पहिए का आविष्कार
पहिया का आविष्कार आज से लगभग 5000 साल पहले यानी महाभारत काल युग में भारत में ही हुआ था। उस समय पहिए का उपयोग रथों में किया जाता था। कहा जाता है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता किन्हीं कारणों से अचानक नष्ट हो गई यहां तक कि खुदाई में भी ऐसे कई सबूत मिले हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि पहिए का प्रचलन सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के बीच व्यापक पैमाने पर था।
पहिया एक ऐसा यांत्रिक पुर्जा है जो चक्र के आकार का होता है और एक धुरी पर घूमता है। इस पहिये के इतिहास से जुड़ी दिलचस्प जानकारी फायदेमंद साबित हो सकती है। सबसे पुराने पहियों के सबूत 3500 ईसा पूर्व के हैं जो प्राचीन मेसोपोटामिया में पाए गए। इन पहियों का इस्तेमाल मिट्टी के बर्तन बनाने वाले किया करते थे।
पहिये के निर्माण का दौर वो समय था जब जानवरों को पालतू बनाकर रखा जाता था और खेती की जाती थी। इस दौरान इंसानों ने सुइयां, कपड़े, टोकरियां, बांसुरियां और नाव जैसी चीजें बनाना सीख लिया था। इंसान द्वारा सबसे पहले प्रयोग में लिया जाने वाला पहिया हजारों सालों तक बर्तन बनाने में इस्तेमाल किया जाता रहा।
पहले लेथ मशीनें बनाई गई जिन्हें बर्तन बनाने वाले हाथ या पैर से घुमाते थे। इसकी कुछ सदियों बाद, बर्तन बनाने वालों ने लेथ या पहियों की मदद से चक्कों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और वो भारी पत्थरों का इस्तेमाल करने लगे ताकि घूमने से ज्यादा ऊर्जा तैयार हो सके। पहियों को घुमाने के लिए घर्षण की समस्या ना हो, इसके लिए उन्होंने पहिये के बीच में गोल छेद करना जरुरी समझा। इसके अलावा जिस डंडे पर ये पहिया लगाना हो, उसका भी गोल और नरम होना जरुरी था।
यह पहिया काफी समय तक चलता, लेकिन कुछ कारणों की वजह से यह फेल हो गया। इसके बाद लकड़ी के पहिये बनाए गए, पर वह भी कुछ खास न रहे। बदलाव की इस कड़ी में मोटी डंडियों वाले एक नये किस्म के पहिये को बनाया गया। कहा जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग इसी पहिये का इस्तेमाल करते थे। उनकी बनाई कुछ कलाकृतियों में इसके प्रमाण मिलते हैं। डंडी वाले यह पहिये रथ, रिक्शा और ठेले जैसी चीजों में इस्तेमाल होते थे। 1870 तक मोटी डंडियों वाला यह पहिया चलता रहा। फिर इसमें बदवाल करके डंडियों को पतली तारों में तब्दील कर दिया गया था। ऐसे पहिये आजकल साइकिल पर देखने को मिलते हैं। यह एक जमाने में गाड़ियों में इस्तेमाल हुआ करते थे।
पुरातात्विक सबूतों के अनुसार ये आविष्कार यूरेशिया और मध्य पूर्व में तेजी से फैला। 3400 ईसा पूर्व से पहिये के इस्तेमाल के असंख्य सबूत मिलते हैं जिनमें रथ और चौपहिया गाड़ियों के चित्र, छकड़ों के मॉडल, पहियों और उनके लकड़ी के एक्सलों के नमूने भी मिलते हैं। सबसे पुराना पहिया एक लकड़ी का स्लोवेनियाई मॉडल है जो 5,100 से 5,350 साल पहले बना था। ऐसा माना जाता है कि पहिए का अविष्कार भी भारत में हुआ था लेकिन कुछ इतिहासकार मानते हैं कि सबसे पहले आविष्कार ईसा से 3500 वर्ष पूर्व मोसोपोटामिया (इराक) में हुआ था। सबसे पहले पहिया पेड़ को काटकर उसके तने से बनाया गया था। उनका कहना था कि इराक में ही पहिए का आविष्कार हुआ था।
आज किताबों में भी यही पढ़ाया जाता है लेकिन सच तो यह है की पहिया का आविष्कार आज से लगभग 5000 साल पहले यानी महाभारत काल युग में भारत में ही हुआ था। उस समय पहिए का उपयोग रथों में किया जाता था। कहा जाता है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता किन्हीं कारणों से अचानक नष्ट हो गई यहां तक कि खुदाई में भी ऐसे कई सबूत मिले हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि पहिए का प्रचलन सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के बीच व्यापक पैमाने पर था। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता सिंधु घाटी जो 1500 से 3000 ईसा पूर्व पुरानी है, के अवशेषों में प्राप्त खिलोने या हाथी गाड़ी भारत के संग्रहालय रखी गई है जो यह प्रमाण देती है कि पहिया का आविष्कार भारत में हुआ था, ना कि इराक में हुआ था।
इतिहासकारों के अनुसार सिन्धु घाटी की सभ्यता और सुमेरियन सभ्यता के बीच घनिष्ठ व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संबंध थे, तो निश्चित ही व्यापार के साथ ही आविष्कृत वस्तुओं का भी आदान-प्रदान होता ही होगा। लेकिन उक्त दोनों सभ्यताओं के 2000 वर्ष पूर्व राम जी के काल में भी तो रथ थे, चक्र थे, धनुष-बाण थे, पुष्पक विमान थे, घट्टी थी और कई तरह के आग्नेयास्त्र थे, तो रामायण काल की सभ्यता तो इससे भी प्राचीन है। दुनिया की सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद में रथ का उल्लेख मिलता है, चक्र का उल्लेख मिलता है, विमानों का उल्लेख मिलता है।
जबकि मध्यकाल तक इराक आवागमन के लिए ऊंटों का इस्तेमाल करता रहा है। पहिए का आविष्कार मानव विज्ञान के इतिहास में महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। पहिए के आविष्कार के बाद ही साइकल और फिर कार तक का सफर पूरा हुआ।