‘मातृ-पितृ सेवा’ मुहिम बुजुर्गांे की दुआएं हमारे साथ रहें -सम्पादकीय
डेरा सच्चा सौदा सदैव समाज कल्याण कार्यों में अग्रणी रहा है। समाज कल्याणकार्यों में डेरा सच्चा सौदा की ओर से जहां 138 भलाई कार्य किए जा रहे थे, वहीं अब 29 अप्रैल 2022 के शुभ अवसर पर पूज्य गुरु जी की ओर से इस कड़ी में 139वां मानव कल्याण कार्य का शुभ आह्वान किया गया है, जिसको ‘अनाथ मातृ-पितृ सेवा’ का नाम दिया गया है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस मुहिम के साथ समाज में असहाय व अनाथ छोड़ दिए गए बुजुर्गाें की सेवा-संभाल की जाएगी।
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पूज्य गुरु जी की ओर से 29 अप्रैल के पावन भण्डारे पर अपने शाही संदेश के जरिए जैसे ही सेवा कार्य का आह्वान किया गया, लाखों की तादाद में साध-संगत का हौसला, उत्साह कई गुणा बढ़ गया और हर कोई इस सेवा कार्य को शुरु करने के लिए पूज्य गुरु जी का शुक्रिया अदा करने लगा। सत्संग पण्डाल में मौजूद लाखों की साध-संगत के साथ लाईव प्रसारण से जुड़े अनुयायी भी नतमस्तक हो गए। समस्त साध-संगत के लिए यह आह्वान उत्साह से भरे टॉनिक का काम कर गया। साध-संगत की खुशी देखते ही बन रही थी।
क्योंकि यह ऐसा सेवा कार्य है जो समाज में आज एक जरूरत बन गया है। आज के इस भाग-दौड़ वाले दौर में बुजुर्गाें के लिए परिस्थितियां सामान्य नहीं रह गई हैं। स्वार्थ के चलते बुजुर्ग हाशिये पर चले गए हैं। परिवारों में बिखराव आम बात हो गई है और बुजुर्ग इस बिखराव की भेंट चढ़ रहे हैं। औलाद के लिए मां-बाप सारी उम्र कमाते हैं। उनका कमाया हुआ धन हर कोई बांट लेता है।
लेकिन बुजुर्ग माँ-बाप को करे लेने वाला हर कोई नहीं होता। हां, ऐसे भी हैं जो उनकी कद्र करते हैं, संभालते हैं। लेकिन जहां स्वार्थ हावी हो जाता है, वहां माँ-बाप लावारिस छोड़ दिए जाते हैं और उनका ठौर ठिकाना रह जाता है अनाथ आश्रम। जो आजकल हर जगह बने दिखाई दे रहे हैं। ऐसे अनाथ आश्रम जो हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन अब कोई शहर इनके बिना नहीं होगा। वो बुजुर्ग जो अनाथ हो गए हैं, जिनके बड़े-बड़े परिवार होते हुए भी अकेले हैं।
उनकी दर्द भरी दास्तां सुनकर रूह कांप जाएगी। कभी किसी अनाथ आश्रम जाकर देखना, कई धनाढ्य व सम्पन्न परिवारों के बुजुर्ग अनाथ हालत में सिसकियां भरते मिल जाएंगे, जिन्हें देखकर अहसास हो जाएगा कि आज का मानव किधर जा रहा है। ऐसे दु:खी-जनों के साथ कोई पल गुजारने को मिले तो सौ काम छोड़कर भी करें। अगर आपके आस-पास हैं तो हो सके तो रूटीन में उनको मिलकर उनको खुशियां दें। कोई दिन-त्यौहार आए तो उनके साथ मनाएं। अपनों की जिस कमी से वो दु:खी हैं, निराशा में हैं, उसे दूर करने की कोशिश करें।
उन्हें किसी सामान की जरूरत है, तो उनको सम्मान के साथ लाकर दें। जब मौका मिले उनका हाल-चाल जानें। आप उनके बेटा-बेटी, पौत्र-नाती इत्यादि जो भी समझे, वो बन कर उनकी बोझिल जिंदगी को हल्का करें, ताकि वो अपनी जिंदगी के बचे हुए दिन हंसी-खुशी के साथ गुजार सकें। उनका दुलार, उनकी दुआएं आपको खुशकिस्मत बना देंगी। यही पूज्य गुरु जी का संकल्प है और यही उनका आह्वान है। यही हमारी संस्कृति है, यही सभ्यता है। क्योंकि बुजुर्ग हमारी संस्कृति की विरासत हैं और समाज की रीढ़ की हड्डी होते हैं।
पूज्य गुरु जी की इस पावन मुहिम का उद्देश्य भी हमारी संस्कृति व सभ्यता को संभालना है, बचाना है। ताकि भारत देश की श्रेष्ठ संस्कृति, श्रेष्ठ ही रहे। हमारे बुजुर्गाें की दुआएं हमारे साथ ही रहें। पूज्य गुरु जी के इस आह्वान पर साध-संगत सेवा में फूल चढ़ा रही है। हर अनुयायी इस मुहिम में बढ़-चढ़कर अपना सहयोग देते हुए समाज के वंचित बुजुर्गों की सार-सम्भाल कर रहे हैं। बुजुर्गों की दुआएं, खुशियां बटोरने के इस सुनहरी अवसर का साध-संगत भरपूर लाभ उठा रही है। हमारी यही कामना है कि हर कोई इस मुहिम का हिस्सा बने ताकि कोई बुजुर्ग अनाथ न रहे।