Chameleon गिरगिट रंग क्यों बदलता है
गिरगिट कई तरह के होते हैं। यहां हम ‘पमेलियन’ और ‘कैलोटिस’ नामक गिरगिटों की बात करेंगे। गिरगिट एक किस्म की छिपकली है। छिपकलियों को प्राणी जगत के ‘सरीसृप’ खानदान की सदस्य माना जाता है। रंग बदलने के अलावा गिरगिट के दो अन्य गुण भी होते हैं। एक तो इसकी पूंछ है जो किसी भी टहनी आदि पर सहज ही लिपट जाती है और दूसरे गुण के रूप में इसकी जीभ है। इसकी जीभ काफी लंबी होती है तथा झटके के साथ बाहर निकलकर कीड़े-मकौड़ों को पकड़ने का काम करती है। जाहिर है कि गिरगिट मांसाहारी होते हैं।
गिरगिट को अपना रंग बदलने में लगभग बीस मिनट का समय लगता है। अब प्रश्न यह उठता है कि गिरगिट अपना रंग क्यों बदलता है? माना जाता है कि गिरगिट अपना रंग इसलिए बदलता रहता है ताकि वह नज़र न आए और शिकार करने को आए शिकारी से उसकी रक्षा हो जाए अर्थात् अपनी रक्षा के लिए। यह भी माना जाता है कि गिरगिट अगर किसी कीड़े-मकोड़े का शिकार करना चाहता है तो कीड़े-मकोड़े को गिरगिट की उपस्थिति का पता ही नहीं चलेगा और वह आसानी से पकड़ में आ जाएगा। एक अन्य धारणा के अनुसार बताया जाता है कि गिरगिट अपनी मादा को आकर्षित करने के लिए रंग बदला करते हैं।
सबसे रोचक बात यह है कि रक्षा या आक्रमण के लिए रंग परिवर्तन तथा मादा को आकर्षित करने के लिए रंग परिवर्तन दोनों ही एक-दूसरे के परस्पर विरोधी तथ्य मालूम पड़ते हैं। अगर किसी की नज़र में नहीं आना है तो गिरगिट को अपना रंग परिवेश के समान बनाना होगा और मादा को आकर्षित करना है तो नर गिरगिट को अपना रंग परिवेश से यथासंभव भिन्न ही बनाना होगा। इस संबंध में कई प्रयोग भी हुए हैं। इससे एक निष्कर्ष जो सामने आया है कि परिवेश में घुल-मिल जाने के लिए गिरगिट रंग नहीं बदला करते। इस प्रयोग के लिए तीन गिरगिटों को अलग-अलग शीशे के बर्तनों में रखा गया। एक बर्तन में हरी पत्तियाँ, दूसरी में भूरी तथा तीसरे में सफेद रेत डाल दी गई। काफी समय बाद भी तीनों का रंग एक-सा ही बना रहा।
एक अन्य प्रयोग में गिरगिट को एक काले डिब्बे में बंद कर दिया गया। उस डिब्बे का तापमान 75 सेल्सियस हो जाने के बाद गिरगिट का रंग हरा हो गया। वैसे आम तौर पर गिरगिट का रंग भूरा-काला होता है। मतलब यह कि रंग परिवर्तन का तापमान से कुछ संबंध अवश्य है। यह भी देखा गया है कि गिरगिट के रंग पर रोशनी का भी प्रभाव पड़ता है। मसलन अगर चमड़ी के एक हिस्से पर काली पट्टी चिपका दी जाए और फिर गिरगिट को तेज रोशनी में रख दिया जाए तो सिर्फ उस चमड़ी का रंग बदलता है जिस पर रोशनी पड़ी है। काली पट्टी से ढकी चमड़ी का रंग वही बना रहता है। इससे पता चलता है कि रंग बदलने की क्रिया चमड़ी में स्थानीय रूप से भी हो सकती है।
गिरगिट में यह देखा गया है कि जब वातावरण ठंडा होता है तो दिन के समय इसका रंग हरा रहता है। धूप में बैठने के बाद उसका रंग लाल हो जाता है। गिरगिट धूप में अधिक बैठना पसंद नहीं करते। अगर उन्हें धूप में निकलना भी पड़ता है तो वे कुछ इस तरह की ‘पोजीशन‘ लेते हैं कि शरीर पर धूप कम से कम पड़े। इस वक्त उसका शरीर भूरे रंग का होता है। गिरगिट में रंग परिवर्तन को लेकर काफी अध्ययन हुए हैं। रंग परिवर्तन की क्षमता रखने वाले जन्तुओं में एक विशेष प्रकार की कोशिका पाई जाती है, जिसे क्रोमोटोफोर कहते हैं।
इसमें विभिन्न प्रकार के रंगों के कण होते हैं। वे कण सही संकेत मिलने पर पूरी कोशिका में फैल सकते है और संकेत मिलने पर सिमट भी सकते हैं। जब वह पूरी कोशिका में फैल जाते हैं तो चमड़ी का रंग भी वही हो जाता है जो इन कणों का होता है। मोटे तौर पर रंग बदलने की क्रिया इतनी ही होती है। आमतौर पर रंग बदलने की क्रिया के लिए हर रंग के ‘क्रोमोटोफोर‘ अलग-अलग होते हैं मगर कभी-कभी एक क्रोमोटोफोर में एक से ज्यादा रंग भी पाए जाते हैं। जब एक ही रंग के क्रोमोटोफोर के कण फैले हों तो वही रंग दिखेगा मगर दो या दो से अधिक रंग के क्रोमोटोफोर कण फैल जाएं तो मिला-जुला रंग नजर आता है।
उत्तेजनावश रंग परिवर्तन मात्र एड्रीनेलीन नामक हार्मोन के कारण ही होते हैं। कुछ प्रजातियों में तो खुद एड्रीनेलीन ही यह काम करता है। एड्रीनेलीन हार्मोन प्राय: रीढ़धारी जन्तुओं में विभिन्न किस्म की उत्तेजनाओं के समय बनने लगता है।
-आनन्द कुमार अनन्त