roohaanee satsang - Sachi Shiksha

रूहानी सत्संग: पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा सरसा
इस जन्म का किया जाए ना ब्यान। सब जूनियों से जून ऊंची, मिली प्रधान।।
मालिक की साजी नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ, जो भी जीव यहां पर सत्संग-पण्डाल में, आश्रम में चल कर आए हैं, अपने कीमती समय में से समय निकाल कर, मन का सामना करते हुए आप सभी पधारे हैं। कलयुग में राम-नाम की कथा-कहानी में आना बहुत मुश्किल है। भाग्यशाली होते हैं, ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, मालिक की कृपा होती है जो सत्संग में चलकर आते हैं। आप लोग सत्संग में पधारे हैं, आप सभी का सत्संग में पधारने का, आश्रम में आने का तहेदिल से बहुत-बहुत स्वागत करते हैं, जी आयां नूं, खुशामदीद, मोस्ट वैल्कम कहते हैं। आपकी सेवा में जो सत्संग होने जा रहा है,

जिस भजन पर सत्संग होगा वह भजन है

इस जन्म का किया जाए ना ब्यान।
सब जूनियों से जून ऊंची, मिली प्रधान।।

इन्सान का शरीर वैज्ञानिकों के लिए एक अबुझ पहेली बना हुआ है। ऐसी पहेली जिस पर लगातार रिसर्च हो रहे हैं लेकिन फिर भी शरीर के बारे में पूर्णतय: कोई समझ नहीं पाया है। उस परम पिता परमात्मा ने चौरासी लाख शरीरों में इन्सान का शरीर सर्वोत्तम बनाया है। आश्चर्यजनक बात, बहुत छोटा शरीर है पर सब प्राणियों से बड़ा दिमाग है, सोचने-समझने की ताकत है। लेकिन यह शक्ति, ताकत उस मालिक ने इन्सान को क्यों दी? प्रत्येक प्राणी को प्रभु ने आत्म-रक्षा के लिए कुछ-न-कुछ दिया है। किसी को जहर दिया है तो किसी के शरीर का रंग बदल जाता है।

कोई किस तरह से बचाव करता है, पर इन्सान को आत्म-रक्षा के लिए उस परम पिता परमात्मा ने बहुत बड़ा दिमाग दिया है। दूसरे प्राणी शरीर की रक्षा कर सकते हैं, उसे आत्म-रक्षा कहा तो जाता है लेकिन असल में वो शरीर तक सीमित हैं यानि अपने जहर से, अपनी शक्ति से उस शरीर को अपने दुश्मन से बचा लेते हैं लेकिन इन्सान को परम पिता परमात्मा ने ऐसी शक्ति दी है कि ये आत्मा को काल, नैगेटिव पॉवर से बुराई का जो प्रतीक है, उससे बचा सकता है। उसके आवागमन के चक्कर से काल ने जो जन्म-मरण का चक्कर चलाया है जिसमें रूह, आत्मा उलझी हुई है। उससे मोक्ष-मुक्ति आत्मा को अगर मिल सकती है किसी शरीर में, तो वो इंसान का शरीर ही है।

यही नहीं, इस शरीर में ऐसी शक्तियां भरी हैं, ऐसी ताकत भरी है जो कहने-सुनने से परे है। जीते-जीअ इंसान परम पिता परमात्मा के दर्शन-दीदार कर सकता है और वो मालिक, प्रभु जो कण-कण, जर्रे-जर्रे में है, नजर नहीं आता, पर इंसान को प्रभु ने ये ताकत दी है कि अगर ये रिसर्च करे, भक्ति करे तो कण-कण, जर्रे-जर्रे में मालिक के दर्शन-दीदार इसे हो सकते हैं। ऐसा कोई और शरीर नहीं है जो उस परम पिता परमात्मा के दर्शन-दीदार कर सके और उसकी दया-मेहर को हासिल करके उसके उस नूर को, उस स्वरूप को जो कण-कण, जर्रे-जर्रे में है उसको देख सके। चौरासी लाख शरीरों में केवल इंसान का शरीर ही ऐसा है जो उस परम पिता परमात्मा को, अति सूक्ष्म स्वरूप को जर्रे-जर्रे में और अपने अन्दर भी देख सकता है।

इस जन्म का किया जाए न ब्यान
सब जूनियों से जून ऊंची मिली प्रधान

इस बारे में रूहानी संत, पीर फकीरों की वाणी में बताया है

मनुष्य जन्म सबसे ऊंचा है, इन्सानी चोले के अन्दर ही मालिक का मिलाप करना है, परन्तु यह बाहर टक्करें मारता रहता है। इस काया मंदिर में दाखिल नहीं होता। न अपने-आप को जानता है और न ही मालिक को।
भाई साथ-साथ भजन चलेगा और साथ-साथ आपकी सेवा में अर्ज करते चलेंगे।
टेक:- इस जन्म का किया जाए ना ब्यान।
सब जूनियों से जून ऊंची, मिली प्रधान।।

1. प्रभु मिलने लिए ये मिली है बार,
ये मिली है बार।
काम खाने सोने में रहा है गुजार,
हां जी रहा है गुजार।
जिस काम को आया दिया ना ध्यान,
इस जन्म…

2. जो जीअ चाहे कर सकता है,
कर सकता है।
इसी जन्म में नाम जप सकता है,
जप सकता है।
और जूनियों को नहीं है ये ज्ञान।
इस जन्म…

3. माया जाल में कैसा फंस रहा है,
हां जी फंस रहा है।
देख माया के खिलौने हंस रहा है,
देखो हंस रहा है।
करे होश न बन बैठा है नादान। इस जन्म…

4. काम विषय विकारों को जान लिया,
हां जी जान लिया।
बुरे काम ही करना मान लिया,
हां जी मान लिया।
किए कर्माें का देना पड़े भुगतान। इस जन्म…

भजन के शुरू में आया है:-

प्रभु मिलने लिए ये मिली है बार,
ये मिली है ये बार।
काम खाने-सोने में रहा है गुजार,
हां जी रहा है गुजार।
जिस काम को आया दिया ना ध्यान।

प्रभु, ओ३म, हरि, अल्लाह, राम जो सबसे बड़ी ताकत है। जितनी भी संसार में शक्तियां हैं वो प्रभु उन सभी का दाता है। प्रभु जिसकी याद में सब देवी-देवता, फरिश्ते बैठते हैं, उसकी भक्ति-इबादत करते हैं, उसी को यहां प्रभु, ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु कहा जाता है। यह बताना जरूरी है, क्योंकि प्रभु इतने हो गए हैं कि मानने वाले उतने नहीं हैं। तीन सौ पैंसठ करोड़ तो देवी-देवता हैं, जो सभी प्रभु हैं, फिर काल, महाकाल है वो भी प्रभु है तो किस प्रभु को याद करें! बेपरवाह जी ने भजन कव्वाली में लिखा है:-
कोई छोटा रब्ब कोई वड्डा रब्ब,
मैं केहड़ा केहड़ा रब्ब पूजां।।

तो जो दोनों जहान का मालिक है जिसकी हर कोई भक्ति करता है। वो किसी की भक्ति नहीं करता, उसकी भक्ति सभी करते हैं। उसी को यहां प्रभु, अल्लाह, राम, वाहेगुरु, ,खुदा, रब्ब कहा जा रहा है। वो दोनों जहान का मालिक है, दाता है और उसकी भक्ति का हक चौरासी लाख शरीरों में किसी शरीर को है तो वो इंसान का शरीर है। बाकी के जीव-जन्तु, पक्षी, कीट-पतंगे अगर भक्ति करें तो त्रिलोकी नाथ तक, काल के दायरे में सीमित हैं। वो अल्लाह, राम, वाहेगुरु की भक्ति, इबादत नहीं कर पाते। भाई! उस मालिक की भक्ति, उस परम पिता परमात्मा की भक्ति के लिए यह समय, यह अवसर मिला है।
‘काम खाने सोने में रहा है गुजार।’
कईयों ने तो जीवन का उद्देश्य ही खाना-पीना बना लिया है। सुबह उठे तो खाया, दिन को खाया रात को भी खाया बाकी समय खर्राटों में बिताया। अल्लाह, वाहेगुरु, ओ३म, हरि, राम की तरफ ध्यान ही नहीं है।
प्रभु मिलने लिए ये मिली है बार,
ये मिली है बार।
काम खाने-सोने में रहा है गुजार।
इस बारे में लिखा है:-
मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मालिक के मिलने का समय है। जो काम हम करते हैं वो सब शरीर के साथ सम्बन्ध रखते हैं। इनमें से हमारी आत्मा के काम आने वाला कोई भी नहीं है। इसके काम आने वाली चीज केवल साध-संगत है जिससे नाम की प्राप्ति होती है। इसलिए मनुष्य जन्म को मालिक की भक्ति में लगाकर इससे लाभ उठाओ।
आगे आया है:-
जो जीअ चाहे कर सकता है, कर सकता है।
इसी जन्म में नाम जप सकता है,
जप सकता है।
और जूनियों को नहीं है ये ज्ञान।

इंसान को ये ज्ञान है, दिमाग है, सोचने समझने की ताकत है कि इसी जन्म में वो आवागमन से आजादी हासिल कर सकता है। ऐसी आत्मिक शान्ति, ऐसी लज्जत हासिल कर सकता है जो अखण्डनीय है। जैसे इंसान के जीवन में सुख-दु:ख के पल आते हैं, वो इंसान की इच्छा के अनुसार है।

जो जिस चीज का प्यासा हो वो प्यास जब बुझती है तो वो एक पल बड़ा ही आनन्दमय होता है। वो चाहे नोटों की वर्षा हो, बेटा पैदा हो जाए, चाहे कुछ भी जैसी उसकी अन्दर की इच्छा है उस एक पल में बड़ी ही खुशी आती है और दूसरे पल कम हो जाती है यानि पांच-दस मिनट में काफी फर्क पड़ जाता है और कुछ दिनों में तो काफी परिवर्तन हो जाता है और बाद में इंसान को पता ही नहीं रहता कि इतनी खुशी भी आयी थी। जरा सोचिए! अगर वो खुशी हमेशा रहे, वैसा हृदय, वैसी सोच हर समय रहे, खुशियों का माहौल, वो आनन्द अगर हमेशा इंसान के अन्दर से बना रहे तो क्या उस जैसा कोई दूसरा हो सकता है? इससे बड़ा सुख और कोई नहीं हो सकता। हर समय इंसान अलौकिक आनन्द को महसूस करे और इंसान कर सकता है अगर वो लगन से सुमिरन करे और सेवा करे।

जो सेवा करते हैं उनका सुमिरन बहुत जल्दी चलता है पर सेवा के साथ चुगली-निंदा न करें। सेवा करते समय शब्द वाणी करें। आप मानवता की, इंसानियत की सेवा करते हैं और अगर साथ में सुमिरन कर लो तो सेवा के साथ फल दोगुना, चार गुणा भी मिल सकता है। सेवा और सुमिरन में ताकत होती है। सुमिरन सेवा के फल को भी बढ़ा देता है, इसके अलावा सुमिरन मन को भी मालिक की याद में लगाने के लिए ताकत देता है तथा मन को बुराइयों की तरफ जाने से रोकता है और आत्मा को शक्ति देता है। भाई! सेवा करने वाले जीव अगर साथ में सुमिरन करें, मालिक की भक्ति करें तो उन पर परमात्मा का रंग जल्दी चढेÞगा।

आगे आया है

माया जाल में कैसा फंस रहा है,
हां जी फंस रहा है।
देख माया के खिलौने हंस रहा है,
देखो हंस रहा है।
करे होश न बन बैठा है नादान।।

जो कुछ भी नजर आता है सब मायक पदार्थ हैं। ये हमारे सभी गुरुओं, पीर-फकीरोंं, सन्तों ने सभी धर्माें में पीर-पैगम्बरों ने समझाया है पर फिर भी इंसान विश्वास नहीं करता। इन दुनियावी साजो सामान के लिए छीना-झपटी करता, ठग्गी, बेईमानी करता है, बुरे कर्म करता है, बुरी सोच हमेशा सोचता रहता है। भाई! ऐसे बुरे कर्म, ऐसी बुरी सोच तुझे डुबो देगी, तुझे तबाह कर देगी। तेरी खुशियों का, इंसानियत, मानवता का खात्मा करेगी। इस सोच से उभर। अगर अपने आप नहीं उभर सकता तो अल्लाह, राम के नाम का वो हथियार ले ले या यूं कहें कि वो चप्पू ले ले जो डुबती हुई नैया को किनारा दिखा दे। तो भाई, मालिक का नाम, प्रभु का नाम जरूरी है अगर आप मन-माया से आजाद होना चाहते हैं।

इस बारे में लिखा है

कालबुत की हसतनी मन बउरा रे
चलतु रचिओ जगदीस।।
काम सुआइ गज बसि परे मन बउरा रे
अंकसु सहिओ सीस।।
बिखै बाचु हरि राचु समझु मन बउरा रे।।
निरभै होइ न हरि भजे मन बउरा रे
गहिओ न राम जहाजु।।

कबीर साहिब जी फरमाते हैं कि जिस तरह कागजों की हस्तनी (हथिनी) के द्वारा हाथी को पकड़ लेते हैं। हे मन दीवाने! इसी तरह ही तेरे फंसाने के लिए काल ने माया रूपी हस्तनी बनाई है और इसी तरह खेल रचा है। काम-विषय के कारण करके हाथी फंस जाता है। हे मन दीवाने! फिर हाथी संगलों की मार सिर पर सहता है।

संसार में जो कुछ भी नजर आता है यह सब मायक पदार्थ हैं। इनको इंसान देखता है और इन्हीं का होकर रह जाता है। ये सच है और पता भी है कि एक दिन सब कुछ छोड़ कर जाना है। आश्चर्यजनक बात है। ये पता होते हुए भी जो तू बना रहा है कि एक दिन छोड़ेगा। इनके लिए फिर भी लोगों को तड़पाता है, जुल्म करता है, छीन कर खाता है, ठग्गी बेईमानी, झूठ बोलता है। हालांकि एक दिन लेने के देने पड़ेंगे। उस मालिक के न्याय से डर क्योंकि वो कभी भी किसी के साथ अन्याय नहीं करता, हमेशा न्याय करता है। मालिक वही करता है जो जायज होता है। तो भाई! बुरा मत कर, बुरा किसी का न करो, न बुरा सोचो और मायक पदार्थाें में फंस कर अल्लाह, राम को न भूलो, क्योंकि उसको भूलने की सजा आवागमन है। यानि सदियों तक जन्म-मरण में भटकना होगा। युग बीत जाएंगे, आत्मा तड़पती रहेगी, व्याकुल होगी, बेचैन होगी पर छुटकारा नहीं होगा।

देख माया के खिलौने हंस रहा।
करे होश ना बन बैठा है नादान।।

होश नहीं करता मान-बड़ाई के चक्कर में ऐसा फंसा है, गुलाम है। दस-बीस लोगों ने जी-जी कर दिया तो फूल कर कुप्पा हो गया। ये नहीं पता तेरे से पहले कितने इस संसार में आए जिनका सिक्का चला करता था। सिक्का चलने वालों का हशर ये हुआ कि आज उनका नामोनिशाान नहीं मिलता। तो भाई! तू क्या सोचता है कि दस-बीस लोगो ने मान-बड़ाई दे दी तो तू कुछ बन जाएगा, कभी सोचा है? अरे! भक्ति, मालिक की याद में तो तू बहुत कुछ बन सकता है। अल्लाह, राम की भक्ति और मानवता-इंसानियत की सेवा करता हुआ तो उसकी दया-मेहर के काबिल बन सकता है और असली इंसानियत तेरे अन्दर जैसे ही पैदा होगी दोनों जहान में तेरा नाम अमर होगा। अगर तू मालिक की राह पर चले तो ऐसा सम्भव है। अगर दुनियावी पदार्थों में चलता है, दुनियावी धन्धों में चलता है तो नामोनिशान मिट जाएगा, कोई नाम लेने वाला नहीं बचेगा।

आगे आया है

काम विषय विकारों को जान लिया,
हां जी जान लिया।
बुरे काम ही करना मान लिया,
हां जी मान लिया।
किए कर्माें का देना पडेÞ भुगतान।
इस बारे में लिखा है:-
अमलु सिरानो लेखा देना।।
आए कठिन दूत जम लेना।।
किआ तै खटिआ कहा गवाइआ
चलहु सिताब दीबानि बुलाइआ।।

यहां भजन में आया है

यह धन्धा समझ लिया कि बुरे काम करने हैं। बस उन्हीं में फंसा हुआ है। कई लोगों को कहते सुना, कई अन्दर सोचते हैं। हम तो कर रहे हैं, हमारी मर्जी जैसा करें, आगे देखेंगे। फिर भाई! तू नहीं देखेगा, मालिक देखेगा। जितनी उम्र भगवान ने दी है उसमें यहां देख ले अगर अच्छा देख लेगा तो बढ़िया रहेगा। आगे देखने की जरूरत नहीं है, वहां तो दिखाया जाएगा कि तूने क्या किया है, तू क्या कर रहा है। जैसे कैमरे हैं इनमें कैसट भर लेते हैं जब मर्जी रिपीट करो, आपको दिखाई जाएगी कि आप क्या कह रहे हैं। ऐसे ही हिन्दू धर्म में चित्रगुप्त का नाम आता है जो बहुत पहले से है।

ये कैमरे तो अभी बने हैं, वो तो आदि-काल की बात है। चित्रगुप्त यानि गुप्त रूप में वो तुम्हारी तस्वीर बना रहा है, मूवी बना रहा है, क्या कर रहे हो, कहां क्या किया है, अकेले में कैसे होशियारी दिखा रहे हो और राम-नाम में आप कैसे बगले बन कर बैठते हो, वो सारा वहां पर रिकार्ड हो रहा है। ये तो चलचित्र से नजर आता है और वो हकीकत में नजर आएंगे। ये तो उसकी बहुत छोटी नकल है। उस उमर में तुम्हें दिखा दिया जाएगा कि ऐसा तुम कर रहे हो । बिल्कुल हू-ब-हू आपको दिखाया जाएगा।

देखने का मौका तो अभी है, देख लो। कई कह देते हैं आगे का आगे देखेंगे। आगे तो भगवान ही देखेगा, तू नहीं। तेरे लिए तो अभी समय है। आगे का तो वाहेगुरु, अल्लाह, राम के हाथ में है। ये समय है जिसमें तू देख सकता है। वो भी उसकी खुद मुखत्यारी तुझे मिली हुई है इसलिए अब तू देख ले, पहचान ले, बुरे कर्मों से बाज आ जा, मान जा। आगे तो फिर वहां अपील दलील नहीं चलेगी। तुझे दिखाया जाएगा कि देख, क्या तेरी एक्टिंग है और असल में तू क्या करता है। ऐसा हमने देखा, बड़ी एक्टिंग चलती है, बड़ा कुछ दिखाते हैं, देखने में ना जी, जी हजूरिया, क्या कहना। वचन मानना नहीं और हां जी, हां जी, हां जी।

आप मालिक को याद करें, बुरी आदतें छोड़ दें अगर आपने आगे और यहां पर भी परमानंद की अनुभूति करनी है। जैसे आप स्वर्ग-जन्नत से बढ़कर नज़ारे ले रहे हो, ऐसा अगर चाहते हो तो विषय-विकारों को और होशियारी को छोड़ कर अल्लाह-राम के सामने सच्चे दिल से तौबा करो। वो मालिक आपके अन्दर ही बैठा है। अन्दर तौबा करो कि मालिक ! मैं ये बुराइयां नहीं करूंगा, बुरे कर्म नहीं करूंगा तो मालिक की दया-मेहर के काबिल आप जरूर बन पाएंगे।
थोड़ा-सा भजन रह रहा है,

5. जब जन्म हाथ से जाएगा,
हां जी जाएगा।
बड़ा रोए और पछताएगा, पछताएगा।
देख यमदूतों को होएगा हैरान।
इस जन्म…

6. ऐसे जन्म का फायदा उठाना था,
हां उठाना था।
काल जेल से रूह को छुड़ाना था,
हां छुड़ाना था।
रहें हरदम नशेयों में गुलतान।
इस जन्म…

7. समय कीमती हाथ से जाए जी,
समय जाए जी।
नाम जप कर लाभ उठाए जी,
हां उठाए जी।
‘शाह सतनाम जी’ हरदम हैं समझान।
इस जन्म…

भजन के आखिर में आया है:-
जब जन्म हाथ से जाएगा, हां जी जाएगा।
बड़ा रोए और पछताएगा, पछताएगा।
देख यमदूतों को होएगा हैरान।

जब समय निकल गया, आत्मा को जब शरीर छोड़ कर जाना पड़ा तो बड़ी हैरानी होगी, बड़ा दु:ख आएगा। यमदूत, काल के एजेंट जब वो लेने आएंगे जो बड़े ही कुरूप हैं, उन्हें देखते ही कइयों की रफा-हाजत कपड़ों में निकल जाती है। बहुत जगह ऐसा देखने को मिलता है क्योंकि उनकी शक्ल बहुत भयानक होती है। अब तो विज्ञान के पास भी कोई ऐसा पहलू नहीं है जो इंकार कर दे क्योंकि मरने के बाद जो लोग जिंदा हुए उन्होंने भी ऐसा बताया कि कुरूप से आदमी आए थे जो उनको(आत्मा को) लेकर गए हैं।

शरीर तो वहीं था। तंग दायरा आया, तंग गली आयी,या सुरंग जैसी, या सीढ़ियों जैसी, वो ही बात जो हमारे रूहानी सूफी-फकीरों ने हजारों साल पहले बताई कि भाई! वो आते हैं, बड़ा ही डर लगता है, बड़ी बेचैनी होती है। कई बच्चे तो काल के बुत को देख कर डर जाते हैं। वह तो कुछ भी नहीं है। ऐसा कह कर हमारा उद्देश्य किसी को डराना नहीं है बल्कि सच ब्यान करना है। जो हकीकत है, वो आपकी सेवा में अर्ज कर रहे हैं। आपको ये बात झूठ लगती है, लेकिन क्या किया जा सकता है। मालिक क्यों ऐसा अनुभव करवाए। ऐसा अनुभव तो अच्छा भी नहीं है कि आप उन पुरुषों को देखें। बल्कि आप मालिक को देखें आपके लिए यही अनुभव अच्छा है।

तो भाई! वो जब लेने आते हैं फिर वहां कोई अपील दलील नहीं चलती। ये नहीं होता कि आप पैसा देकर दुनिया में अपनी बात को सही करा लेते हैं और ऐसे ही यमदूत आए और आप कहें, यमदूत भाई! ये ले पांच-सात लाख रुपये तू भी ऐश कर और मुझे भी पांच-सात साल जिन्दा रहने दे! वहां पर बिल्कुल भी ऐसा-कुछ नहीं चलता। वहां तो जैसे कर्म किए, जब समय आ गया तब आपकी आत्मा को ये शरीर खाली करना ही होगा, जाना जी होगा।

आपको बड़ा पश्चाताप होगा कि समय गुजर गया, क्यों नहीं मालिक को याद किया। अगर अल्लाह, राम को याद करो तो वो अपने नूरी स्वरूप में आत्मा को अपनी गोद में बैठा कर ले जाते हैं और मार्ग-दर्शन करते हुए अपने में समा लेते हैं। कोई दु:ख की घड़ी आने नहीं देते। तो भाई! मालिक का नाम नहीं जपा, सुमिरन नहीं किया तो फिर ऐसे मार्ग से जाना पड़ता है जहां चींटी की भी ताकत नहीं कि उस रास्ते पर चले। रूहों का बुरा हशर होता है, तड़पती हैं, बेचैन होती हैं।

इस बारे में बताया है

मनुष्य जन्म दुर्लभ है बार-बार हाथ नहीं आता। यदि ये एक बार हाथ से निकल गया फिर बाद में बड़ा पछताना पड़ता है।
कबीर मानस जनमु दुलंभु है होइ न बारैबार।।
जिउ बन फल पाके भोइ गिरहि
बहुरि न लागहि डार।।

आगे आया है

ऐसे जन्म का फायदा उठाना था,
हां उठाना था।
काल जेल से रूह को छुड़ाना था,
हां छुड़ाना था।
रहें हरदम नशेयों में गुलतान।

जन्म का फायदा उठाया जा सकता है अगर इंसान नेक कर्म करे और ईश्वर की भक्ति-इबादत करे और पाखण्डों से, भ्रमों से बाहर आए। मालिक का नाम जिसके साथ है अगर नेक-भले कर्म करता है, वचनों पर सही है, तो कोई बुराई की ताकत इसका बाल बांका नहीं कर सकती। राम-नाम में ऐसी ताकत है। लोग भ्रमों, पाखण्डों में पड़ जाते हैं। बीमारी आती है तो उसे भूत समझ लेते हैं बल्कि अपनी खुद की परछाई को भी भूत समझ लेते हैं। केवल यही नहीं, अपने पैरों की जो पदचाप होती है उस बारे में सोचते हैं कि कोई पीछा कर रहा है। ये सब भ्रम है।

इस बारे में लिखा है

एक जेलखाना है जिसकी चौरासी लाख कोठियां अलग-अलग क्लासों के कैदियों के रहने के लिए हैं। इसमें से निकलने का एक दरवाजा है। एक गंजा आदमी जिसकी आंखें मिची हुई(बंद) हैं, उस कैदखाने के अंदर चक्कर लगाता है। जब निकलने का दरवाजा आता है तो वो गंज को खुरकने लग जाता है और फिर से चौरासी लाख कोठड़ियों का चक्कर लगाने लग जाता है।

आत्मा को उसी तरह से इंसान का शरीर मिला है, आवागमन से आजादी के लिए। जैसे वो गंजा आदमी बेचारा, गंज में खाज हुई उसे खुजलाने लगा, खुजती करने लगा। उसी तरह से आत्मा को आवागमन से आजादी का समय मिला लेकिन ये भी गंज लज्जतों में, विषय-विकारों में, मायक-पदार्थाें में ऐसा खो गयी कि इससे वो दरवाजा निकल गया। शरीर का समय निकल जाता है और फिर से जन्म-मरण के कैदखाने में बंद होना पड़ता है। ये मोक्ष-मुक्ति के लिए द्वार मिला है, दरवाजा मिला है। इन्सान राम का नाम जपे पर यह तो नशो में धुत रहता है।
भजन के आखिर में आया है:-

समय कीमती हाथ से जाए जी,
समय जाए जी
नाम जप कर लाभ उठाए जी, हां उठाए जी।
‘शाह सतनाम जी’ हरदम हैं समझान।।

इस बारे में लिखा है

सन्तों का वचन है कि अब ही करो और फिर का भरोसा न रखो। जो अब नहीं करते और आज का काम कल पर पा(छोड़) देते हैं, वो कभी भी नहीं करते। समय की कदर करो। समय और समुद्र की लहर कभी किसी का इंतजार नहीं करते।

कल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलो होएगी, फेर करेगा कब।।
कल करे सो आज कर, आज है तेरे हाथ।
कल कल तू क्या करे, कल है काल के हाथ।।

समय और समुद्र की लहर कभी किसी का इंतजार नहीं करते। एक बार जो चला गया वो लौट कर वापिस नहीं आता। इसलिए कबीर जी ने कहा कि अल्लाह, राम के लिए जो कल सोचा है भक्ति करूंगा वो आज कर और आज वाला अब कर। ‘पल में प्रलय होएगी’, प्रलय मौत को कहा है जो कभी भी आ सकती है। वो आ गई तो फिर कब करेगा! तू कहता है कल को करूंगा, कल को करूंगा, अरे! कल-कल क्या करता है, कल तो काल के हाथ में है, काल के गर्भ में छुपा हुआ है। पता नहीं आपके लिए अच्छा है या बुरा है। जो समय आपके हाथ में है यही बढ़िया है, इसका लाभ उठाएं।
समय कीमती हाथ से जाए जी,
नाम जप कर लाभ उठाए जी।
‘शाह सतनाम जी’ हरदम हैं समझान।।

हर समय, हर पल जीव को समझाते रहे हैं, समझा रहे हैं और हर समय समझाते ही रहेंगे। ये उन्हीं की दया-मेहर, रहमत है। यही फरमाया है कि समय की कदर कर। मालिक का नाम जप। नाम के सुमिरन से, उसकी भक्ति-इबादत से फायदा होगा। मालिक के नाम का जाप आवागमन से आजादी तो दिलाता ही है साथ में दु:ख, गम, चिन्ताएं दूर होती हैं। इन्सान आत्म-बल हासिल करके परम-पद को हासिल करता है और यहां-वहां दोनों जहान में सच्चा सुख, आनन्द, लज्जत, खुशियों का सच्चा हकदार बन जाता है।

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