प्रकृति के लिए वरदान है डेरा सच्चा सौदा Dera sacha sauda is a true deal for nature
पूज्य गुरु जी के पावन सानिध्य में डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों द्वारा चलाए गए
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Table of Contents
पौधारोपण अभियानों का ब्योरा वर्ष पौधारोपण
2009 | 68, 73, 451 |
2010 | 43, 00, 057 |
2011 | 40, 00, 000 |
2012 | 31, 21, 203 |
2013 | 35, 36, 264 |
2014 | 35, 00, 000 |
2015 | 50, 00, 000 |
2016 | 40, 00, 000 |
2017 | 35, 00, 000 |
2018 | 24, 84, 900 |
2019 | 7, 38, 515 |
कुल 4, 10 ,54, 390 |
पौधारोपण में डेरा सच्चा सौदा के नाम दर्ज चार गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड
- 15 अगस्त 2009 को मात्र एक घंटे में लगाए 9 लाख 38 हजार 007 पौधे।
- 15 अगस्त 2009 को 8 घंटों में रोपित किए 68 लाख 73 हजार 451 पौधे।
- 15 अगस्त 2011 को मात्र एक घंटे में लगाए 19 लाख 45 हजार 535 पौधे।
- 15 अगस्त 2012 को मात्र 1 घंटे में संगत ने 20 लाख 39 हजार 747 पौधे लगाए।
पर्यावरण एवं प्रकृति को बचाने के लिये सरकारों एवं सामाजिक संगठनों ने कई बेहतर उपाय किए हैं, लेकिन फिर भी कुछ ऐसे खतरे बरकरार हैं, जिनसे बचने की संभावना काफी जटिल है। ऐसे ही खतरों में शामिल है जल प्रदूषण एवं पीने के स्वच्छ जल की निरन्तर घटती मात्रा। धरती पर जीवन के लिये जल के साथ-साथ स्वच्छ वातावरण की भी आवश्यकता होती है। पर्यावरण से जुड़ी कई तरह की समस्याओं एवं खतरों को लेकर वैश्विक स्तर पर चिंता तो जाहिर की जाती है, मगर अब तक इस दिशा में कोई खास पहल नहीं हो पाई है।
यही कारण है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण जिस धु्रत गति से औद्योगिकीकरण और अनियोजित शहरीकरण का ग्राफ बढ़ता जा रहा है उससे अपशिष्ट की मात्रा व सीमित भंडारों का लगातार दोहन चिंता का विषय बना हुआ है। जल में प्रदूषकों के सीधे और लगातार मिलने से पानी में उपलब्ध खतरनाक सूक्ष्म जीवों को मारने की क्षमता वाले ओजोन के घटने के कारण जल की स्व-शुद्धिकरण क्षमता घट रही है।
पर्यावरण की ऐसी बिगड़ती दशा को सुरक्षा देने और उसके संरक्षण को ध्यान में रखते हुए एक सार्थक पहल की गई थी। विश्व पर्यावरण दिवस मनाने के पीछे यह उद्देश्य है कि लोगों को इस बारे में जागरूक किया जा सके कि आखिर क्यों पर्यावरण की सुरक्षा जरूरी है। ये एक वैश्विक समस्या है जो विकसित और विकासशील दोनों देशों को प्रभावित कर रही हैं। दुनिया की बहुत सारी नदियों की तरह भारतीय नदियों का पानी भी प्रदूषित हो चुका है, जबकि इन नदियों को हमारी संस्कृति में हमेशा पवित्र जगह दी जाती रही है।
बेशक विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर दुनियाभर में अलग-अलग तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस दौरान बड़े स्तर पर पौधारोपण भी किया जाता है और साथ ही पर्यावरण को संरक्षित रखने पर हर वर्ष मंथन भी होता है, लेकिन अभी तक पर्यावरण अपने मूल रूप से शायद कोसों दूर है।
हम सबको मिलकर इस पर्यावरण दिवस पर संकल्प लेना चाहिए कि अनमोल उपहार के रूप में मिली प्रकृति की अमूल्य धरोहर को फिर से संजोने में एकजुट होकर प्रयास करेंगे, तभी इस दिवस की सार्थकता पूर्ण हो पाएगी।
10 वर्षों में 4.10 करोड़ ‘पौधे’ लगाए, 6 साल में 32 महानगरों को किया ‘स्वच्छ’
पूज्य गुरू जी के मुखारबिंद से…
पौधा एक दोस्त की भांति होता है, इसकी पूरी संभाल करनी चाहिए। पौधे प्रदूषण व बीमारियों से राहत प्रदान करते हैं, जिससे समस्त सृष्टि का भला होता है। इसीलिए ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएं और उनकी संभाल भी अपने बच्चों की तरह करें।
गजब! ट्री ट्रांसप्लांट का अनूठा फार्मूला
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने ट्री ट्रांसप्लांट की एक ऐसी अनोखी तकनीक इजाद की है, जिसके तहत पूरे वृक्ष को एक स्थान से दूसरे स्थान पर सुरक्षित रोपित किया जा सकता है। पूज्य गुरु जी द्वारा बताए फार्मूले से डेरा सच्चा सौदा के आश्रमों व संस्थानों में निर्माण कार्यों के दौरान बीच में आने वाले पेड़ों को काटा नहीं जाता, बल्कि ट्री ट्रांसप्लांट के तहत पेड़ को खोदकर दूसरी जगह रोपित कर दिया जाता है।
पर्यावरण संरक्षण की जहां भी, जिस भी मंच पर बात चलती है तो बरबस ही डेरा सच्चा सौदा का नाम सबकी जुबां पर आ जाता है। शायद इसकी एक बड़ी वजह यह है कि डेरा सच्चा सौदा ने स्वयं को पर्यावरण संरक्षण के लिए एक वरदान के रूप में साबित करके दिखाया है।
पूज्य गुरू संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के एक आह्वान मात्र पर डेरा सच्चा सौदा की करोड़ों की संख्या में साध-संगत ने पर्यावरण संरक्षण की एक के बाद एक, दर्जनों ऐसी मिसालें पेश की हैं जिसे देखकर लोग दंग रह गए। पौधारोपण में चार गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाला डेरा सच्चा सौदा पिछले करीब 10 वर्षों में 4 करोड़ से ज्यादा पौधे लगाकर विरान होती धरती को हरियाली की सौगात दे चुका है।
अहम बात यह भी है कि साध-संगत डेरा सच्चा सौदा के विशेष कार्यक्रमों के अलावा जैसे शादी, जन्मदिन, सालगिरह व अन्य शुभ कार्याें पर भी पौधारोपण करती रहती है।
यही नहीं, डेरा सच्चा सौदा ने भारत के माथे पर लगे डर्टी इंडिया के दाग को मिटाने के लिए भी एक अनोखी मुहिम शुरू की है, जिसे आमजन सफाई महाअभियान के तौर पर बखूबी जानता है।
21 सितंबर 2011 से देश की राजधानी दिल्ली से ‘हो पृथ्वी साफ, मिटे रोग अभिशाप’ के स्लोगन से शुरू हुए इस महाअभियान ने देश के कोने-कोने को स्वच्छता की अनूठी सौगात दी। डेरा सच्चा सौदा का स्वच्छता रूपी चक्र अपने 32 चरण पूरे कर चुका है, जिसमें दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों के अलावा जयपुर, बीकानेर, गुड़गांव, जोधपुर, सरसा, कोटा, होशंगाबाद, पुरी (उड़ीसा), हिसार, ऋषिकेश, गंगा जी, हरिद्वार, अजमेर, पुष्कर, रोहतक, फरीदाबाद, नरेला, करनाल, कैथल, नोएडा, नई दिल्ली, सीकर, अलवर, दौसा, सवाई माधोपुर, श्योपुर, टोंक (मध्यप्रदेश) व पानीपत जैसे शहरों को चकाचक बना चुका है।
इस अभियान की खास बात यह भी रही है कि डेरा अनुयायी सफाई से जुड़े हर प्रकार के उपकरण स्वयं लेकर आते हैं और अनुशासित तरीके से गंदगी से अटे नालों, रजबाहों को साफ करते हैं, वहीं बुहारी के द्वारा शहर का कोना-कोना चमकाया जाता है।
डेरा सच्चा सौदा ने पानी की बर्बादी को भी रोकने के सराहनीय प्रयास किए हैं। बारिश के पानी को संचय कर उसे पेयजल में प्रयोग करने के लिए भी डेरा सच्चा सौदा की ओर से मुहिम चलाई गई, जिसका अनुसरण करते हुए सत्संगियों ने घरों में बरसाती पानी को स्टोर करने की प्रणाली अपनाई हुई है। वहीं डेरा सच्चा सौदा के प्रयासों से ही अनेक डेरा प्रेमियों द्वारा कम पानी वाली फसलें बोई जाती हैं, जिससे भूमिगत जल को बचाने की मुहिम को भरपूर सहयोग मिल रहा है।
फसलों के अवशेष जलाने से परहेज
डेरा सच्चा सौदा से जुड़े श्रद्धालु किसान भी फसलों के अवशेष न जलाकर अनोखे तरीके से पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं। डेरा प्रेमी किसानों ने पूज्य गुरु जी के आह्वान पर खेतों में पराली व अन्य अवशेष न जलाने का संकल्प लिया है। इससे दोहरा फायदा देखने को मिल रहा है। जहां वातावरण दूषित होने से बचता है, वहीं जमीन की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है।
विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत कैसे हुई
इस दिन की शुरूआत संयुक्त राष्ट्र महासभा और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने 16 जून 1972 को स्टॉकहोम में की थी। 5 जून 1973 को पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया, जिसमें हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर विचार किया गया। 1974 के बाद से विश्व पर्यावरण दिवस का सम्मेलन अलग-अलग देशों में आयोजित किया जाने लगा।
भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 19 नवंबर 1986 में लागू किया गया। यूएनईपी हर साल पर्यावरण संरक्षण के अभियान को प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष विषय (थीम) और नारा चुनता है। मेजबान देश (होस्ट कंट्री) में विभिन्न देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं और पर्यावरण के मुद्दों पर बातचीत और काम होता है।
क्या खास होता है इस दिन
5 जून को पूरी दुनिया में पर्यावरण से जुड़ी अनेक गतिविधियों का आयोजन होता है। पर्यावरण सुरक्षा के उपायों को लागू करने के लिए हर उम्र के लोगों को प्रोत्साहित किया जाता है। पेड़-पौधे लगाना, साफ-सफाई अभियान, रीसाइकलिंग, सौर ऊर्जा, बायो गैस, बायो खाद, सीएनजी वाले वाहनों का इस्तेमाल, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग जैसी तकनीक अपनाने पर बल दिया जाता है।
सड़क रैलियों, नुक्कड़ नाटकों या बैनरों से ही नहीं, एसएमएस, फेसबुक, ट्विटर, ईमेल के जरिये लोगों को जागरूक किया जाता है। बच्चों के लिए पेंटिंग, वाद-विवाद, निबंध-लेखन जैसी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। और जो इनमें शामिल नहीं हो पाते, वो घर बैठे ही यूएनईपी की साइट पर जाकर या खुद से यह प्रॉमिस करते हैं कि भविष्य में वे कम से कम अपने घर और आसपास के पर्यावरण को स्वस्थ बनाने का प्रयास करेंगे।
आप भी कर सकते हैं योगदान
- प्लास्टिक, पेपर, ई-कचरे के लिए बने अलग-अलग कूड़ेदान में कूड़ा डालें ताकि वह आसानी से रीसाइकल के लिए जा सके।
- वाहन चालक निजी वाहन की बजाय कार-पूलिंग, गाड़ियों, बस या ट्रेन का उपयोग करें।
- कम दूरी के लिए साइकिल चलाना पर्यावरण और सेहत के लिहाज से बेहतर है।
- पानी बचाने के लिए घर में लो-फ्लशिंग सिस्टम लगवाएं, जिससे शौचालय में पानी कम खर्च हो। शॉवर से नहाने की बजाय बाल्टी से नहाएं।
- ब्रश करते समय पानी का नल बंद रखो। हाथ धोने में भी पानी धीरे चलाएं।
- गमलों में लगे पौधों को बॉल्टी-मग्गे से पानी दें।
- गर्मी, भूक्षरण, धूल इत्यादि से बचाव तो कर ही सकते हैं।
- पक्षियों को बसेरा भी दे सकते हैं, फूल वाले पौधों से आप अनेक कीट-पतंगों को आश्रय व भोजन दे सकते हैं।
- डीजल जेनेरेटर को कम से कम इस्तेमाल करें।
- शहरी पर्यावरण में रहने वाले पशु-पक्षियों जैसे गोरैया, कबूतर, कौवे, मोर, बंदर, गाय, कुत्ते आदि के प्रति सहानुभूति रखें व आवश्यकता पड़ने पर दाना-पानी या चारा उपलब्ध कराएँ।
- ताप विद्युत संयंत्रों के उत्सर्जन में कटौती, उद्योगों के लिए कड़े उत्सर्जन मानक तैयार करके, घरों में ठोस ईंधन के इस्तेमाल में कमी लाकर।
- ईंट निर्माण के लिए जिग-जैग ईंट-भट्टों के इस्तेमाल और तत्परता के साथ वाहन उत्सर्जन मानकों को कड़ा बनाने जैसे नीतिगत उपायों से प्रदूषित पर्यावरण में सुधार लाया जा सकता है।
- नल में कोई भी लीकेज हो तो उसे प्लंबर से तुरंत ठीक करवाएं ताकि पानी टपकने से बर्बाद न हो।
- नदी, तालाब जैसे जल स्त्रोतों के पास कूड़ा ना डालें। यह कूड़ा नदी में जाकर पानी को गंदा करता है।
- घर की छत पर या बाहर आंगन में टब रखकर बारिश का पानी जमा करें, इसे फिल्टर करके फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं।
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