How to be Happy

– How to be Happy –

प्रसन्न रहना हमारा स्वाभाविक गुण है। हम जीवन भर प्रसन्नता के लिए ही तो संघर्ष करते रहते हैं। प्रसन्नता जीवन में आने वाले सुखद क्षणों पर निर्भर करती है। इसीलिए हम कामना करते हैं कि हमारे जीवन में बार-बार सुखद क्षण आकर हमारी प्रसन्नता में वृद्धि करते रहें लेकिन जीवन तो सुखद व दुखद दोनों प्रकार के अवसरों का मेल है। कई बार जीवन में लंबे समय तक अपेक्षित प्रसन्नतादायक क्षण आते ही नहीं तो क्या प्रसन्न होना छोड़ दें? यदि ऐसा करेंगे तो जीवन नीरस हो जाएगा और दूभर भी। फिर कैसे प्राप्त करें प्रसन्नता? (How to be Happy) कई बार देखने में आता है कि कुछ लोग जहां कहीं भी बैंड बजता देखते हैं, बिना बुलाए ही वहां पहुंचकर औरों के साथ नाचने लगते हैं। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस की शादी है अथवा लोग क्या कहेंगे। बस नाचने से मतलब होता है। सबके साथ मिलकर खूब नाचते हैं और नाचने के बाद प्रसन्नवदन अपने रास्ते चले जाते हैं। ऐसे लोग हर जगह व हर क्षण प्रसन्नता खोज लेते हैं। जहां से भी खुशी मिले, झटक लेते हैं।

यदि हम सचमुच प्रसन्न रहना चाहते हैं तो हमें भी जहां से खुशी मिले, झटक लेनी चाहिए। इसका सबसे आसान तरीका है दूसरों की प्रसन्नता में प्रसन्न होना। प्रसन्नता तो प्रसन्नता है। यह कहीं से क्रय तो की नहीं जा सकती। यह तो स्वभाव है। बड़ी बात यह नहीं है कि हम कैसे प्रसन्न होते हैं अपितु सबसे बड़ी बात तो ये है कि यदि हम प्रसन्न रहेंगे तो उसका लाभ अवश्य हमें मिलेगा।

कई लोग जब दूसरों के यहां किसी आयोजन में सम्मिलित होने के लिए जाते हैं तो वहां जाकर ऐसे मुंह लटकाकर बैठ जाते हैं जैसे मातमपुर्सी के लिए आए हैं। आकर्षण के नियम के अनुसार ऐसे लोग अपने जीवन में केवल दु:ख अथवा पीड़ा ही आकर्षित कर पाते हैं। ऐसे लोगों के जीवन में प्रसन्नता देर तक उपस्थित रह ही नहीं सकती है। कई लोग बहुत सपाट लहजे में कहते हैं कि वे दूसरों की खुशी में क्यों खुश हों? दूसरों की खुशी में इसलिए खुश हों क्योंकि हमें इसका लाभ मिलेगा।

जीवन में कई बार हम ऐसे मोड़ पर पहुंच जाते हैं जहां अपनी किसी भी प्रकार की प्रसन्नता की संभावना नहीं रहती। ऐसे में दूसरों की प्रसन्नता में आनंदित होना बहुत लाभदायक होता है। यदि हम पहले से ही प्रसन्न हैं तो हमारा आनंद बढ़ जाता है और यदि हमारे जीवन में प्रसन्नता के क्षण नहीं हैं तो हमारा जीवन बदरंग हो जाता है। अत: जहां कहीं भी प्रसन्नता का माहौल हो, उसे अपना समझकर उससे आनंदित होने का प्रयास करना चाहिए। किसी का बच्चा अच्छे अंकों से पास हुआ है तो उसे अपने बच्चे के रूप में अनुभव करके ही खुश होना चाहिए। किसी ने कोई अच्छा कार्य किया है तो मन में उसके प्रति प्रशंसा के भाव आने ही चाहिएं। यदि हमारी मनोवृत्ति इस प्रकार की हो जाती है तो हमारे जीवन में निराषा के क्षण कभी नहीं आ सकते।

हमारे किसी मित्र, रिश्तेदार, पड़ौसी अथवा परिचित के यहां खुशी का मौका आया है इसी बात के लिए प्रसन्नता का अनुभव कीजिए। आकर्षण के नियम के अनुसार 3 ऐसे लोग अपने जीवन में केवल प्रसन्नता ही आकर्षित करते हैं। जिन दंपत्तियों की अपनी संतान नहीं होती वे कोई बच्चा गोद ले लेते हैं या तो अपने किसी परिचित का या अनाथालय वगैरा से। वे अपरिचित बच्चा क्यों गोद ले लेते हैं? प्रसन्नता के लिए ही तो। प्रसन्नता के लिए भी किसी प्रकार का अपने-पराए का भेद नहीं होता।

जीवन में प्रसन्नता के अवसरों की कमी है तो प्रसन्नता के अवसर भी गोद ले लीजिए। दूसरों की हर प्रकार की प्रसन्नता को अपना मान लीजिए। दूसरों की प्रसन्नता में प्रसन्न होना सीख लीजिए। जीवन आनंदमय हो जाएगा। इसके लिए आपको कोई रोक भी नहीं सकता। रोकेगा भी नहीं। यदि हम दूसरों की प्रसन्नता में प्रसन्नता अनुभव कर इसका इजहार करेंगे तो लोग हमसे प्रसन्न ही होंगे। बहुत अधिक प्रसन्न। इससे हमें पुन: और अधिक प्रसन्नता की प्राप्ति होगी और कालांतर में प्रसन्नता व आनंद का एक स्थायी वृत्त निर्मित हो जाएगा।

-सीताराम गुप्ता

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