मिलता है।

ऐसे में स्टूडेंट्स को इस तरह का लोन लेने से कई तरह से विचार करना चाहिए। कई बैंक आमतौर पर ट्यूशन फीस, आवास, यात्रा और प्रयोगशाला शुल्क जैसे लगभग 85-90 फीसदी खर्च को कवर करते हैं, जबकि एनबीएफसी कॉस्ट आॅफ अटेंडेंस को 100 फीसदी तक कवर करते हैं। एनबीएफसी में लोन अमाउंट पर कोई लिमिट नहीं है। वहीं बैंक महिलाओं को ब्याज दरों में रियायत दे सकते हैं।

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