The Indo-Pak war of 4 December 1971 was surrounded by the shadow of death, but the brave did not panic

4 दिसंबर 1971 का वो भारत-पाक युद्ध मौत के साये में घिरे थे, पर घबराए नहीं जांबाज

4 दिसंबर की वो कयामत भरी रात जब दुश्मन के 60 टैंक गोलों के रूप में आग बरसा रहे थे। पता नहीं कौन सा गोला हमारी जिंदगी पर भारी पड़ जाए! कौन सी गोली सीने को चीर कर निकल जाए! कुछ पता नहीं था। कयामत भरी इस भयानक रात में मौत ने चारों ओर से घेर रखा था।

जिधर देखते दुश्मन की टुकड़ियां गोले बरसाते घेरा डाले हुए आ रही थीं। उनकी भयंकर गर्जनाएं आसमान को भी हिला देने वाली थी। बस खामोशी थी तो हमारी टुकड़ी में, लेकिन यह खामोशी बड़ी गहरी थी, जैसे एक शेर अपने शिकार से पहले खामोश हो जाता है और फिर एकाएक उस पर टूट पड़ता है। बेशक हम मौत के साये में घिरे थे, लेकिन जवानों के चेहरे पर तनिक भी घबराहट या डर नहीं था। जवानों में हौंसला अब पहले से दोगुणा हो चुका था, क्योंकि वह वक्त आ चुका था जिसके लिए एक सैनिक अपने देश पर मर-मिटने की कसम खाता है।

पूरी रात भारत के जांबाजों ने डट कर दुश्मन से लोहा लिया। यह डरावना दृश्य था 1971 का, जब दुश्मन मुल्क के सैैनिकों ने जैसलमेर के लौंगेवाला के नजदीक बॉर्डर पिलर-638 एरिया पर कब्जा कर लिया था, यह क्षेत्र भारतीय सीमा में था।

भारतीय सेना की 23 पंजाब पलटन (टुकड़ी) की एक कम्पनी के झुझारू सैनिक रहे जगदेव सिंह बताते हैं कि लौंगेवाल पोस्ट पर 50 के करीब जवान ही मौजूद थे। मैं और साथी जवान तरसेम सिंह टू-मैन मोर्चे पर थे, जो पाकिस्तान की साइड से पहला मोर्चा था। 4 दिसंबर 1971 को लेफ्टिनेंट धर्मवीर सिंह अपने 25 जवानों को लेकर सायं को बोर्डर के साथ-साथ पेट्रोलिंग पर थे। उन्होंने देखा कि दुश्मन की नियत में खोट आ चुका है। वह अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए कोई प्लानिंग बना रहा है। इसका अंदेशा होते ही धर्मवीर सिंह ने जवानों को वहीं रोक लिया और पाकिस्तानी सैनिकों के हर मूवमेंट पर नजर रखने लगे। थोड़े समय बाद ही उन्हें आभास हो गया कि दुश्मन लोंगेवाल पोस्ट पर हमला कर सकता है तो उन्होंने मेजर के.एस. चांदपुरी को अलर्ट कर दिया।

जगदेव सिंह बताते हैं कि सूर्य ढलने के साथ ही पाक सैनिकों ने अपनी योजना को पूरा करने का प्रयास शुरू कर दिया। रात के करीब 10 बजे होंगे कि जब दुश्मन 60 टैंक और करीब 4000 सैनिकों के साथ लोंगेवाल पोस्ट के नजदीक आ पहुंचा। मैं और तरसेम सिंह टू-मैन पोस्ट पर तैनात थे, जो दुश्मन की तोपों से कुछ दूरी पर थी। हमारी कंपनी भी पूरी अलर्ट हो चुकी थी, क्योंकि अब तो आर-पार की जंग होने जा रही थी। दुश्मन आरटी गोले गिराने लगा, जो हमारी पोस्ट के आस-पास ही गिर रहे थे, गनीमत रही कि हम उसका सही टारगेट नहीं बने।

इधर मेजर केएस चांदपुरी ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सभी सैनिकों को एकत्रित किया। उन्होंने जवानों का हौंसला बढ़ाते हुए कहा-‘यह परीक्षा की घड़ी है। आज देश को तुम्हारी जरूरत है। हमें देश के लिए जी-जान से लड़ना है। अब कोई सीनियर, जूनियर नहीं। सिर्फ सैनिक बनकर वतन की हिफाजत करनी है। यदि कोई सैनिक मैदान छोड़ कर भागेगा तो गोली मार दी जाएगी। अगर मैं भागूं तो मेरे को भी गोली मार देना।’

बेशक दुश्मन हमारे सिर पर खड़ा था, लेकिन मेजर चांदपुरी का हौंसला कमाल का था। उन्होंने हर जवान में एक ऐसी ताकत भर दी कि वह एकेला ही दुश्मन से लोहा लेने का दम भरने लगा। आधी रात के करीब दुश्मन ने गोलियां की बौछार के साथ गोले चलाने शुरू कर दिए। हमारे पास जवाबी कार्रवाई को ज्यादा कुछ नहीं था, लेकिन हौंसला इतना था कि एक-एक जवान उनपर भारी पड़ रहा था। हमने एक योजना के तहत जयकारे लगाने शुरू कर दिए तो दुश्मन डर गया। उन्हें लगा कि यहां सैनिकों की तादाद बहुत ज्यादा है। पाक सैनिकों ने इस दौरान झूठ का भी सहारा लिया। उन्होंने अफवाह फैलाने का प्रयास किया कि लोंगेवाल पोस्ट पर अब पाक का कब्जा हो चुका है। लेकिन मेजर केएस चांदपुरी ने उनके इस दावे की हवा निकाल दी।

पल्टून के इंचार्ज करनैल सिंह बाजवा ने जब उच्चाधिकारी को पूरे घटनाक्रम से अवगत करवाया तो उधर से संदेश आया कि जैसे-तैसे रात का समय निकाला जाए। क्योंकि रात के समय में हवाई जहाज से दुश्मन को टारगेट करना संभव नहीं हो पाएगा। पूरी रात हमारे जवानों ने मशीनगनों से गोलियां बरसाकर दुश्मन को आगे बढ़ने से रोके रखा। जैसे ही सुबह की भौर फटी तो एयर फोर्स ने मोर्चा संभाल लिया। थोड़ी-थोड़ी देर में दो-दो जहाज उस एरिया में चक्कर लगाने लगे। हमारे लड़ाकू जहाजों ने दुश्मन के टैंकों को ढूंढ-ढूंढ कर निशाना बनाया। जंगी जहाज दुश्मन के टैंक पर राकेट दागते तो वह टैंक में घुस जाता और थोड़ी देर बाद उस टैंक के चिथड़े उड़ा देता।

ऐसे घातक हमले के बाद पाक सैनिक दुम दबाकर भागते नजर आए। जगदेव सिंह ने बताया कि उस समय तो ऐसे हालात लग रहे थे कि दुश्मन से जंग छिड़ चुकी है। लेकिन वायुसेना के जांबाजों ने दुश्मन को थोड़े समय में ही मलियामेट कर दिया। वे बताते हैं हमें उस दौरान 36 घंटे बाद भोजन नसीब हुआ, लेकिन तब तक हालात पर काबू पा लिया था। दु:ख इस बात का था कि हमने इस लड़ाई में पलटन के तीन जवान और टैंक टीम के 3 जवानों को खो दिया था। हालांकि भारतीय सेना ने 175 सैनिकों को ढेर कर दिया था।

‘इंडो-पाक पिलर 638’ के नाम से प्रसिद्ध है लोंगेवाला

लोंगेवाला (जैसलमेर), राजस्थान में थार रेगिस्तान पर एक छोटा सा टाउन है। ये पाकिस्तान के बॉर्डर पर स्थित इस जगह का खास महत्व है, क्योंकि यहां 1971 में 4-5 दिसंबर को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था। इसमें पाकिस्तान ने भारत पर लगभग 3000 बम गिराए थे, लेकिन फिर भी जीत भारत की हुई थी। लोंगेवाला पोस्ट आज ‘इंडो-पाक पिलर 638’ के नाम से जाना जाता है। 1971 में पाकिस्तान ने भारत की लोंगेवाला चेकपोस्ट पर अटैक कर दिया था। 1997 की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘बॉर्डर’ की शूटिंग यहीं हुई थी और फिल्म में इसी युद्ध को दिखाया गया है।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!