ऑर्गेनिक फूट ककड़ी से कमाया मोटा मुनाफा
खेती से जुड़ी एक कहावत है कि ‘खेती उत्तम काज है, इहि सम और न होय। खाबे कों सबकों मिलै, खेती कीजे सोय।’ यानि कृषि उत्तम कार्य है, इसके बराबर और कोई कार्य नहीं है। ‘उत्तम खेती’ क्योंकि यह सबको भोजन देती है। इस उद्देश्यार्थ गांव जांडलीखुर्द के दो किसान भाइयों ने अपनी मेहनत व लगन के बलबूते अपनी रेतीली भूमि से बंपर कमाई करने की ठानी। उनकी मेहनत आज फल दे रही है और वे मालामाल हो चुके हैं।
दरअसल, किसान बजीर सिंह व नवीन पूनिया की रेतिली भूमि में चार वर्ष पहले तक पानी के अभाव में परंपरागत खेती उम्मीद के अनुरूप उत्पादन नहीं दे रही थी। सिंचाई पानी का अभाव और ऊपर से हर वर्ष बढ़ता लागत खर्चा उनकी खेती को घाटे की ओर ले जा रहा था। किंतु दोनों चचेरे भाइयों ने इस परम्परागत खेती से हटकर कृषि को आत्मनिर्भर बनाने का दृढ़ निश्चय किया। उन्होंने अपने खेत में आर्गेनिक फूट-ककड़ी व राजस्थानी मतीरी की खेती शुरू की। कम खर्च की इस खेती से उन्हें प्रति एकड़ 70 हजार से लेकर एक लाख तक की बचत होने लगी। खास बात भी यह रही कि इसकी बिजाई के बाद फसल में कोई अतिरिक्त खर्चा नहीं होता, वहीं अधिक सिंचाई की भी आवश्यकता नहीं होती।
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शुष्क क्षेत्रों के लिए ऐसी बागवानी लाभदायक
बजीर सिंह ने बताया कि फूट-ककड़ी को काकड़िया, फूट, काचरा, डांगरा आदि नाम से भी जाना जाता है। इसके सूखे फलों को उपहार के रूप में देने का भी चलन है। इन सूखे फलों को खेलड़ा/खेलरी कहा जाता है। फूट ककड़ी को रायता, सब्जी और सलाद के रूप में खाने के अतिरिक्त इसे सुखाकर रखने पर पूरे साल इस्तेमाल किया जा सकता है। इतना ही नहीं, फूट ककड़ी की खेती की वैज्ञानिक तकनीकें अपनाकर इसकी जनवरी से मार्च तक बुआई की जा सकती है। इसके ताजा फलों को मार्च से लेकर नवम्बर महीने तक बाजार में बेचा जा सकता है। फूट ककड़ी उत्पादन और प्रोसेसिंग तकनीकी से ताजा फल विपणन, सूखाकर खेलड़ा बनाना, बीज, जैम व कैच-अप जैसे घरेलू उत्पादों से प्रति एकड़ लाखों रुपए तक की आमदन प्राप्त की जा सकती है। फूट ककड़ी की खेती अतिरिक्त आमदनी कमाने का अच्छा विकल्प है।
कीटों से ऐसे करते हंै बचाव
बजीर पूनिया ने बताया कि फूट ककड़ी को जंगली छिपकली, गिलहरी व पक्षियों तथा नील गायों से नुकसान का खतरा रहता है। ऐसे में जरूरी है कि बिजाई के बाद और फल आने तक फसल की रखवाली करें। पौधों में लाल व ऐपीलेकना भंग, सफेद व फल मक्खी और रस चूसने वाले कीटों के प्रकोप की आशंका बनी रहती है। फसल को कीड़ों से बचाने के लिए नीम की फली से तेल बनाकर उसका उपयोग किया और बाद में गोमूत्र में पानी मिलाकर उसका छिड़काव किया। नीम पत्ती चूर्ण को 10 किलोग्राम राख के मिश्रण को टाट की थैली में भरकर सुबह के समय पौधों पर भुरकाव करें। इस खेती में खाद के रूप में गोबर की सड़ी-गली हुई खाद और फसल के सड़े हुए अवशेष डालकर काम लिया जा सकता है।
ककड़ी से तैयार कर सकते हैं कई उत्पाद
उन्होंने बताया कि हालांकि फूट ककड़ी के पके फलों को ज्यादा दिनों तक ताजा एवं सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। इसलिए तुड़ाई के बाद लंबे समय तक उपयोग में लाने के लिए इनकी प्रोसेसिंग कर सकते हैं। फूट ककड़ी के फलों के गूदे से कैच-अप, जैम एवं निर्जलीकरण (सुखाना) से खेलड़ा तथा बीजों से गिरी तैयार की जा सकती है। इस तरह से घरेलू स्तर पर मूल्य संवर्धन से स्वरोजगार और लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
फूट ककड़ी गर्म और शुष्क मौसम की फसल है। इसलिए रेतीले बरानी जमीन का वातावरण इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। यह फसल 35-40 डिग्री तापमान में भी उग जाती है। बीजों के अंकुरण के लिए 20-22 डिग्री सेल्सियस और पौधों व फलों के विकास के लिए 32-38 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए रेतीली व बलुई-दोमट मिट्टी उपयुक्त हैं और खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 6.5-8.5 तक पी.एच. मान वाली कम उपजाऊ मिट्टी में भी फूट ककड़ी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
– डॉ. श्रवण कुमार, जिला बागवानी अधिकारी फतेहाबाद। -संगीता रानी