क्या होता है ब्लैक होल?
अभी तक प्रकृति के बारे में जितना ज्ञात हुआ है उसकी अपेक्षा अविज्ञात का क्षेत्र कई गुणा अधिक है। जिन शक्तिॅोतों का पता चला है, उनसे भी अधिक सामर्थ्यवान स्रोत प्रकृति के गर्भ में विद्यमान हैं जिनके विषय में वैज्ञानिकों की जानकारी अत्यल्प है। उदाहरणार्थ ‘ब्लैक होल‘ के बारे में जो थोड़ी-बहुत बातें जानी जा सकी हैं, वे ये हैं कि ब्लैक होल ऐसे केन्द्र हैं जो अन्तरिक्ष और पृथ्वी दोनों में ही विद्यमान हैं। इनकी गुरूत्वाकर्षण-शक्ति इतनी अधिक होती है कि ये छोटे-मोटे तारों और ग्रहों को भी अपने प्रचण्ड खिंचाव द्वारा अजगर की भांति लील सकते हैं। इनकी आकर्षण सीमा में आने वाली कोई भी छोटी बड़ी वस्तु तेजी से खिंचती चली जाती है। अनुमान है कि ब्रहमाण्ड में ऐसे अनेकों रहस्यमय केन्द्र मौजूद हैं जिनकी विस्तृत जानकारी वैज्ञानिकों को भी नहीं है।
खगोल विज्ञान की परिकल्पना यह है कि तारों का जन्म होता है, वे विकसित होते हैं और अन्त में नष्ट हो जाते हैं और अन्तत: किसी अविज्ञात प्रक्रि या द्वारा ब्लैक होल में परिवर्तित हो जाते हैं। तारों की आयु उनके भीतर विद्यमान हाइड्रोजन की मात्र पर निर्भर करती है। हाइड्रोजन जब जलकर समाप्त हो जाती है तब तारा धीरे-धीरे सिकुड़ने लगता है। अपने मूल रूप से कई गुना सिकुड़कर ब्लैक होल में बदल जाता है।
ब्लैक होल नाम इसलिए पड़ा कि अन्तरिक्ष में मात्र ऐसे काले धब्बों के आधार पर ब्लैक होल का अनुमान लगाया गया है। इनके भीतर क्या है, यह अत्यन्त ही रहस्यमय है। कुछ दशकों पूर्व तक यह अनुमान था कि ऐसे केन्द्र मात्र अन्तरिक्ष में हैं पर नवीनतम शोधों के आधार पर यह मालूम हुआ है कि पृथ्वी पर भी ऐसे अनेकों स्थल हैं जहां ब्लैक होल के अस्तित्व का परिचय मिला है।
बहुचर्चित बरमूडा ट्राएंगल ऐसे ही केन्द्रों में से एक है जहां सैंकड़ों वायुयान, जलयान और सैंकड़ों मनुष्य अब तक देखते ही देखते विलुप्त हो चुके हैं। कितने ही खोजी दलों को भी उस क्षेत्र में आकर अपनी जान गवानी पड़ी है जिनके शरीर का कोई चिन्ह भी प्राप्त नहीं हो सका। कुछ भौतिकविदों का मत है कि इस केन्द्र के निकट अदृश्य किन्तु प्रचंड भू चुंबकीय चक्र वात चलते रहते हैं जो चपेट में आने वाली वस्तुओं तथा मनुष्यों को किसी अदृश्यलोक में फेंक देते हैं।
‘इवान सेन्डर सन’ नामक एक भौतिकविद ने ऐसी घटनाओं का गहराई से अध्ययन एवं पर्यवेक्षण किया। निष्कर्ष में उन्होंने बताया कि ब्लैक होल जैसे स्थान पृथ्वी पर विद्यमान हैं। उनका कहना है कि पृथ्वी की विषुवत रेखा के उत्तर तथा दक्षिण में 36 अंश अक्षांश पर ऐसे बारह स्थान एक सीध में हैं। इन स्थानों पर वस्तुओं एवं व्यक्तियों के अकस्मात गायब हो जाने की घटनाएं अधिक घटित होती हैं। ऐसे स्थानों को सेन्डरसन ने ‘डैविल्स ग्रेवयार्ड’ अर्थात ‘शैतान की शमशान भूमि’ नाम दिया है।
इनका कहना है कि इन स्थानों पर मनुष्य की दशेन्द्रियां काम नहीं करती तथा वहां समुद्र का पानी, आकाश और क्षितिज एक जैसे दिखाई पड़ते हैं। मनुष्य द्वारा विनिर्मित चुम्बकीय तथा विद्युतीय यन्त्र काम नहीं करते। यन्त्रों में विद्युत बनना भी बंद हो जाती है। इन बारह स्थानों में से दो स्थान उत्तरी तथा दक्षिणी धु्रव में है। पांच उतरी गोलार्द्ध तथा पांच दक्षिणी गोलार्द्ध में पड़ते हैं। इन स्थानों में से दो मात्र जमीन पर पड़ते हैं। आठ गहरे समुद्र में पड़ते हैं। एक चीन और भारत की सीमा पर तथा दूसरा अफ्रीका एवं स्पेन की सीमा पर पड़ता है।
इन स्थानों के अतिरिक्त भी ऐसे अनेकों स्थानों के प्रमाण मिले हैं जहां से कितने ही व्यक्ति कुछ ही क्षणों में दृश्य जगत से ओझल हो जाते हैं। विज्ञान-विशारदों का मत है कि अस्थाई तौर पर भी किसी स्थान विशेष पर ब्लैक होल बनते और समाप्त होते रहते हैं। उनके स्वरूप कारण का ज्ञान तो अब तक नहीं हो सका है पर समय-समय पर हुए व्यक्यिों तथा वस्तुओं के प्रमाण इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि ब्लैक होल अस्थाई तौर से भी पृथ्वी पर बनते रहते हैं पर वे क्षणिक होते हैं तथा थोड़े ही समय बाद समाप्त हो जाते हैं। उनकी प्रचण्ड शक्ति का बोध नजरों के सामने से अचानक गायब हो जाने वाली वस्तुओं-व्यक्तियों की घटनाओं से होता है।
स्थायी और अस्थायी तौर पर प्रचण्ड शक्ति के भंडार ये ब्लैक होल क्या हैं? इनके बनने की प्रक्रि या क्या है? इनके भीतर इतनी अधिक आकर्षण शक्ति कैसे पैदा होती है? इनकी चपेट में आने पर वस्तुएं और व्यक्ति लुप्त क्यों हो जाते हैं? अन्तत: वे कहां चले जाते हैं? इन स्थानों से किसी अन्य लोक से आवागमन का कोई महत्त्वपूर्ण सम्बध तो नहीं जुड़ा हुआ है? पौरााणिक कथा के अनुसार रावण, अहिरावण आदि राक्षस, पाताल लोक को अपनी इच्छानुसार चले जाते थे। सम्भव है, उनके जाने का माध्यम ये ही रहे हों। ब्लैक होल की प्रचण्ड गुरूत्वाकर्षण शक्ति पर नियंत्रण करने तथा उसका उपयोग करने के वैज्ञानिक नियमों की सम्भव है कुछ जानकारी रही हो। चाहे जो भी हो पर यह स्पष्ट हो चुका है कि प्रकृति की प्रचण्ड सामर्थ्य ब्लैक होल जैसे केन्द्रों से भरी पड़ी है।
ब्लैक होल की शक्ति का यह तो एक उदाहरण मात्र है। भूकम्प आने, ज्वालामुखी फटने आदि घटनाओं का सुनिश्चित कारण अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। तत्वदर्शियों का कहना है कि प्रकृति की प्रत्येक घटना सकारण है। वह कभी भूल नहीं करती। उसके सभी घटक सुव्यवस्थित हैं। आश्चर्यजनक घटनाओं के माध्यम से वह बोध कराती है कि उसकी सूक्ष्म परतों को पढ़ा जाये। सन्निहित शक्तियों को करतलगत करने के लिये प्रचण्ड पुरूषार्थ किया जाए। उन नियमों को एवं अविज्ञात सूत्रों को ढूंढा जाए जो विलक्षण घटनाओं से घटित होने के कारण बनते हैं।
प्रकृति के गर्भ में विद्यमान अनेकों नेक सूक्ष्म शक्ति स्रोतों को जानने तथा उनमें समाहित प्रकट प्रचण्ड सामर्थ्य को करतलगत किया जा सके तो मनुष्य के विकास तथा सुख सुविधाओं से युक्त परिस्थितियों के निर्माण में असाधारण सहयोग मिल सकता है।
– राजकुमार अग्रवाल ‘राजू’