If the way changed, the luck was restored by farming

तरीका बदला तो खेती से संवर गई किस्मत
युवा किसान हरबीर सिंह तैयार करता है सब्जियों की पौध, विदेशों में भी होती है डिमांड Changing farming methods
देश के कई किसान जहां खेती छोड़कर अन्य व्यवसाय अपनाने लगे हैं, वहीं कुछ युवा किसान ऐसे भी हैं जो खेती से कई गुणा मुनाफा ले। कर यह सिद्ध कर रहे हैं कि यदि खेती को तकनीकी मापदंडों से किया जाए तो यह फायदे का सौदा साबित हो सकती है। ऐसे ही एक सफल किसान हैं कुरुक्षेत्र जिले के गांव डाडलू (शाहाबाद) के रहने वाले हरबीर सिंह। वह ऐसे प्रगतिशील युवा किसान हैं जो खेती से अपने हर सपने को पूरा कर रहे हैं और साथ ही अन्य किसानों के नजीर भी बने हुए हैं।  कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से एमए की शिक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने कृषि को व्यवसाय के रूप में चुना। आज आलम यह है कि हरबीर सिंह खेती में बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर अन्य किसानों के पथ प्रदर्शक बने हुए हैं।

वे कहते हैं कि 2005 में मात्र 2 कनाल क्षेत्र में एक लाख की लागत से सब्जियों की नर्सरी लगाई, जिससे उन्हें अच्छा खासा मुनाफा होने लगा। इसके बाद उन्होंने और जमीन खरीदी और अब उन्होंने लगभग 14 एकड़ जमीन में नर्सरी बनाई हुई है, जिससे वे सालाना लगभग तीन करोड़ का मुनाफा कमा रहे हैं। हरबीर सिंह बताते हैं कि वर्ष 1995 में कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी से एमए पास करने के बाद खेती शुरू कर दी। उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से खेती को शुरू किया। इसके लिए टपका सिंचाई व मिनीस्पिकंलर सिंचाई विधि प्रयोग में लाई। Changing farming methods

उन्होंने हरी मिर्च, शिमला मिर्च, टमाटर, गोभी, प्याज, बैंगन सहित अन्य पौध तैयार की। नर्सरी की अच्छी पैदावार होने के कारण हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, बिहार समेत अन्य राज्यों के लगभग 8000 किसान नियमित रूप से इनसे जुड़े हुए हैं और इनसे ही पौधों की खरीद कर रहे हैं। इतना ही नहीं, हरबीर के पौधों की मांग इटली देश में भी पिछले 2 वर्षों से है। पौध खरीदने के लिए तीन दिन पूर्व उसे बुक करवाना पड़ता है। उनका मानना है कि यदि गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए तो व्यवसाय में निश्चित रूप से सफलता मिलती है। वे दो एकड़ जमीन पर लगभग 150 विभिन्न प्रकार के मल्टी नेशनल कंपनियों के बीज ट्रायल हेतु प्रतिवर्ष लगाते हैं और उनका परीक्षण भी करते हैं। बीजों के सफल परीक्षण के बाद ही पौधों को बाजार में उतारा जाता है। कई किसान खुद नर्सरी में आकर पूरी तरह आश्वस्त होकर ही पौधों को खरीदते हैं। इनकी नर्सरी के पौधों की पैदावार क्षमता अधिक होती है।

यही कारण है कि किसान इनके पौधों को खेतों में लगा ज्यादा लाभ कमा रहे हैं। हरबीर के नर्सरी में अनेक कृषि विद्यालयों व विश्वविद्यालयों

के विद्यार्थी प्रशिक्षण के लिए भी आते हैं। हरबीर कृषि संस्थाओं व विश्वविद्यालयों में बतौर प्रवक्ता अपनी सेवाएं देते रहते हैं। इतना ही नहीं, इंग्लैंड, हालैंड, अफगानिस्तान, नेपाल, इजरायल, बांग्लादेश, इत्यादि देशों के डेलीगेट्स

इनकी तकनीक से लाभान्वित हुए हैं।
हरबीर ने बताया कि वे इंटरनेशनल बी-रिसर्च एसोसिएशन के सदस्य भी हैं। वर्ष 2004 में वे एसोसिएशन की तरफ से इंग्लैंड का दौरा भी कर चुके हैं। वर्ष 2015 में हरियाणा सरकार द्वारा बेस्ट हॉर्टिकल्चरिस्ट का खिताब भी दिया गया है। इसके अलावा उन्हें कई संस्थानों, संगठनों द्वारा भी अनेक पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं।

हरबीर का दावा है कि प्रदेशभर में उसका पौध उत्पादन सबसे ज्यादा है। उनके इस कार्य में 125 महिला-पुरुष कार्य में लगे हैं। पौध की कीमत 45 पैसे प्रति पौधा से लेकर 1.50 रूपया प्रति पौधा वैयारटी के साथ तय की गई है। हरबीर ने कभी बीज की गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं किया। शायद यही वजह है कि हरबीर की नर्सरी की मांग धीरे-धीरे पूरे देश में बढ़ती जा रही है। हरबीर के फॉर्महाउस पर प्रतिवर्ष 4 से 5 सेमीनार का आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों किसान आधुनिक खेती के तरीकों से अवगत होते हैं।

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