World Population Day

बढ़ती आबादी पर्यावरण व विश्व के लिए खतरा : World Population Day

चीन ने बदली नीति: अब तीन बच्चे पैदा करने की छूट

चीन की जनसंख्या लगभग एक अरब 41 करोड़ है और यहां आबादी पर काबू रखने के लिए बेहद आक्रामक तरीके से प्रयास होता रहा है। चीन में लंबे समय तक एक बच्चे की नीति को सख्ती से लागू किया गया था। कई सालों बाद नीति बदल गई और लोगों को दो बच्चे पैदा करने की छूट दी गई। लेकिन, जन्म पर नियंत्रण की इस नीति में अब एक बड़ा बदलाव आया है। चीन में लोगों को तीन संतानों की अनुमति दे दी गई है।

जनगणना में आए आंकड़ों में जन्मदर में हो रही गिरावट को देखते हुए चीन ने तीन बच्चों की नीति अपनाने की घोषणा की है। चीन की जनसंख्या पिछले कई दशकों के मुकाबले सबसे धीमी गति से बढ़ रही है। पिछले दस सालों में यहां आबादी बढ़ने की औसत सालाना दर 0.53 फीसदी रही है। यानी चीन में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है और बच्चे पैदा होने की दर धीमी है। हालांकि, चीन अब भी दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है।

चीन ने साल 2016 में दशकों से चली आ रही एक बच्चे की नीति को खत्म कर दिया था। 1979 की एक बच्चे की नीति के तहत उसका उल्लंघन करने वालों को नौकरी तक गंवानी पड़ी, सजा का सामना करना पड़ा और जबरन गर्भपात तक हुए। करीब 36-37 सालों तक इसी नीति को बनाए रखने के बाद आखिर चीन को 2016 में दो बच्चों की अनुमति देनी पड़ी। अब पांच सालों में ही ये छूट बढ़कर तीन बच्चों तक आ गई है।

विश्व की आबादी आज 7.9 अरब को पार कर चुकी है, लेकिन 11 जुलाई 1987 को जब यह आंकड़ा पांच अरब हुआ तो लोगों के बीच जनसंख्या संबंधी मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस की नींव रखी गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि आज बढ़ती जनसंख्या पूरे विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसी बीच चीन ने दस साल की जनगणना के आंकड़े जारी किए। बहरहाल, इन आंकड़ों के हिसाब से देखें तो 2011 से 2020 के बीच चीन की जनसंख्या वृद्धि दर 5.38% रही। 2010 में यह 5.84% थी। जाहिर है जनसंख्या वृद्धि दर कम रही।

हालांकि चीन ने बर्थ रेट में गिरावट चिंता बताकर नए नियम बनाकर तीन बच्चे पैदा करने की पाबंदी को हटा दिया है। अब उन्होंने जनसंख्या बढ़ाने का फैसला किया है, लेकिन भारत की दृष्टि से यदि जनसंख्या की बात करें तो यह बहुत गंभीर एवं चिंतनीय है। दुनिया की लगभग 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है, जबकि दुनिया की केवल 2.4 फीसद जमीन, चार फीसद पीने का पानी और 2.4 फीसद वन ही भारत में उपलब्ध हैं। इसलिए भारत में जनसंख्या-संसाधन अनुपात असंतुलित है जो एक बहुत ही चिंतनीय विषय है। यह विषय तब और गंभीर हो जाता है, जब जनसंख्या लगातार बढ़ रही हो और संसाधन लगातार कम होते जा रहे हों।

वर्तमान में भारत की जनसंख्या करीब 1.37 अरब और चीन की 1.42 अरब है। एक रिपोर्ट में ये संभावना जताई गई है कि 2050 तक भारत 161 करोड़ का आंकड़ा पार करके टॉप पर पहुंच जाएगा। जनंसख्या विस्फोट के कगार तक पहुंच चुकी भारत की जनसंख्या पिछले 100 वर्षों में पांच गुना बढ़ी है और वर्ष 2050 तक वह चीन को भी पीछे छोड़ देगी।

बढ़ती जनसंख्या के दुष्परिणाम

प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव:

अधिक आबादी मतलब, प्राकृतिक संसाधनों की अधिकतम दोहन। अगर ज्यादा लोग होंगे तो उनके खाने-पीने से लेकर रहने और पहनने तक के लिए ज्यादा चीजों की जरूरत पड़ेगी। सभी चीजों को उपलब्ध कराने के लिए लोग तरह-तरह के जुगाड़ लगाएंगे और वही जुगाड़ पृथ्वी पर अपना दबाव बनाता रहेगा। फलस्वरुप ग्लोबल वार्मिंग और खाने-पीने की चीजों की कमी जैसे तमाम मुद्दों पर चिंता बढ़ने लगेगी

गरीबी में बढ़ोतरी:

जाहिर सी बात है कि लोग ज्यादा होंगे तो प्राकृतिक संसाधनों का दोहन ज्यादा होगा। लेकिन प्रकृति भी एक सीमित मात्रा में संसाधन दे सकती है। उसके अलावा भी बहुत सारी चीजों की जरूरत पड़ती है। गरीबी के चलते लोगों के बच्चे ना तो पढ़ पाते हैं और ना ही आगे बढ़ पाते हैं। इस दशा में वो गरीब के गरीब ही रह जाते हैं।

पलायन की मजबूरी:

इस देश में बहुत सारी जगह ऐसी है जहां पर पानी खाना जैसी तमाम प्राकृतिक संसाधनों की कमी है लोग पहले से ही गरीब रहते हैं और बढ़ती पीढ़ी के साथ गरीब चले जाते हैं क्योंकि उनकी जनसंख्या बढ़ती जाती है। लेकिन जब किसी एक विशेष स्थान पर बहुत ज्यादा लोग निवास करने लगते हैं, वो भी कम संसाधन वाले क्षेत्र में तो जीवन चलना भी दूभर हो जाता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए वहाँ के लोगों को मजबूरी वश पलायन करना पड़ता है।

तो यह थे समाज के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अतिक्रमी जनसंख्या के पड़ने वाले प्रभाव। अब उनके निस्तारण की ओर चला जाए। आज के इस आधुनिक युग में अतिक्रमी जनसंख्या यानी जनसंख्या विस्फोट पर रोक लगाने में सफलता पा लेने का मतलब है- गरीबी, अशिक्षा बेरोजगारी आर्थिक पिछड़ापन जैसे तमाम समस्याओं से दूर कर देना। हालांकि यह सब कुछ कर पाना इतना आसान नहीं है, लेकिन अगर कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दिया जाए तो काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।

बढ़ती जनसंख्या का समाधान:

परिवार नियोजन:

एक समृद्ध और खुशहाल देश के लिए यह जरूरी होता है कि उस देश के आम आदमी स्वस्थ रहें और उनकी जनसंख्या देश की आर्थिक स्थिति के अनुरूप हो। यह तभी संभव है जब उस देश के आम आदमी इस बात को समझेंगे और परिवार नियोजन के उपाय अपनाकर जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में अपना योगदान देंगे।

नियंत्रित दर:

नियंत्रित दर का मतलब यह है कि बच्चों के जन्म के बीच निश्चित अवधि का अंतर होना। जो कि बहुत जरूरी होता है। ऐसा करने पर जन्मदर को भी कम करने में सहायता मिलेगी। दो बच्चों के बीच एक निश्चित अवधि का अंतर होता है तो माता-पिता के साथ साथ बच्चों को स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रहेगा। जब स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो उनकी शिक्षा-दीक्षा भी सही रह पाएगी।

अल्पायु में शादी:

जैसा की हमने अभी बताया था कि कम उम्र में शादी करना भी अतिक्रमी जनसंख्या का बहुत बड़ा कारण होता है, तो अगर कम उम्र में शादी ना हो तो अतिक्रमी जनसंख्या पर नियंत्रण करने में सहायता मिलेगी। हालांकि हमारे देश के संविधान में लड़कियों की शादी 18 और लड़कों की 21 वर्ष में शादी का प्रावधान है, लेकिन देश के कई हिस्सों में अभी भी लोग बहुत कम उम्र में शादी कर देते हैं। जो कि समाज के लिए काफी घातक होता है।

महिलाओं का सशक्तिकरण:

महिलाओं के सशक्तिकरण से देश बढ़ रही जनसंख्या को कम करने में आसानी मिल सकेगी। बहुत सारे मामलों में देखा जाता है कि परिवार बढ़ाने के मामले में महिलाओं की कोई राय नहीं ली जाती। महिलाओं को तो इतना अधिकार भी नहीं दिया जाता कि वह अपनी राय सबके सामने रख सकें। वो बस बच्चे पैदा करने की मशीन भर बनकर रह जाती हैं। ऐसे में अगर महिलाओं में सशक्तिकरण का विकास होगा तो उनमें भी निर्णय लेने की क्षमता का विकास होगा। और उन निर्णयों को अमल में लाने की क्षमता का भी विकास होगा।

प्राथमिक स्वास्थ्य में सुधार:

वैसे तो सरकारें हमेशा से ही अच्छी स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने का दावा करती है लेकिन ऐसा हो पाना मुश्किल ही रहता है। जब लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो वह अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने में पूरे जोर-शोर के साथ लगेंगे। और जब उनकी आर्थिक स्थिति ठीक रहेगी तभी वह अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा, अच्छा खाना और अच्छी परवरिश दे पाएंगे। जब उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा अच्छी परवरिश मिलेगी तो वो जनसंख्या विस्फोट से होने वाले दुष्प्रभावों को अच्छे से समझ पाएंगे। और उसको कम करने की कोशिश करेंगे।

शिक्षा में सुधार:

शिक्षा एक ऐसी कड़ी है जिसके बिना कुछ भी संभव हो पाना मुश्किल ही है। शिक्षा अगर नहीं है तो समाज के किसी भी वर्ग का उत्थान नहीं हो पाएगा। शिक्षा रहेगी तो लोगों को अच्छे-बुरे में फर्क करना समझ में आ जाएगा। साथ ही उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में भी सुधार होगा। उदाहरण के तौर पर किसान को ले लेते हैं क्योंकि किसान एक कमजोर आर्थिक स्थिति से आते हैं। अगर उनको अच्छी शिक्षा ना मिली तो वह वैसे ही रह जाएंगे जैसे उनकी पिछली पीढ़ी थी। लेकिन अगर उनको अच्छी शिक्षा मिली तो अच्छी पढ़ाई करके वो किसानी में ही अमूल चूल परिवर्तन करके अच्छा पैसा कमा सकेंगे या फिर किसानी के अलावा भी बहुत कुछ कर सकेंगे ऐसे ही समाज के सभी वर्गों में होगा। अत: अच्छी शिक्षा से जनसंख्या विस्फोट को कम करने में बहुत बड़ी सहायता मिलेगी।

जागरूकता:

हमारे देश और समाज में एक बड़ी संख्या में ऐसी आयु वर्ग के लोग हैं जिन्हें अब स्कूल भेज पाना मुश्किल है। लेकिन अगर उन्हें अच्छे से समझाया जाय कि अधिक आबादी के दुष्परिणाम क्या होते हैं तो स्थिति को सुधारा जा सकता है। अगर देश पिछड़े इलाकों में लोगों के बीच जाकर किसी भी माध्यम (आॅडियो,वीडियो,प्रिंट,नाटक) से उनके दिमाग में ये बात बैठा दी जाय कि जनसंख्या विस्फोट उनके लिए हानिकारक है तो इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

अगर जनसंख्या कम होगी तो ये फायदे होंगे:

  • पीने के लिए साफ पानी मिलेगा।
  • हवा ज्यादा प्रदूषित नहीं रहेगी।
  • नौकरियां आराम से मिल पाएंगी।
  • सभी को अच्छी शिक्षा की सुविधा मिलेगी।
  • स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर मिलेंगी।
  • भारत में सड़कों पर खासकर शहरों में जाम की स्थिति नहीं रहेगी।
  • अपराध पर काबू पाया जा सकता है।
  • गंदगी में कमी लाई जा सकती है।
  • भारत दुनिया की टॉप पांच अर्थव्यवस्थाओं में से एक हो सकता।

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