get rid of junk -sachi shiksha hindi

पायें कबाड़ से छुटकारा

किसी भी घर में देख लीजिए। अलमारियों में, रैकों में, दराजों में, यहां वहां तहां, हर जगह ढेरों ऐसी बची खुची, बेमतलब की बेकार चीजें सम्भाल कर रखी मिलेंगी जिनका वर्षों से न कोई उपयोग हुआ है और न शायद कभी होने की कोई संभावना है मगर हम हैं कि इस कबाड़ को सीने से लगाए बैठे हैं, ढोए जा रहे हैं। नई युवा पीढ़ी फेंकना भी चाहती है मगर बड़े-बूढ़े अपने स्वभाव से विवश उनकी नजर बचा कर उठा कर फिर रख लेते हैं। यही क्रम चलता रहता है। शायद पुराने लोगों को पुराने का मोह कुछ ज्यादा ही होता है।

आजकल मकानों में जगह की बेहद तंगी होती है। जरूरी सामान रखने को भी स्थान पूरा नहीं पड़ता। किसी न किसी प्रकार बस जुगाड़ बैठाना पड़ता है मगर फिर भी फिजूल के बेकार कूड़ा कबाड़ से छुटकारा पाने का हौंसला हम नहीं जुटा पाते। यह किसी एक की बात नहीं। घर-घर की, मेरी, आपकी, हर घर की दास्तान है। आप स्वयं अपने घर में ही एक नजर डाल कर देख लीजिए, क्यों है न यही बात!

सोच कर देखिए। मौका पड़ने पर क्या कभी वर्षों से संभाल कर रखी इन चीजों में से कोई एक भी चीज काम में आई है? शायद कभी नहीं। उस वक्त या तो उन की ओर ध्यान ही नहीं जाता या फिर ढूंढने पर भी वह समय पर मिलती नहीं। उस वक्त तो तुरन्त बाजार से जरूरत की चीज मंगा ली जाती है और ये रखी हुई चीजें वैसी की वैसी रखी रह जाती हैं।

Also Read:  नौकरी छोड़ते वक्त न करें ये गलतियां

और इनमें अधिकांशत:

होता क्या है, खराब हुए बिजली के प्लग और स्विच कि शायद उनका कोई हिस्सा कभी काम आ जाए, बची हुई दवाइयां, खाली हुए डिब्बे, शीशियां, बोतलें, गत्ते के वे खाली डिब्बे जिनमें कभी साड़ियां आई थीं, अलग-अलग नाप के बचे खुचे तुडेÞमुडेÞ कील, नट बोल्ट, कब्जे, कुण्डे, पेंच, मैगजीनों से काट कर रखे हुए सिलाई कढ़ाई के डिजाइन, बिगड़ी हुई टाइमपीस, टूटे हुए चश्मे, बिना रिफिल के पेन, बिना हैंडल के छाते, दस वर्ष पहले बनवाई मेज के बचे हुए लकड़ी और सनमाइका के टुकड़े और इसी प्रकार का अन्य अल्लम गल्लम। कुछ लोग तो टी. वी. फ्रिज आदि के बड़े-बड़े कार्टन तक भी वर्षों संभाल कर रखे रहते हैं कि शायद मकान बदलने पर या ट्रांसफर होने पर उनकी जरूरत पड़ जाए।

पुराने जमाने में घर बड़े-बड़े होते थे तो यह सब चल जाता था पर आज के फ्लैटों के युग में बस वही रखें जो जरूरी है। पुरानी बेकार की चीजों का मोह न पालें। अपने स्वभाव को जरा सा बदल डालें। जिस वस्तु का वर्षो से कभी कोई उपयोग नहीं हुआ, उसे संजो कर रखे रहने का भला क्या तुक है। उसे विदा कर दें। फेंकने का मन न भी करे तो कबाड़ी के हवाले कर दें। कुछ जगह भी खाली हो जाएगी और गिने चुने ही सही, कुछ पैसे भी हाथ आ जाएंगे। तो बस इस बार हिम्मत कर ही डालिए। आप स्वयं देखेंगे कि फालतू कबाड़ निकल जाने से आप का घर कितना साफ-सुथरा, खुला-खुला, निखरा-निखरा, प्यारा सा दिखने लगा है।
-ओमप्रकाश बजाज

Also Read:  एकता का संदेश देता है डेरा सच्चा सौदा -सम्पादकीय

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here