Happy Diwali

Happy Diwali जलाएं ज्ञान का दीप -आदमी मिट्टी के दीए में स्नेह की बाती और परोपकार का तेल डालकर उसे जलाते हुए भारतीय संस्कृति को गौरव और सम्मान देता है। क्योंकि दीया भले मिट्टी का हो मगर वह हमारे जीने का आदर्श है, हमारे जीवन की दिशा है, संस्कारों की सीख है, संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का माध्यम है। दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है, जब भीतर का अंधकार दूर हो। हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है।

वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है। जब ज्ञान का दीप जलता है तब भीतर और बाहर दोनों आलौकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य स्वत: समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह-मूर्च्छा को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई पर्यावरण प्रदूषण और अनैतिकता जैसी बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है। मोह का अंधकार भगाने के लिए धर्म का दीप जलाना होगा। जहाँ धर्म का सूर्य उदित हो गया, वहाँ का अंधकार टिक नहीं सकता।

दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है, दीये बाहर के ही नहीं, दीए भीतर के भी जलने चाहिए, क्योंकि दीया कहीं भी जले, उजाला देता है। दीए का संदेश है-हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएँ जीवन की सार्थक दिशाएँ खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊँचाइयों के सपने देखते हैं, जबकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरूआत का संकल्प है।

करें आतिशबाजी से बच्चों की सुरक्षा

दीपावली खुशियों का त्यौहार है। दीपावली में खुशी का इजहार पटाखे जलाकर किया जाता है। दीपावली में सभी लोग पटाखे छोड़ने में तल्लीन रहते हैं लेकिन कभी-कभी पटाखे छोड़ने के क्रम में यदि असावधानीवश भूल हो जाती है, तब दीपावली की सारी खुशियाँ गम में बदल जाती हैं। इसलिए यह माता-पिता के लिए यह बहुत जरूरी है कि जब बच्चे आतिशबाजी जलायें तो वे बच्चे को अकेले न छोड़ें बल्कि पूरी तरह मुस्तैद रहें कि कहीं बच्चे कोई असावधानी न बरतें।

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let the lights of happiness lit - Sachi Shikshaकई युवा आतिशबाजी के साथ दूसरों को प्रभावित करने के लिए कलाबाजी आरंभ कर देते हैं। बस यहीं से दुर्घटनाओं की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। कई बार बच्चे इन युवाओं का अनुकरण करने में दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। आतिशबाजी के कारण हर वर्ष दीपावली पर अनेक बच्चों की जानें भी चली जाती हैं।

हमें हमेशा ध्यान देना चाहिए कि बच्चे कभी भी अधिक आवाज करने वाले पटाखे न छोड़ें। इसी तरह फुलझड़ी जलाने के पश्चात् अपने को तथा बच्चों को दूर ही रखें। कभी-कभी बच्चे इसे आपस में सिर पर घुमाने-फिराने लगते हैं। यह भी खतरनाक प्रवृत्ति है। इससे भी बचना चाहिए। इससे आग पकड़ने या फैलने का खतरा बना रहता है।
बच्चों के लिए तो दीपावली का मुख्य आकर्षण पटाखे ही होते हैं, इसलिए यह भी संभव नहीं है कि बच्चे पटाखे छोड़ें, परंतु थोड़ी-सी सावधानी या सतर्कता बरती जाए

तो आपके बच्चों की दीपावली भी सुरक्षित बनी रह सकती है:-

  • बच्चों को कभी भी अनाप-शनाप पटाखे खरीदने की छूट न दें। बेहतर होगा कि माता-पिता या फिर अभिभावक स्वयं जाकर ऐसे पटाखे खरीदें जो बच्चे आराम से जला सकें।
  • बच्चों को कभी अकेले पटाखे नहीं छोड़ने दें।
  • पटाखे जलाने के लिए लंबे डंडे में मोमबत्ती बांधकर प्रयोग करें। बच्चों को जेब में माचिस या पटाखे न रखने दें।
  • किसी पटाखे की दुकान के पास कभी आतिशबाजी न करें।
  • यदि पटाखा एक बार में न जले तो उसके पास जाकर उसका पुनरीक्षण का प्रयास कभी न करें। ये अचानक फटकर दुर्घटना का कारण बन सकते हैं।
  • फुलझड़ी के अलावा किसी भी पटाखे को हाथ में लेकर न छोड़ें, खासकर अनार को कभी नहीं, क्योंकि सबसे ज्यादा दुर्घटना अनार छोड़ने में ही होती हैं।
  • बच्चों को समझाएं कि वे पटाखे जलाते समय झुकें नहीं अन्यथा अचानक पटाखा फटने से उनका चेहरा जल सकता है। बच्चों को हाथ में पटाखा चलाने से भी रोकें।
  • आतिशबाजी करते समय आस-पास किसी बड़े पात्र में पानी अवश्य रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर आग बुझाने के यह काम आ सके।
  • कार, स्कूटर, जेनरेटर या किसी ज्वलनशील पदार्थ के पास रखकर पटाखे न जलाएं। इससे आग लगने का खतरा रहता है।
  • रॉकेट जलाते समय बोतल का इस्तेमाल करें। बोतल में रॉकेट को सीधा खड़ा करें ताकि वह सीधा आकाश में जाए।
  • बच्चे अनार आदि जलाकर उससे निकलती रोशनी में कूदने लगते हैं। उन्हें ऐसा करने से राकें, क्योंकि वस्त्रों पर पड़ी एक भी चिंगारी मौत का कारण बन सकती है।
  • घर पर लाये गए पटाखों को बच्चों की पहुंच से दूर रखें, क्योंकि इनमें लगे रासायनिक तत्व बच्चों के मुंह में जाने से काफी हानि हो सकती है।
  • पटाखे छोड़ते समय आस-पास के घरों एवं सूखे पुआल, लकड़ी आदि के ढेर का ख्याल रखें।
  • छोटे बच्चे के हाथ में पटाखे या फुलझड़ी न पकड़ाएं। उन्हें दूर से ही आनंद लेने दें। उत्साह में दौड़ते बच्चों के पांव जली फुलझड़ी के गरम तार पर पड़ सकते हैं, इसलिए बच्चों को जूता पहना कर रखें तथा गरम तारों को पानी में रखते जाएं। बच्चों को चक्री के आस-पास नाचने न दें, क्योंकि इसकी चिंगारी कपड़े पर पड़ कर आग पकड़ सकती है।
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दुर्घटना की स्थिति में प्राथमिक उपचार

  • जले हुए या चोट लगे हिस्से को अविलम्ब ठण्डे पानी से अच्छी तरह धो दिया जाए ताकि सतह की गर्मी समाप्त हो जाए, वरना ये शरीर के नाजुक तंतुओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • शरीर की जली सतह को अच्छी तरह साफ कर ‘सोफरामाइसिन’ या अन्य कोई कोल्ड क्रीम लगाने से तुरंत आराम मिलता है।
  • अगर चोट या जलने से हाथ घायल हो जाएं, तब साफ पानी से घाव साफ करने के उपरान्त हाथों को ऊँचा उठाकर रखें। इससे दर्द एवं सूजन दोनों कम होती है।
  • चेहरे के घायल होने की घटनाएं अत्यधिक होती हैं। उपरोक्त आवश्यक प्राथमिक चिकित्सा के उपरांत अवश्य निकटवर्ती अस्पताल में मरीज को ले जाएं तथा आँखों की स्थिति का मूल्यांकन करवा लें। यह अत्यावश्यक है।
  • जली या कटी चोट में टैटनेस का इंजेक्शन लेना प्राथमिक चिकित्सा का अंग है।
  • पटाखे जलाते समय नारियल तेल, बरनॉल, पानी, बालू, कंबल या रजाई जैसी वस्तुएं साथ रखें ताकि किसी तरह की दुर्घटना होने पर काबू पाया जा सके।
  • पटाखें छोड़े अवश्य मगर अत्यंत सावधानी से ताकि दीपावली का आनंद गम में न बदलने पाये। -आनन्द कुमार अनन्त