relations in office

दिन का हमारा अधिकतर समय आॅफिस में बीतता है, इसलिए हमारे आॅफिस के सहकर्मियों के साथ संबंध कैसे हों, यह सोचने का विषय है।

हमारे संबंध मधुर हों, पर मधुर और अंतरंग संबंध के बीच एक लक्ष्मण रेखा सदा होनी चाहिए। अमूनन दफ्तर में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनसे सभी बात करना चाहते हैं।

उनमें विनम्रता होती है और उनसे बात करना सभी को भाता है। आईये देखें कि उनके व्यवहार में ऐसी क्या खासियत होती है कि सब उनको पसंद करते हैं। जानिये वे कौन सी बातें हैं जिनका ध्यान रख आप भी अपनी खुशियों का दायरा बढ़ा सकते हैं-

जवाब में 72 घंटे का समय लेना

सम्भव है कि कार्य के दौरान किसी व्यक्ति पर आपको गुस्सा आये या उनकी कोई बात पसंद न आये, तो उसे तत्काल उस बात पर टोकने की बजाय बेहतर है, 72 घंटे का इंतजार करो, यानी 3 दिन। यह ध्यान रखना कि मैं केवल काम से जुड़े मामलों की बात कर रहा हूं।

यदि इन 72 घंटों के गुजर जाने पर भी तुम्हें लगे कि भावना उसी तरह प्रबल है, तो उसे कुछ कहना। जब आप तुरंत कुछ कहते हो तो आप वास्तविकता से दूर रियेक्ट करते हैं।

जब आप कुछ समय बाद उसी बात को कहते हैं, तो आपके वेग शांत हो चुके होते हैं। इसका फायदा यह होगा कि आप अपनी बात ज्यादा बेहतर और शांत तरीके से रख पाएंगे और दूसरा जब आप तुरंत रियेक्ट न करके शान्ति से बात करेंगे तो आपकी छवि अच्छी बनेगी। Relations in office

अकड़ रखने या अक्खड़ साबित होने से बचें

जब आप मजबूत दिखने की कोशिश करते हो, तो कहीं थोड़ी अकड़ झलक जाना या मुंहफट हो जाना सम्भव हो सकता है। ऐसे में दूसरों की गलती निकालना भी आसान होता है।

यह सच है कि आप दूसरों की अच्छाइयों और बुराइयों को पहचानने में पारंगत हो और उन्हें बताना चाहते हो। लेकिन यह काम आपको किसी का भी विरोधी बना सकता है। दूसरी बात, अकड़ तो बिल्कुल न रखें, खासकर गलती मान लेने में। यदि आप गलती मानने में कंजूसी करोगे तो अनायास अपने चारों ओर विरोधियों को खड़ा पाओगे।

यदि आप गलती स्वीकार कर लेते हो, तो आपके विरोधी भी आपके सामने नतमस्तक हो जाएंगे। इसलिए आप सबकी मदद करें और गलती मानने से पीछे न हटें, तो आप लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब होंगे।

लेबल लगाने से बचें

किसी को भी लेबल लगाने के बचपने से बाहर आएं, क्योंकि लेबल लगाने वाले को लोग अच्छी दृष्टि से नहीं देखते। कॉलेज के दौरान यह करना अच्छा लगता है कि किसी को कोई नाम दे दिया, तो किसी के साथ कोई लेबल जोड़ दिया। आॅफिस पहुंचते-पहुंचते आपमें वह परिपक्वता आजानी चाहिए।

दफ्तर में यह अच्छा नहीं लगता। अभी आपके करियर की शुरूआत है, तो लोगों के स्वभाव या कार्यशैली पर टिप्पणी करने की बजाय काम पर फोकस करना और लोगों के बेहतर गुणों से प्रेरणा लेना सीखो। शुरू से ही ऐसे बचपने से बाहर निकल जाएंगे, तो आगे ऐसी गतिविधियों में समय बर्बाद करने से बचे रहेंगे, गॉसिपिंग से दूर रहेंगे और दफ्तर की राजनीति आपको कभी घेर नहीं पाएगी। जब आप किसी राजनीति में पड़ेंगे ही नहीं, तो अपने समय को सकारात्मक दिशा दे पाएंगे।

कमजोर पक्ष को उजागर न करें

आॅफिस के रिश्ते पारिवारिक और मित्रता के रिश्तों से भिन्न होते हैं, इसलिए कितना खुलकर बात करना है और किस बात को कितना कहना है, इसे लेकर थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए।

नए विचार और अनुभव या निजी मामले सांझा करने से बचना ही ठीक है। जैसे-जैसे दफ्तर में आपकी समझ बढ़ेगी, लोगों को पहचानोगे, तो जान जाओगे कि कौन
भरोसे के लायक है और कौन नहीं। इसलिए जहां तक हो सके अपने व्यक्तित्व के कमजोर पहलु को किसी से शेयर न करें।

हर व्यक्ति में कुछ न कुछ कमजोर पक्ष भी होते हैं, जितना हो सके अपने कमजोर पक्ष का ढिंढोरा पीटने से बचें। याद रखें कि आपने 99 काम सही किये हैं, कोई याद नहीं रखेगा, पर यदि आपने 1 (एक) काम गलत किया है, उसे सब याद रखेंगे।

दो गुरुमंत्र

  • पहला, अच्छे वक्ता बनने से पहले अच्छे श्रोता बनें। अर्थात्, सुनें अधिक व जब जरूरत हो, तभी बोलें। ईश्वर ने भी आपको सुनने के लिए दो कान दिए हैं व बोलने के लिए एक जुबान दी है। कुदरत भी यही चाहती है कि आप सुनें अधिक व बोलें कम।
  • दूसरा, खुशमिजाजी से बढ़कर कोई स्वभाव नहीं है। कहा जाता है कि हंसते आप सबके साथ हैं, रोते आप अकेले हैं। खुशमिजाज के साथ सब बैठना चाहते हैं, किन्तु रोते के साथ कोई बैठना नहीं चाहता। कहा भी जाता है कि कोयल क्या दे देती है और कौवा क्या हर लेता है। इसी जुबान से, इसी स्वभाव से पराये अपने हो जाते हैं और अपने पराये हो जाते हैं।

-गरिमा कामले

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