लो आ गई बैसाखी (13 अप्रैल)
भारत को यदि पर्वोत्सवों की खान कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। अभावों के साये में जीने के बावजूद यहां के अधिसंख्य लोगों में धार्मिक प्रवृत्तियां कूट-कूट कर भरी हैं, जिसका प्रस्फुटन विभिन्न त्यौहारों के रूप में होता है। बैसाखी पर्व भी देश का परम्परागत हर्षोल्लास, उमंंग एवं जोश से परिपूर्ण तथा भाईचारे व एकता का संदेशवाहक है। यह पर्व खुशी और दर्द दोनों पहलुआें को अपने भीतर समेटे हुए है।
बैसाखी उतर भारत का एक प्रसिद्ध त्यौहार है और विशेषकर पंजाब में उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन पंजाब में विशाल मेला लगता है। इस दिन की छटा तो बस देखने लायक होती हैं। समूचा पंजाब खुशियों, मेलों व उत्सवों में सराबोर हो जाता है तो हर परिवार का सदस्य नये व चटकीले रंगों के कपड़े पहन नाच-गाने में व्यस्त हो जाता है। किसान भंगड़े की लय और ढोलक की थाप पर अपने-अपने खेतों में थिरक उठते हैं। वे अपनी सुनहरी फसलों को लहलहाते हुए देखकर कह उठते हैं ‘ओए जट्टा, आई-बैसाखी’ और यह स्वर खेत-खलिहान एवं गांवों के हर गली-कूचे में मुखरित हो उठता है।
हमारा देश एक कृषि-प्रधान देश है। हमारे यहां बैसाखी-पर्व का संबंध आषाढी की फसलों के पकने और उसकी कटाई को जोड़कर देखा जाता रहा है। इस पर्व पर रबी (आषाढी) की फसल पक जाती है। इसलिए इसे आर्थिक सम्पन्नता के प्रतिक के रूप में भी माना जाता है। हालांकि बैसाखी का त्यौहार विशेष तौर पर पंजाब का प्रमुख त्यौहार माना जाता रहा है लेकिन यह त्यौहार सिर्फ पंजाब में ही नहीं, बल्कि देशभर में लगभग सभी स्थानों पर खासतौर से पंजाबी समुदाय के लोगों द्वारा तो हर साल 13 अप्रैल को बड़ी धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
बैसाखी पर्व पर पकी हुई फसलों से लहलहाते खेत किसानों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। खेतों में चहल-पहल बढ़ जाती है। कहीं लोग चने की फसल को काट रहे होते हैं और कहीं सरसों से खेत-खलिहान अटे दिखाई देते हैं। गेहूं की सुनहरी आभा हर किसी का मन मोह लेती है। सोने की सी चादर ओढ़े धरती का रूप हर किसी में ऊर्जा का संचार कर देता है। इसी ऊर्जा से किसानों में उत्साह पैदा होता है। उनमें एक नया जोश, नई उमंग, नई तरंग हिलोरे खाने लगती है। घर, आंगन में खाद्य-खाद्यान्नों के ढेर लग जाते हैं। हर तरफ समृद्धि और खुशहाली की रंगत दिखने लगती है।सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संदर्भों के अलावा बैसाखी का त्यौहार देश के स्वतंत्रता-संग्राम से भी गहरा संबंध रखता है।
13 अप्रैल 1919 का वह बैसाखी का दिन आज भी चीख-चीखकर अंग्रेजों के जुल्मों की दास्तान बखान करता है। दरअसल रोलट एक्ट के विरोध में अपनी आवाज उठाने के लिए राष्टपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर इस दिन हजारों लोग श्री अमृतसर साहिब के जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे, क्योंकि ‘रोलट एक्ट’ के तहत देश के न्यायाधीशों और पुलिस को किसी भी भारतीय को बिना कोई कारण बताए और उन पर बिना कोई मुकद्दमा चलाए जेलों में बंद करने का अधिकार दिया गया था।
यही वजह थी कि महात्मा गांधी जी के आह्वान पर भारतवासियों में इस कानून के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश उमड़ पड़ा और इसके विरोध में श्री अमृतसर साहिब के जलियांवाला बाग में हजारों लोगों की एक विशाल जनसभा हुई थी। लेकिन अंग्रेज सरकार ने एक बहुत खतरनाक षड्यंत्र रचकर चारों तरफ से जलियांवाला बाग में एकत्रित लोगों को घेरकर बिना किसी पूर्व चेतावनी के अचानक अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी। इस ददर्नाक हत्याकांड में सैंकड़ों निर्दोष व निहत्थे भारतवासी शहीद हो गए थे।
Table of Contents
देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाई जाती है बैसाखी:-
पोणा संक्रांति:-
उड़िया समाज बैसाखी के दिन को पोणा संक्रांति के नाम से मनाता है। इस दिन दही-गुड़ से तैयार पोणा खास तौर पर बनाया जाता है। साथ ही यहां बनने वाले व्यंजनों में चावल की खीर का विशेष महत्व है। बैंगन, केला, आलू, कद्दू का डालमा बनाया जाता है और भगवान से पूरे वर्ष में बारिश के साथ सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
बंगाल में नववर्ष:-
बंगाल का नया वर्ष बैसाखी महीने के पहले दिन से प्रारंभ होता है। इस दिन को यहां ‘शुभो नॉबो बॉरसो’ के नाम से जाना जाता है। बंगाल में इस दिन से ही फसल की कटाई शुरू होती है। यहां के लोग इस दिन नया काम करना शुरू करते हैं। महिलाएं इस दिन घर में आई नई फसल के धान से पकवान बनाती हैं।
केरल में ‘विशु’:-
भारत के दक्षिणी प्रदेश केरल में इस दिन धान की बुआई का काम शुरू होता है। इस दिन को यहां ‘मलयाली न्यू ईयर विशु’ के नाम से पुकारा जाता है। हल और बैलों को रंगोली से सजाया जाता है और बच्चों को उपहार दिए जाते हैं।
असम में बिहू व तमिलनाडू में पुथांदु:-
असम के लोग इस नए वर्ष के दिन को ‘बिहू’ के रूप में मनाते हैं। बिहू के अवसर पर यहां लोक-नृत्य के साथ सार्वजनिक रूप से खुशी मनाई जाती है। तमिलनाडु के लोग इस दिन को ही नए साल की शुरूआत करते हुए, यहां के लोग इस दिन को पुथांदु-पर्व के नाम से मनाते हैं।
कश्मीर में नवरेह:-
कश्मीर में शास्त्रों में उल्लेखित सप्तऋषियों के अनुसार यह दिन नवरेह नाम से, नववर्ष के महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यहां इस दिन यहां के लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं तथा हर्ष व खुशी के साथ एक-दूसरे से मिलने जाते हैं।
उगादि तिथि:-
आंध्रप्रदेश भी कृषि क्षेत्र है। इसीलिए यहां इस दिन का किसानों के लिए विशेष महत्व हो जाता है। इसे उगादि तिथि अर्थात् युग के प्रारंभ के रूप में
मनाया जाता है।
महाराष्ट का नववर्ष:-
महाराष्ट में इस दिन को, सृष्टि के प्रारंभ का दिन माना जाता है और इसे अति हर्षोल्लास से मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार, इस दिन से समय ने चलना शुरू किया था। यहां नववर्ष के अवसर पर श्रीखंड और पूरी बनाकर इस पर्व को पूरे उल्लास से मनाया जाता है। इस दिन गरीबों को यहां पर भोजन व दान आदि दिया जाता है और घरों में बच्चे नए वस्त्र धारण करते हैं।
इस प्रकार भारत के कोने-कोने में यह पर्व किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। बैसाखी जैसे पर्व भारत की संस्कृति को अखंड बनाए रखने में सहयोग करते हैं। यह पर्व भारतीयों को एकता, भाईचारे और उन्नति के सूत्र में बांधे रखने में सहायता करता है। बैसाखी क्षेत्रीय पर्व न होकर पूरे भारत में ही किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। – वैशाली राज
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