ऐसे होेते हैं सोलह शृंगार
लड़की से दुल्हन बनने तक की राह लंबी होती है। सजते-संवरते, बनते-निखरते उसे सोलह श्रृंगारों से गुजरना होता है। सोलह शृंगार से ही हर लड़की के नैसर्गिक सौंदर्य में ऐसा निखार आता है कि उसका क्या कहना।
इसके लिए उसे पहला अवसर शादी के समय पर ही मिलता है। समाज तथा परिवार के शुभ अवसरों पर हमारे समाज में जो सोलह श्रृंगार निर्धारित किए गए हैं, वे और कुछ नहीं, लड़की के अंदर छिपे जादू को सामने लाने के तरीके भर हैं।
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सोलह-शृंगार की साज-सज्जा:-
मांग-टीका
मांग टीका सोलह श्रृंगार का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है। यह बालों में मांग के बीचों-बीच लटकने वाला सोने का टीका होता है। सोना भारतीय वैवाहिक परम्पराओं में पवित्र स्थान रखता है।
बिंदिया माथे के बीचों-बीच लाल रंग की यह बिंदिया सजी होती है और इसके चारों ओर छोटी-छोटी सफेद बिंदिया भी होती हैं। इन्हें सुहाग की निशानी भी माना जाता है। बिंदिया को इतना बड़ा होना चाहिए कि चेहरे के अन्य मेकअप में उसकी उपस्थिति दबकर न रह जाए।
काजल
काजल आंखों को बुरी नजर से बचाता है। इसे पलकों के ऊपर और नीचे की ओर इस तरह लगाया जाता है कि आंखें अधिक चौड़ी और आकर्षक लगती हैं।
नथनी नाक के बांए हिस्से पर लगा यह आभूषण कभी बहुत बड़ा होता था लेकिन अब यह छोटा होता जा रहा है। दुल्हनें ज्यादा भारी नथनी पहनती हैं।
भरी हुई मांग काले सुनहरे और चमकते बालों के बीच लाल सिंदूर को मांग भरना कहते हैं। बिजली रूपी इस सौंदर्य को सौभाग्य की निशानी माना जाता है।
गले का हार रानी हार, चंदन-हार, चंद्र-हार, तनमणि, छागामी आदि हार प्रचलन में हैं। हार महिलाओं को बहुत प्रिय हैं।
कर्ण-फूल गले में हार की तरह कान में कर्णफूल भी वैवाहिक आभूषण हैं और सोलह शृंगार का एक अंग भी है। इसमें झुमका लगा होता है।
मेहंदी
मेहंदी गोरी की हथेली, कलाई और पैरों पर लगाई जाती है। इसे बेहद बारीक डिजाइन से लगाने का चलन जोरों पर है।
चूड़ियां और कंगन
बिना चूड़ियों और कंगन के मेंहदी लगे हाथ शोभा नहीं देते। चूड़ियां सोने की होती हैं और उन पर मीनाकारी भी हो सकती है। सोने की मोटी चूड़ी ही कड़ा कहलाती है लेकिन विवाह पर आमतौर पर सोने के कड़े ही पहने जाते हैं अब तो डायंमड की पतली चूड़िया प्रचलन में हैं।
बाजूबंद
सोलह शृंगार में बाजूबंद काफी समय बाद शामिल हुआ और ऐसा माना जाता है कि यह मुगलों की देन है। दुल्हन के शृंगार का यह अब महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
आरसी
आरसी का अर्थ है दर्पण। यह दुल्हन का ऐसा आइना होता है जिसे वह गुप चुप अपनी उंगलियों में धारण कर सकती है। दुल्हन आरसी में खुद को और पिया को निहारती है।
केश सौंदर्य
बालों का धोना, सुखाना तथा उनमें फूलों के गजरे आकर्षक ढंग से लगाना, उनमें सौंदर्य पैदा करता है। बालों का गूंथना, जूड़ा बनाकर उसमें सोने के आभूषण सजाना भी दुल्हन के केश विन्यास का अहम् हिस्सा है।
कमरबंद
दुल्हन की कमर को चारों ओर से लपेटने वाला कमरबंद कई तरह से बनाया जाता है। इसे साड़ी में टांकने की व्यवस्था भी रहती है।
पाजेब
पाजेब में लगे घुंघरू दुल्हन के आगमन के शुभ संकेत से पूरे घर को गुंजा देते हैं। इनमें छोटे-छोटे घुंघरू लटके होते हैं जिन से चलने पर छम-छम की ध्वनियां निकलती हैं।
बिछिआ
पांव की आखिरी तीन उंगलियों में बिछिओं को पहनने का रिवाज है। मेहंदी लगे पावों की उंगलियों में बिछिआ सुंदर लगती हैं।
वस्त्र
दुल्हन को आकर्षक बनाने की बड़ी जिम्मेदारी वस्त्रों पर होती हैं। फिलहाल इस पोशाक को फैशन डिजाइनरों से तैयार करवाने का रिवाज जोर पकड़ रहा है। लहंगा हो या साड़ी, दुल्हन के व्यक्तित्व के अनुसार तैयार करते हैं।
नीति शुक्ला
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