spiritual satsang

रूहानी सत्संग: पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा सरसा
जन्म मनुष्य का लिया, ओ तूने नाम प्रभु का ना लिया।
ऐसे जन्म का कद्र ना पाए, हाय तूने ये क्या किया।।

मालिक की साजी-नवाजी साध-संगत जीओ जो भी जीव आस-पास से, दूर-दराज से रूहानी मजलिस-सत्संग में चलकर आए हैं, सत्संग में आश्रम में पधारने का तहेदिल से स्वागत करते हैं, जी आयां नूं, खुशामदीद, वैल्कम कहते हैं। आप की सेवा में जो भजन, शब्द बोला जा रहा है, जिस पर आज का सत्संग होना है, भजन है:-

जन्म मनुष्य का लिया, ओ तूने नाम प्रभु का ना लिया।
ऐसे जन्म का कद्र ना पाए, हाय तूने ये क्या किया।।

सभी संतों, महापुरुषों ने इन्सान के शरीर की खुदमुखत्यारी, आजाद, सरदार जून आदि नामों से उपमा की है, क्योंकि बनाने वाले ने बनाया ही ऐसा है। इस शरीर में उस सुप्रीम पावर, ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु को देखा जा सकता है। इस शरीर मेें रहती हुई आत्मा आवागमन से मुक्ति हासिल कर सकती है। इस शरीर में रहते हुए आत्मा को मृत्युलोक में रहते हुए भी अपने परम पिता परमात्मा के दर्श-दीदार हो सकते हैं और दोनों जहान की खुशियां इस जाहन में रहते हुए आत्मा अनुभव कर सकती है। तो मालिक ने इतने अधिकार, इतनी शक्ति दी है लेकिन इन्सान करता क्या है? दिन-रात माया का गुलाम बना बैठा है। थोड़े से पैसे के लिए, चंद रुपयों के लिए अपने जमीर को बेच देता है।

कुछ पैसे के लिए इन्सान रिश्ते-नाते, भावनाएं सब कुछ छोड़कर माया का गुलाम बन कर, मालिक से दूर हो जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब को याद करो जोकि इन्सान के करने वाले कर्म हैं। लेकिन इन्सान उनको भूल गया और मन माया में, काल के झंझटों में फंस कर उसी का होकर रह गया। आज जिसे देखो, पागलों की तरह दुनियावी काम-धंधों में उलझा हुआ है। उनके पास फुर्सत ही नहीं है कि वो मालिक को याद करे, प्रभु की भक्ति में समय लगाए। अपना सारा समय दुनियावी धंधों में लगा देते हैं, उसमें कोई गिला-शिकवा नहीं है। पर मालिक की याद में समय लगाना हो तो कहता है कि मेरा काम-धंधा रुकता है, व्यर्थ में दिन चला जाएगा।

तो भाई! इन्सान असलियत को झुठलाता है और झूठ को असल मानता है। वास्तव में दिन तो वो बर्बाद होता है जब आप भौतिकवाद में, मायक पदार्थों में पागल होकर दूसरों पर जुल्मो-सितम करते हो। उस दिन का कोई मोल नहीं पड़ा न इस जीवन में और न ही आने वाले समय में। मेहनत करो, कर्म करो लेकिन साथ-साथ अपने वाहेगुरु, अल्लाह, मालिक को याद करो। ताकि दोनों ही धन आपको मिल सकें। दुनियावी दौलत भी मिलेगी और राम-नाम का धन, वाहेगुरु की याद आपको लोहे से पारस बना सकती है, कंकर से हीरे-जवाहरात बना सकती है, उसकी भक्ति-इबादत में ये शक्ति समाई है। इसलिए मनुष्य शरीर में मालिक को याद करना अति जरूरी है। जो प्रभु-परमात्मा को याद नहीं करते, वो दुनिया से खाली हाथ चले जाते हैं।

ये भजन में आया :- ‘जन्म मनुष्य का लिया, ओ तूने नाम प्रभु का ना लिया, ऐसे जन्म का कद्र ना पाए, हाय (अरे)! तूने ये क्या किया, अरे तूने ये क्या किया।’

इस बारे में जो संत-फकीरों की लिखी हुई बाणी आएगी वो साधु आपको पढ़कर सुनाएंगे। इस बारे में लिखा-बताया है:-
मनुष्य जन्म मालिक को मिलने का अवसर है। इसको पाकर जिसने मालिक की भक्ति नहीं की और नाम नहीं जपा उसने अपनी आयु व्यर्थ गंवा ली।

रतन जनमु अपनो तै हारिओ गोबिंद गति नही जानी।।
निमख न लीन भइयो चरनन सिंउ बिरथा अउध सिरानी।
भजन के शुरु में आया जी:-

दुर्लभ जन्म ना बार बार आए, खाने सोने में क्यों है गंवाए।
नाम ना ध्याए रे, लाभ ना उठाए रे, हाय तूने ये क्या किया।

दुर्लभ यनि किसी भी मोल पर बाजार के किसी भी कोने से जो ना खरीदा जा सके, उसे दुर्लभ कहते हैं। मनुष्य शरीर को संत-महापुरुषों ने दुर्लभ शरीर कहा है। वैसे तो ज्यादातर शरीर ऐसे हैं जो दोबारा नहीं मिलते, दोबारा उनको जिंदा नहीं किया जा सकता लेकिन दुर्लभ जन्म के पीछे संतों का एक और इशारा भी है कि इस शरीर में ही प्रभु-परमात्मा को पाने का अवसर है। अगर इसमें भक्ति-इबादत करो, उसका सुमिरन करो तो उस सुप्रीम पावर, मालिक को हम देख सकते हैं। ऐसी शक्ति हमारे अंदर पैदा हो सकती है लेकिन अगर उसे याद नहीं करते और अपना शरीर यूं ही बर्बाद कर देते हैं तो ये शरीर, उस मालिक को पाने का अवसर बार-बार नहीं मिलता। कबीर साहिब जी फरमाते हैं:-

कबीर मानस जनमु दुलंभु है होइ न बारै बार।।
जिउ बन फल पाके भुइ गिरहि बहुरि न लागहि डार।।

कि जैसे वृक्ष की टहनी से फल पककर नीचे गिर जाए तो पका हुआ फल दोबारा उस टहनी पर नहीं लगता। इसी तरह से हे जीवात्मा! तुझे मनुष्य का शरीर पका हुआ फल यानि प्रभु को पाने का अवसर मिला है, अगर एक बार तेरे हाथ से चला गया तो बार-बार ये शरीर नहीं मिलेगा। कहीं ऐसा भी होता है कि पुनर्जन्म होता है। ये कैसे संभव है? कई जगहों पर ऐसा हुआ है। तो इसके पीछे दो ही कारण हैं, एक तो वो इन्सान जिसके अंदर अल्लाह, राम को पाने की तड़प जाग उठी लेकिन उसको पाने के लिए समय नहीं मिला और वो इसी दरमियान शरीर छोड़ गया, तो ऐसी जीवात्मा को जो मालिक की याद में तड़पती हुई गई, मालिक जो दया का सागर, रहमत का दाता है जिसके लिए कुछ भी असंभव नहीं, वो अपने मिलने का एक और अवसर दे देता है। या ऐसे फकीर के दर्श-दीदार हुए जो मालिक से एक हो चुका हो और उसके अंदर तड़प जाग उठी कि मैं क्यों न उस मालिक को पाऊं, मुझे भी मेरा मालिक मिले, पर इसी दरमियान मौत हो गई, हो सकता है मालिक दया-मेहर करे, उसे दोबारा जन्म दे दे, लेकिन ऐसा अरबों में, करोड़ों में किसी एक जगह हो सकता है, हमेशा हर किसी के साथ ऐसा नहीं होता। तो इसलिए इस शरीर को दुर्लभ, बेशकीमती बताया है।

‘कहते हैं इसको अनमोल रत्न है,
मिलता कहीं ना करे कितने यत्न है।
मिट्टी में क्यों रहा रोल, मिले किसी भी ना मोल।’

इस बारे में लिखा, बताया है :-

अभी समय तू आंखें खोल गाफिल वक्त कीमती मुफ्त गंवा नाहीं ॥
भागों से मनुष्य का जन्म मिलता, बिना बंदगी खाक मिला नाहीं ॥
नाम सिमर ले तू दिन-रात बंदे, इन स्वासों का कोई विसाह नाहीं॥
बिशन दास छोड़ जगत का झूठा दावा, समय मरने का मन से भुला नाहीं॥

तो भाई, आमतौर पर दुनियावी दौलत को देखें, अगर चवन्नी भी माटी में मिल जाए ना, उसे ढूंढने के लिए लोग काफी टाइम लगाते हैं। रुपया कहीं गिरा हुआ मिल जाए तो इधर-उधर देख कर झपटा मार लेते हैं। जबकि कीमती स्वास जो कि हीरे-लाल जवाहरात हैं, रोजाना मिट्टी में मिल रहे हैं, इनकी तरफ कोई गौर ही नहीं करता। इन स्वासों का मोल पाया जा सकता है-अगर आप ख्यालों से, जुबां से उस मालिक की भक्ति-इबादत करें। जितना समय आपने उसकी याद में लगाया वो आपके बेशकीमती स्वास बन गए। दोनों जहान में उसकी कद्र पड़ेगी। तो इन्सान अपने हीरे, अनमोल जन्म को मिट्टी में मिला रहा है और काम-धंधों के लिए इन्सान कितना समय लगाता है, योजनाएं बनाता है, काफी समय इनमें ही लगा देता है लेकिन अपने अल्लाह, राम के लिए सोचना तो दूर, उसकी तरफ ध्यान ही नहीं देता। ध्यान तब देता है जब उसकी जरूरत पड़ती है। लेकिन फिर भी वो दया का सागर, जब जरूरत पड़ी अगर तब भी ध्यान दिया, तब भक्ति-इबादत की तो भी वो सुन लिया करता है। पर हमेशा अगर याद करो तो कोई गम-चिंता, टैंशन आए ना, परेशानियों का सामना करना ही न पडेÞ। ये तो इंसान पर निर्भर है कि इंसान कितना अमल करता है, कितना समय उसकी याद में लगाता है।

इसलिए ये बहुत जरूरी है कि आप अपने कीमती स्वासों को मिट्टी में ना मिलाएं। चलते, बैठ कर, लेटकर, काम-धंधा करते हुए थोड़ा-थोड़ा समय मालिक की याद में लगाते रहें। वो थोड़ा समय ही आपके लिए सुखदायक हो जाएगा। काम-धंधे से फकीर रोकते नहीं, वो करते रहो लेकिन साथ-साथ सुमिरन करो। आप सेवा करते हैं ये बहुत बड़ी बात है लेकिन साथ-साथ भक्ति-इबादत भी करो ताकि सेवा करते हुए आपका सुमिरन जल्दी बन जाएगा, जल्दी मालिक से तार जुड़ सके। दुनियावी काम-धंधा करते हो, वो तो करो क्योंकि ये आपका कर्त्तव्य है लेकिन जिंदगी का लक्ष्य अल्लाह, मालिक को पाना है, वो सोचिए।

तो कर्तव्य-फर्ज का निर्वाह करते हुए अपने लक्ष्य की तरफ ध्यान रखें। उधर से अपने ध्यान को हटने ना दें। अंदर से ख्याल अपने मालिक से जोड़े रखें। जैसे आम ये बात होती है कि मां की ममता बहुत ऊंची होती है। बच्चा सो रहा है, मां काम-धंधा कर रही है लेकिन अंदर का जो ख्याल है वो अपने बच्चे में, अपनी औलाद में है कि कहीं वो जाग ना जाए, भूखा सोया है, मैं उसे दूध पिलाऊं, सारा ध्यान उधर होता है। गाय चार कोस दूर चरती है लेकिन ध्यान अपने बछड़े में रखती है। रंभाती है, आवाज करती है, बोलकर अपने बच्चे को याद करती है लेकिन अपना कर्त्तव्य भी निर्वाह करती है, खा रही है क्योंकि बिना खाए दूध किधर से आएगा, वो कैसे अपने बच्चे का पालन- पोषण करेगी। तो कर्त्तव्य भी निर्वाह कर रही है और ध्यान भी अपने बछड़े में है। तो उसी तरह इन्सान को चाहिए कि वो कर्त्तव्य का निर्वाह करे। काम-धंधा करे, लेकिन अपना ध्यान अपने अल्लाह, वाहेगुरु, राम में रखे। अपने असली लक्ष्य से अपने आपको भटकने न दे। इस संसार में, झूठी दुनिया में रहते हुए भी आप उसके प्यार-मोहब्बत को हासिल कर पाएंगे और उसकी दया-दृष्टि के काबिल बनते चले जाएंगे।

इसी ही जन्म में नाम ध्याना, नैया भवसागर से पार लंघाना॥
माया की घुम्मनघेरी, पेश ना जाए तेरी

इसी जन्म में जीवात्मा को अधिकार है कि वो अपने मालिक, प्रभु-परमात्मा को पा सकती हैे जैसे चक्रवात होता है, पानी में घुम्मनघेरी, चक्र चल पड़ता है और जो वस्तु उसकी गिरफ्त में आ जाती है वो घूमती-घूमती बिल्कुल सैंटर में आ जाती है और बिल्कुल नीचे चली जाती है। तो उसी तरह आप किनारे पर पहुंचे हुए हैं, हो सकता है कि आप उस चक्रवात से, उसके किनारे से आप हट जाएं और वो चक्रवात आगे चला जाए और ये भी हो सकता है कि आप गफलत की नींद सोते हुए वहीं पर रहें तो धीरे-धीरे आप सैंटर की तरफ आएंगे और बिल्कुल गहराई में चले जाएंगे। कहने का मतलब कि मनुष्य शरीर चक्रवात यानि जन्म-मरण का बिल्कुल आखिरी किनारा है, आखिरी सिरे पर आप घूम रहे हैं।

अगर इसमें अल्लाह, राम, परमात्मा का नाम लिया जाए तो चक्रवात से आपकी नैया निकल सकती है और अगर अल्लाह, राम को याद नहीं किया, बुरे कर्म करते गए तो उनकी वजह से आपकी नाव घूमती हुई वहां पे पहुंचेगी जिसे मौत कहते हैं और फिर आवागमन में, जन्म-मरण, नर्क-स्वर्ग में सब कुछ भोगती हुई तड़पती रहेगी, ठोकरें खाती रहेगी। अब ही अवसर है कि आप संभाल करें। माया ने ऐसा चक्कर चलाया है, वो भी एक चक्रवात की तरह है। माया का ही सब रोना-धोना है। माया के लिए आज इन्सान क्या नहीं कर देता। वैसे भक्तों के लिए ग्रंथों में ये कहावत मशहूर है कि अगर सातों द्वीपों की दौलत इकट्ठी कर दी जाए और कोई अल्लाह, राम, वाहेगुरु को याद करने वाला हो और उसे कहा जाए कि ये सारे द्वीपों की दौलत है और दूसरी तरफ तेरा सतगुरु, मालिक परमात्मा है, तू दोनों में से चुन, किसे चुनेगा। तो ग्रंथों में ये लिखा है कि भाई! जो सच्चे भक्त हैं वो दौलत लेनी तो दूर उसकी तरफ ध्यान भी नहीं देते, अपने अल्लाह, वाहेगुरु, राम के दर्श-दीदार में मस्त रहते हैं। लेकिन आज कलियुग है।

यहां पर सातों द्वीपों को छोड़ो अगर कुछ लाख रुपए भी रख दो ना तो कहते हैं कि गुरु जी को तो बाद में मना लेंगे पहले इस पर झपटा मार लें। कहता है कि क्या फर्क पड़ता है। अल्लाह, वाहेगुुरु का क्या है उसे तो जब मर्जी मना लेंगे पर माया नहीं जानी चाहिए। उसके बिना तो काम ही नहीं चलता। हालांकि सब कुछ चल रहा है। खा रहा है, पी रहा है, पहन रहा है लेकिन फिर भी कहता है कि नहीं, वो बात नहीं बनती। दौलत के लिए लोग अपना जमीर बेच देते हैं अल्लाह, राम तो चीज ही क्या है। अगर वो सामने होता ना तो उसकी भी ब्लैक हो जाती। कहते कि मेरे पास परमात्मा है मैं ब्लैक में दूंगा। या हो सकता था कि उसके लिए टिकट लग जाती।

वो किसी का गुलाम नहीं वरना लोग उसे भी बेच देते, इसमें कोई शक नहीं। कितना भी संत-फकीर लिख दें कि माया जालिम है पर जब तक तिगड़ी नाच ना नचा दे, तब तक इन्सान मानता ही नहीं। कई इन्सान तो नाच भी लें, तो भी नहीं मानते। उसकी अपनी-अपनी भावना होती है। इसलिए भाई, माया के दायरे से बाहर आओ। मेहनत करो, लगन से सुमिरन करो ताकि आत्मबल मिले क्योंकि आत्मबल होगा तो आपकी मेहनत की कमाई में बरकत जरूर पड़ेगी और अगर आपके अंदर आत्मबल नहीं है तो आप कितनी भी कमाई करते जाओ आपको कम लगेगी।

जन्म-मरण का चक्कर मुकाना, आत्मा बेचारी को जेल से छुड़ाना।
क्यों ना छुड़ाए रे, तरस ना आए रे।

इस बारे में लिखा है:-

एक जेलखाना है जिसकी चौरासी लाख कोठरियां, अलग-अलग क्लासों के कैदियों के रहने के लिए हैं, उसमें से निकलने का एक दरवाजा है। एक गंजा आदमी जिसकी आंखें बंद हैं, उस कैदखाने के अंदर चक्कर लगाता है, जब निकलने का दरवाजा आता है तो वो गंज को खुजलाने लगता है और फिर चौरासी लाख कोठरियों का चक्कर खाने लग जाता है।
तो भाई! जन्म-मरण में आत्मा बुरी तरह से फंसी हुई है। हिन्दू धर्म में लिखा है:- आत्मा एक शरीर को छोड़ती है तो दूसरे में चली जाती है, उसको छोड़ती है तो उससे अगले वाले में चली जाती है। इस तरह आत्मा को परेशानी, गमों का सामना करना पड़ता है और जन्म-मरण में चक्कर लगाती रहती है, भटकती रहती है। तब तक छुटकारा नहीं होता जब तक आत्मा इस शरीर में रहते हुए, मनुष्य शरीर में ईश्वर, परमात्मा को याद नहीं करती। अपने मालिक, सतगुरु की भक्ति करके छुटकारा संभव है वरना जन्म-मरण में जाना ही पड़ता है। तो इसी तरह सिक्ख धर्म में आया है:-

लख चउरासीह भ्रमतिआ दुलभ जनमु पाइओइ।।
नानक नाम समालि तूं सो दिनु नेड़ा आइओइ।।

मतलब वो ही है कि पता नहीं कितना समय हो गया आत्मा को ईश्वर से बिछुड़े हुए। सदियां बीत गई, युग बीत गए। अब अवसर है, मनुष्य शरीर में अल्लाह, राम को याद करो वरना तेरी आखिरी तब्दीली का दिन नजदीक आता जा रहा है। अगर नाम से शरीर की संभाल की, मालिक को याद किया तो आवागमन से छुटकारा हो जाएगा वरना जन्म-मरण का चक्कर यूं ही चलता रहेगा। आत्मा जेल में फंसी हुई है उसे निकालने के लिए सुमिरन, भक्ति-इबादत करो, वो ही एक जेलखाने की चाबी है, वो ही एक तरीका है जो आपको जेलखाने से आजाद करवा सकता है। इसलिए सुमिरन करके आप जीते-जी अपने गम-चिंता, परेशानियों रूपी जेलखाने से भी आजाद हो सकते हैं, भयमुक्त हो सकते हैं। कई बार इन्सान को बिना वजह का डर सताए रहता है। जरा-जरा सी परेशानी, बिना वजह की टैंशन इन्सान को ज्यादा मारती है। मरना तो एक बार ही होता है लेकिन गम-चिंता, परेशानी बार-बार मारती है। लेकिन ये बार-बार का जीना-मरना भी अल्लाह, राम की भक्ति-इबादत से खत्म हो जाता है। तो ऐसी दवा, ऐसी ताकत है ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब के नाम में है। लगन से सुमिरन करें, अपना काम-धंधा ना छोड़ो, वो करते रहिए। काम-धंधा हाथों से, पैरों से करते रहिए लेकिन जीह्वा से वाहेगुरु, राम को याद कीजिए, आपका इसमें क्या मोल लगता है। आप फिर भी याद नहीं करते तो कमी आप में है और उन कमियों की वजह से दु:ख-परेशानियों के जिम्मेदार भी आप खुद बन जाते हैं। तो भाई! अगर आप जीवन सुख-शांति से जीना चाहते हैं तो खाते-पीते, हंसते, बोलते आप ख्यालों से मालिक को याद करो, वो ईश्वर सर्वशक्तिशाली है, ऐसी भक्ति वो मंजूर करते हैं कि मोक्ष-मुक्ति दे देते हैं। तो आप सुमिरन करो तो सही। शारीरिक अवस्था कैसी है आप इस तरफ ध्यान मत दो। जितना भी सुमिरन आप करोगे उसका फल आपको जरूर मिलेगा।

नाम जपन को मिला ये जन्म है, लाख चौरासी जीव आया भरम है तुझको खबर ना, पाएं कद्र ना।।

इस बारे में लिखा बताया है:-
मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मालिक के मिलने का समय है। जो काम हम करते हैं वो सब शरीर के साथ संबंध रखते हैं। इनमें से हमारी आत्मा के काम आने वाला कोई भी नहीं। इसके काम आने वाली चीज केवल सत्संग है जिस से नाम की प्राप्ति होती है। इसलिए मनुष्य जन्म को मालिक की भक्ति में लगाकर इससे लाभ उठाओ।

भई परापति मानुख देहुरिआ।।
गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ।।
अवरि काज तेरे कितै न काम।।
मिलु साधसंगति भजु केवल नाम।।

कि भाई तू कद्र नहीं पा रहा। मालिक ने जो मनुष्य शरीर देकर दया-मेहर, रहमत की उसकी कद्र-कीमत तभी होगी जब इन्सान सुमिरन करे। आज इन्सान वास्तव में बेकद्रा हो गया है। कितना भी मालिक की दया-मेहर, रहमत का खजाना मिले पर जिनके कानों पर काल की मोहरें लग जाया करती हैं, जो मन-माया के झांसे में आ जाते हैं वो फिर अपना रंग-रूप नहीं बदला करते। जैसे सांप होता है, उसे कितना भी दूध पिलाओ क्या वो अपना विष त्याग देगा? एक सांप हमेशा चंदन के पेड़ से लिपटा रहता है, वो सांप उस चंदन की खूशबू से मोहित तो हो जाता है लेकिन क्या उसको पकडेÞंगे तो वो डंक नहीं चलाएगा, डसेगा नहीं? जैसे खारा कुआं है उसमें चीनी डाल दो। जब तक चीनी का असर है थोड़ा-थोड़ा मीठा पानी आता रहेगा लेकिन क्या वो अपना खारापन त्याग देगा? ऐसे ही कौआ है, उसके ऊपर सफेद रंग रंग दो, क्या वो अपनी कर्कश आवाज त्याग देगा? सवाल ही पैदा नहीं होता। वैसे देखने में तो लगेगा कि बगुला या हंस है लेकिन जब आवाज निकालेगा तो पहचाना जाएगा। तो ऐसे ही कलियुग में ऐसे लोग होते हैं जिन पर असर नाम मात्र होता है।

अल्लाह, राम की चर्चा करो, संत-फकीर चाहे कितना भी जोर लगाएं, उनकी सूई अपनी जगह पर ही कायम रहती है। जो उनके अंदर खानदान में बुराई फंस गई, बुरे ख्यालात फंस गए तो वो निकलने बड़े ही मुश्किल होते हैं। फकीर अपनी तरफ से कमी नहीं छोड़ते, दया-मेहर, रहमत देने में कोई कसर नहीं छोड़ते। हर तरह के पाप-गुनाह को बख्शते चले जाते हैं और अल्लाह, राम, सतगुरु से सबके लिए रहमत मांगते चले जाते हैं। लेकिन कई इन्सानों की फितरत होती है कि वो अल्लाह, राम, मालिक, प्रभु, परमात्मा की भक्ति में फिर भी समय नहीं लगाते, फिर भी उसकी याद को भुला देते हैं और गम, दु:ख-दर्द के करीब पहुंच जाते हैं। तो भाई! अल्लाह, राम, वाहेगुरु के नाम की, उसकी भक्ति-इबादत की कद्र नहीं करते। अगर कद्र करो तो दोनों जहान की खुशियों के हकदार आप इस जहान में रहते हुए जरूर बन सकते हैं, उसकी दया-मेहर, रहमत के काबिल जरूर बन सकते हैं।

काम अपने को क्यों गया भूल, हीरे-मोतियों के बदले इकट्ठी करे धूल।
चौबीस हजार स्वास, जा रहे दिन-रात।

अपना काम संतों ने ओ३म, हरि, अल्लाह, मालिक की भक्ति को बताया है कि मनुष्य शरीर में सबसे हट कर जो काम हो सकता है तो वो वाहेगुरु की प्राप्ति है, ओ३म, हरि, अल्लाह के दर्श-दीदार हैं जो कि और कोई भी शरीर नहीं कर सकता। बाकी इन्सान जो करता है वो लगभग ऐसे कर्म दूसरे शरीरों में हो सकते हैं। इन्सान खाता है, खाते पशु भी हैं। इन्सान घर बनाता है तो पशु-पक्षी भी अपना घर, घौंसला बनाते हैं। बाल बच्चे इन्सान के हैं, बाल-बच्चे पशुओं के भी हैं लेकिन जो पशुओं के जीते-जी उनका गोबर है वो खाद के काम आता है, मरणोपरांत हड्डियां, चमड़ा सब काम में आ जाता है। जबकि मनुष्य का इनमें से कुछ भी काम में नहीं आता। इस तरीके से देखें तो जानवर कुछ आगे बढ़ता जा रहा है। पर शायद कोई कहे कि सार्इंस में इन्सान ने बहुत कुछ बना लिया है, क्या जानवर बना सकता है? सवाल ही पैदा नहीं होता कि जानवर ऐसा कर सके।

पर जितना तबाही का प्रलयकारी साधन मनुष्य ने विज्ञान के द्वारा बना रखा है ऐसा खतरा जो आज के इन्सान से हुआ पड़ा है, क्या जानवर से हो सकता है? क्या जानवर परमाणु बम बना सकता है? बना नहीं सकता लेकिन इन्सान उससे काम जरूर ले सकता है लोगों की तबाही के लिए, इसमें कोई शक नहीं है। तो भाई ! इस नजरिए से देखें या बाहरी तौर पर देखें तो जीव- जंतु ज्यादा बेहतर हैं। अरे! कम से कम एक नस्ल के जीव-जंतु तो आपस में प्यार करते हैं। क्या हुआ कभी-कभार लड़ाई हो जाए मोटे दिमाग की वजह से किसी ऋतु में। लेकिन ये नहीं कि वो हमेशा ही लड़ते रहते हैं। अगर उनके परिवार को कोई संकट आता है किसी दूसरे की वजह से तो वो पूरा साथ देते हैं।

लेकिन मनुष्य अपने बच्चों को तल-तल कर खा रहा है। एक ताईवान की पत्रिका के अनुसार कि जब बच्चा गर्भ में होता है, उसे डाक्टरी तरीके से निकाला जाता है और फिर जैसे मुर्गें को भूनते हैं वैसे तंदूर में भून कर डिब्बों में बंद कर दिया जाता है। फिर उनको औरतें खा रही थी जिन्होंने उन्हें जन्म दिया था। इससे भयानक और क्या अपराध होगा इसकी कोई कल्पना कर सकता है। सांप के बारे में सुना है कि वो अपने बच्चों को मार कर खा जाता है पर वो भी इतना नहीं खाता वरना उनके वंश खत्म हो जाते, पर इंसान तो बिना शक खाए जा रहा है और कब वंश खत्म कर दे, इसका भी कोई पता नहीं। ये मालिक की रहमत है कि वो रुके हुए हैं वरना इंसान के घमंड में कोई कमी नहीं है। इतनी खुदी, इतने अहंकार में आ जाता है कि अपने रिजल्ट के बारे में नहीं सोचता कि अगर तू दुनिया को तबाहो-बर्बाद करेगा, फिर सारी दुनिया का बादशाह बनेगा।

तो जब प्रजा ही नहीं रहेगी तो बादशाह बनने का क्या फायदा। अगर उनको ही परमाणु से तबाहो -बर्बाद कर देगा तो जब प्रजा ही नहीं तो राजा का क्या फायदा। अपने वंश को खत्म करने की तरफ इन्सान बढ़ता जा रहा है, कोई परवाह नहीं करता। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो घर में लड़ाई पैदा करवा देते हैं, फिर गांव का झगड़ा बढ़ जाता है, फिर शहरों में, फिर देश में, फिर सभी देशों का झगड़ा होता है और फिर तबाहो-बर्बादी के अवसर पैदा हो जाते हैं। तो भाई! इन्सान अपनी बुद्धि,अक्ल से काम क्यों नहीं लेता कि जब सबको खत्म कर देगा तो आप कहां रहेगा? क्यों बुरी सोचकर परमाणु बम बनाए जा रहा है। इन्हें खत्म क्यों नहीं करता, इन्हें बर्बाद क्यों नहीं करता। क्या सिर्फ इसलिए कि मेरा विश्व पर दबदबा रहे? सब लोग मेरे आगे झुके रहें? अरे भाई! जितना तनेगा उतना टूट जाएगा, उतना ही अंदर से गम-परेशानियों को महसूस करेगा। इसलिए आज के इंसान को बुरी सोच त्यागनी चाहिए।

अपने परिणाम के बारे में सोचना चाहिए कि जब कोई बचेगा नहीं तो राजा का क्या फायदा होगा। बुरे विचार छोड़ो, गलत विचार छोड़ो, अपना जो फर्ज है कि सबसे बेगर्ज-नि:स्वार्थ भावना से प्रेम करो, सच्ची तड़प-लगन से अपने अल्लाह, वाहेगुरु, मालिक को याद करो ताकि वो आपको सद्बुद्धि दे, सारे समाज को सद्बुद्धि दे, ऐसे घातक हथियार बनाने वालों की सोच में परिवर्तन आए और ये करना छोड़ कर तरक्की की तरफ बढ़ें। अगर इन्हीं तबाहकारी, विनाशकारी हथियार जिनसे बनते हैं इन्हीं तत्वों पर, पदार्थों पर रिसर्च पूरे तरीके से किया जाए तो इनसे सुख-सुविधा के साधन भी बनाए जा सकते हैं। लेकिन इन्सान उधर तो बढ़ता नहीं, अपने खात्मे की ओर बढ़े जा रहा है, जो बहुत ही खतरनाक, प्रलय की निशानी है।

ऐसा ना हो मालिक से दुहाई मांगो पर होता वो है जो मालिक को मंजूर होता है। दिन-ब-दिन इन्सान अपनी भावनाओं, अपने विचारों से दु:खी होता जा रहा है। हे इन्सान! अपने अंदर अहंकार को न आने दे, अहंकार में पड़कर अपने आप को बर्बाद मत कर बल्कि बेगर्ज-नि:स्वार्थ भावना से अपने अल्लाह, वाहेगुरु, रब्ब से, उसकी औलाद से, उसकी खलकत से प्रेम कर। प्रेम करोगे तो प्रेम पाओगे और प्रेम से मालामाल हो जाओगे।

मोह-माया ने ऐसा फंसाया, अपना पराया कुछ समझ ना
आया, क्यों करे मेरा-मेरा, कुछ भी नहीं है तेरा।

इस बारे में लिखा-बताया है:-
सारा जगत मोह-माया में अपने आप से बेसोच और बेकदर है। रस्सोकशी में फंसा हुआ है। ये सब कुछ जो नजर आ रहा है यहीं छोड़ जाना है। जो छोड़ जाने वाले पदार्थ झूठे हैं वो हमें सत्य और सदा कायम रहने वाले लगते हैं। जो सत्य हैं उनकी तरफ हम मुंह नहीं करते। मोह-माया ने ऐसा फंसाया है कि छुटने की मजाल ही नहीं।
माया की जंजीर बाहर नजर नहीं आती। आज-ज्यादातर लोगों का यही लक्ष्य है कि दौलत इकट्ठी करो, सामने वाला मरे, खपे, तड़पे उससे क्या लेना। अपने खुद को सुख-सुविधा हो, पैसा हो, मोटर-गाड़ियां हों और ये तमन्नाएं नहीं भरती, संतुष्ट नहीं होते। बल्कि वो संतुष्ट होते हैं जिनके पास अल्लाह, वाहेगुरु का नाम है। चाहे वो गरीब हैं, फटेहाल हैं। उनका ऐसा कहना है कि खाने को मिल जाता है, पहनने को मिल जाता है, राम का नाम लेते हैं, हमने क्या लेना है झमेलों में पड़कर। बढ़िया आराम से, मजे की जिंदगी जीते हैं।

प्रभु ने दया-मेहर कर रखी है और कहां वो लोग जिनके पास अरबों हैं वो चिल्ला रहे हैं कि मेरे पास और क्यों नहीं बढ़ रहा। सारी उम्र कोल्हू के बैल की तरह घूमते-घूमते आखिर में तड़पकर, बेचैन होकर मर जाते हैं लेकिन छुटकारा नहीं मिलता। ऐसी ही मोह-ममता है। मोह के ऐसे अंधे होते हैं कि मोह में पड़ गए तो उनके लिए कुछ भी सही नहीं है। जैसे धृतराष्ट्र मोह में अंधा हो गया था। कहते हैं उनके आँखें नहीं थी। उनको यूं लगता था कि मेरी औलाद जैसी तो कोई है ही नहीं। पर आज वालों की तो आंखें भी हैं फिर भी मोह में पागल हुए घूमते हैं। परम पिता बेपरवाह जी वचन फरमाया करते- भाई! जो दिन गुजर रहा है बढ़िया है, आने वाला कलियुग का समय और भी यौवन पर होगा।

इसमें कोई शक नहीं। आज कलियुग में ऐसे-ऐसे लोग जिन पर विश्वास भी नहीं किया जा सकता, वो अल्लाह, मालिक का भक्त बनने की बजाए मोह-ममता के गुलाम हैं, माया के गुलाम हैं। वो जरा सोच कर देखें कि क्या कभी मोह-ममता के बिना कोई और बातें भी उनके दिमाग में आती हैं? इस तरह से लोग मोह-माया के जाल में फंसे हुए हैं। लेकिन कितना भी कोई समझाए, वो नहीं समझते और जो नहीं समझते उनको अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। ऐसे में किसी और को दोष देना गलत बात है। दोष दूसरों को मत दीजिए, बल्कि दोष अपने कर्मों को दीजिए। आज कलियुग का तूफानी दौर चल रहा है। लोग पागलों की तरह इसमें फंसे हुए हैं।

अगर अपने मालिक, सतगुरु, परमात्मा को याद करें, उसकी भक्ति-इबादत करें तो इसमें से निकल सकते हैं, छुटकारा हो सकता है। इन्सान किसी के कर्मो का बोझ अपने ऊपर नहीं ले सकता। जिसके जैसे कर्म हैं, वो उसको खुद को ही भुगतने होंगे। इन्सान दूसरे के कर्मों का बोझ नहीं उठा सकता। हां, उसे समझाकर, अल्लाह, वाहेगुरु, राम से जोड़कर, भक्ति-इबादत से जोड़कर आप उसके कर्मों का बोझ जरूर हल्का करवा सकते हैं, क्योंकि वाहेगुरु, राम के नाम में वो ताकत है जो पापों के लाखों मण ढेर भी हों तो उनको भी जला कर पल में राख कर देता है। इसलिए आप खुद को मोह-ममता, मन-माया से बचा कर रखो, पागल मत बनो।

आपका जो लक्ष्य अल्लाह, राम को पाने का है उस तरफ ध्यान दीजिए। अपने बच्चों से प्यार-मोहब्बत करो लेकिन सीमा में रहकर। अगर वो गलती करते हैं, बुराई की तरफ जाते हैं तो उनको रोको, उनका बुराई में साथ मत दो। अगर साथ दे रहें हैं तो आप भी गुनाहों के भागीदार हैं और अपने बच्चे को गुनाहगार बनाने में आपका बहुत बड़ा हाथ है। अगर आपमें हिम्मत है, अगर आप उससे प्रेम करते हैं तो उनके अंदर जो बुराइयां हैं वो उनके मुंह पर कहकर उनको रोको, इसलिए मोह-ममता की एक सीमा रखो। अगर अव्वल प्यार, सबसे ऊंचा दर्जा किसी को देना है तो अल्लाह, वाहेगुरु, राम के प्रेम को दीजिए। जितना बेगर्ज-नि:स्वार्थ प्रभु से प्रेम करोगे उतना ही वो अपनी दया-मेहर,रहमत से मालामाल कर देगा। भजन के आखिर में आया-

‘बाकी जो समय है लाभ उठाले, नाम जपकर जीवन
सफल बना ले। कहें ‘शाह सतनाम जी’, करे ना ये काम जी,
हाय तूने ये क्या किया॥’

इस बारे में लिखा बताया है;-

‘सफल बना ले जन्म मनुष्य को, हरि का नाम ध्याले तू।
संतों के चरणों में अपना प्रेम-प्यार लगा ले तू।
कर अरजोई मालिक के आगे, माफ कसूर करा ले तू।
सत्संग कर संतों का भाई नाम पदार्थ पा ले तू।।’
बाकी जो समय है लाभ उठाले,
नाम जपकर जीवन सफल बना ले।
कहें ‘शाह सतनाम जी’, करे ना ये काम जी, हाय तूने ये क्या किया।

कि समय जो ये बाकी है उसे बर्बाद न करो। उसमें अपने वाहेगुरु, अल्लाह, राम को याद करो। गुजर गया सो गुजर गया, उसका फिक्र करने से वो वापिस तो आने से रहा लेकिन जो समय आपके पास है उसमें मालिक को याद करो। रूहानियत में एक कहावत मशहूर है-‘जब जागो तभी सवेरा’ कि जो गुजर गया उसके लिए रोओ नहीं। आज जो समय है अभी से जाग जाइए और अपने वाहेगुरु, अल्लाह, राम को याद कीजिए तो ऐसी खुशियां मिलेंगी जो पहले कभी आपने सोची भी नहीं होंगी। वाहेगुरु के प्यार-मोहब्बत में, अल्लाह, राम की भक्ति-इबादत में बेअंत, बेमिसाल रहमतें छुपी हुई हैं लेकिन कोई उनको पाने वाला चाहिए और वो अधिकार आपको है। बस, सुमिरन कीजिए, नेक कमाई कीजिए, सबसे नि:स्वार्थ प्रेम कीजिए, किसी को बुरा ना कहो, ना सुनो।

मालिक का सुमिरन करते हुए, भक्ति-इबादत करते हुए उसकी दया-मेहर से मालामाल आप हो सकते हैं। जब इन्सान मालिक का नाम नहीं लेता, सुमिरन नहीं करता तो दया-मेहर, रहमत से झोलियां कैसे भरेंगी। इसलिए आप सुमिरन जरूर करें, सच्ची लगन, तड़प से सुमिरन करेंगे तो आपका मन भी काबू में आ जाएगा और सुमिरन करने में भी मजा आएगा। प्रभु-परमात्मा की याद में कहीं वैराग्य पैदा हो जाए तो तरी के रास्ते जितना जल्दी पहुंचा जाता है, खुश्क नमाजें, खुश्क भक्ति कहीं दूर रह जाती है। प्रेम, वैराग्य रूपी घोड़े पर सवार होकर इन्सान जल्द से जल्द अल्लाह, मालिक के प्यार-मोहब्बत को पा जाया करते हैं।

पर वैराग्य आना उस मालिक की रहमत और इन्सान की तड़प पर निर्भर करता है। अगर तड़प से उसको बुलाता है तो ये हो नहीं सकता कि वो वाहेगुरु, सतगुरु ना आए पर उसकी याद में कोई तड़पे तो सही। लेकिन कोई नहीं तड़पता बल्कि उससे तो काम लेता है। कहता है कि हे राम! लाख लगाया है चार लाख कर देना तुझे सवा सौ दे दूंगा। कितने झांसे दे रहा है इन्सान मालिक को। तो भाई! ऐसा मत करो, बल्कि अपने परम पिता परमात्मा से उसी को मांगो, मालिक से मालिक को मांगोगे तो वो मिलेगा और अगर वो मिलेगा तो दुनियावी चीजों की कमी नहीं रहेगी। इसलिए ईश्वर से, अल्लाह, वाहेगुरु, राम से उसी को मांगना सच्ची भक्ति है और इसी कारण उसकी दया-मेहर से झोलियां लबालब भर जाया करती हैं।

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