मालिक का हाथ तुम्हारे सिर पे है, तुम्हारा बाल बाँका नहीं हो सकता
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
सत्संगियों के अनुभव
बहन बलजीत कौर इन्सां पुत्री सचखण्डवासी स. नायब सिंह गाँव नटार तहसील व जिला सिरसा से परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने खुद पर हुई अपार रहमतों का वर्णन बताती है:-
सन् 1977 की बात है। गाँव चनणपुरा (जण्डांवाला) जिला भटिंडा में रात का सत्संग था। सोहणे सतगुरु परम पिता जी शाही स्टेज पर विराजमान थे। सत्संग के कार्यक्रम के दौरान पूज्य परम पिता जी ने एक पर्ची अपने पावन कर कमलों से लिखकर मेरे डैडी जी के पास भेजी, जिस पर लिखा हुआ था- नायब सिंह जी, आप श्री मुक्तसर साहिब अभी जा रहे हो या सुबह? वाया कोटकपूरा जाओगे या वाया भटिंडा? इसी पर्ची पर लिख दो। मेरे डैडी उठकर पूज्य परम पिता जी के पास पहुँच गए और विनती की कि पिता जी, जैसा आप जी का हुक्म हो।
इस पर सर्व सामर्थ त्रिकालदर्शी सतगुरु जी ने फरमाया, ‘सत्संग समाप्त होते ही ठहराव (उतारे) वाले घर मिलना’। उस समय हम श्री मुक्तसर साहिब शहर के नजदीक एक गाँव में रहते थे।
जब हम परम पिता जी के ठहराव वाले घर पहुँचे तो शहनशाह जी ने हमें आदेश फरमाया, ‘बेटा! आप सारा परिवार यही पर कमरे में सो जाओ। सुबह वाया बठिंडा जाना है। बहनों के पास भटिंडा की एक बहन बैठी है, उसे उसके घर छोड़कर सीधे मुक्तसर चले जाना। अगर कोई पूछने आए तो घर वालों को कह दो कि वे कह दें, नायब सिंह के तो चले गए हैं।
’ हम पूज्य परम पिता जी को सत्वचन कह कर आ गए और पूज्य परम पिता जी उसी समय रात को यहाँ से आगे को चले गए। हमें समझ में नहीं आ रहा था कि उसे (बहन को) बठिंडा छोड़ने का काम हमारे जिम्मे क्यों लगाया गया है। जब कि बठिंडा से बहुत साध-संगत आई हुई थी। हमने परम पिता जी का हुक्म घर वालों को बताया कि अगर कोई पूछे तो तुमने कह देना कि नायब सिंह तो चले गए। इस पर घर वालों ने बताया कि एक जीप पर कुछ आदमी पहले ही तुम्हारे बारे पूछ कर गए हैं। हमने उनको कहा था कि वह सत्संग सुनने गए हैं।
हम अभी लेटे ही थे कि जीप वालों ने फिर आकर घर वालों से पूछा कि नायब सिंह हैं? तो घर वालों ने कहा कि वे चले गए हैं। और पूछने पर उन्होंने बताया कि यह नहीं पता कि वह किधर जाएँगे?
दरअसल में बात यह थी कि उन दिनों में हमारा जमीन का मुकद्दमा चल रहा था। हमारे विरोधी हर बार यही कहते थे कि हम अगली तारीख तक नायब सिंह को जिंदा नहीं छोड़ेंगे।
परन्तु सर्व शक्तिमान, हमारे रक्षक स्वयं पूज्य परमपिता जी कुल मालिक हम पर मेहरबान था। कुछ दिनों के बाद जब हमने उक्त सारी बात पूज्य परम पिता जी को बताई तो पिता जी ने वचन फरमाया, ‘मालिक का हाथ तुम्हारे सिर पे है। तुम्हारा बाल बाँका नहीं हो सकता। ’ बाद में उन विरोधियों में से एक आदमी ने हमें बताया कि उस रात हम दोनों रास्तों पे बैठे थे। तुम्हारा सतगुरु बहुत शक्तिशाली है। फिर उस आदमी ने नाम शब्द भी ले लिया था। सतगुरु के उपकारों का वर्णन लिखने बोलने में आ ही नहीं सकता।
कबीर जी ने लिखा है:-
सब पर्वत स्याही करूँ,
घोलूँ समुद्र माहि।।
धरती सब कागद करूँ,
गुरु गुण लिखा न जाइ।।