पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी साधु सिंह इन्सां पुत्र श्री मट्ठू सिंह गांव मसीतां जिला सरसा(हरियाणा) पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के एक अनोखे अलौकिक करिश्मे का इस तरह वर्णन करता है:-
फरवरी 1991 की बात है कि मैं सत्संग सुनने व सेवा करने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा में गया हुआ था। उस समय सतगुरु की दोनों पवित्र बाडियां सत्संग, मजलिस में इक्ट्ठी दर्शन दिया करती थी। एक दिन शाम की मजलिस के समय दोनों पिता जी(परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज और पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) शाही स्टेज पर विराजमान थे।
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उस समय मैंने अपना बनाया एक शब्द बोला जो कि इस तरह है
टेक: पिता जी नूरी मुखडे चों हुक्म सुणा देओ,
मसीतां विच कदों आओगे।
साडे दिलां ‘च कायम होण खुशियां,
दस्सो जी केहड़े वार आओगे,
पिता जी केहड़े टैम आओगे।
1. पहलां सब तों है रूख्खां दा सलाम जी,
जीहदे पत्तेआं ’च लिखेआ तुहाडा नाम जी।
खुशी होणगे पंखेरू दर्शना पा के,
जी जिस राहीं तुुसीं आओगे।
साडे दिलां ’च….।
2. तुसीं बैठ जाओं जित्थे दीन दयाल जी,
ओस धरती दे जाग पैण भाग जी।
लक्खां पापी तारों नजरां दे नाल जी,
जी जित्थे परछावां पाओगे।
साडे दिलां ’च
3. थोडी खुशी विच साडे रंग राग जी,
सारी संगत दी इहो है फरियाद जी,
रहे सच्चा सौदा रहंदी दुनियां नाल जी,
जेहड़ा तुसीं तोली जाओगे।
साडे दिला ’च…. ।
उस समय डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम में सेवादार बलबीर सिंह की निगरानी में कपास, नरमें की छिट्टियों का शौर लगाने की सेवा चल रही थी। सेवादार बलबीर सिंह ने मेरी ड्यूटी शौर लगवाने की लगा दी कि तुझे यह काम करना आता है। मैं डेरे में यह सेवा कुछ दिन करता रहा। इस समय के दौरान एक दिन मुझे दोनों पिता जी की हजूरी में शब्द बोलने का मौका मिल गया।
मैंने उपरोक्त शब्द थोड़ा-सा बदल कर इस तरह बोला:-
पिता जी नूरी मुखड़े ’चों हुक्म सुणा दओ मसीतां विच कदों आओगे।
साडे दिलां ’च कायम होण ,खुशियां,
दस्सो जी केहउÞे वार आओगे,
पिता जी केहड़े टैम आओगे।
पिता जी केहड़े राहीं आओगे।
चाह दे नाल की खाओगे।
तब परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने ऊँची आवाज में तीन बार फरमाया, ‘भाई! जावांगे, जावांगे, जावांगे।’ फिर परम पिता जी ने अपने पवित्र कर-कमलों की अंगुलियों पर गिन कर फरमाया, ‘चार, अठ, बारां, जावांगे, जावांगे, जरूर जावांगे। 12वें महीने दी तेरां तरीक दिन शुक्रवार, दोपहर दे साढे बारां वजे।’ और साथ में मुझे मुखातिब होकर कहा, ‘भाई! याद रखना।’ तो फिर मैंने अपने हाथ जोड़ कर परम पिता जी को अर्ज की,‘पिता जी! किस टाइम ओओगे।’ तो परम पिता जी शहनशाह जी ने फरमाया, ‘दोपहर साढे बारां वजे, चाह पींदे ई नहीं।’ फिर सच्चे पातशाह परम पिता जी ने धीमी आवाज में फरमाया, ‘भई याद रखेओ।’
तब शहनशाह जी ने पास खड़े सेवादारों को थोड़ा ऊँची आवाज में फरमाया, ‘भाई! याद रखेओ।’ फिर सर्व सामर्थ सतगुरु परम पिता जी अपने पवित्र कर कमलों की अंगुलियां सारी साध-संगत की तरफ फेरते हुए फरमाया, ‘भाई! सारे ही याद रखेओ।’ उस समय सारी साध-संगत ने यह समझा कि परम पिता जी मसीतां(गांव का नाम) जाने का प्रोग्राम बता रहे हैं। परन्तु उन (संगत और सेवादारों को) को क्या पता था कि इस बात का क्या राज है। इस इलाही वचन का तो तब पता चला जब 13 दिसम्बर 1991 को दोपहर के साढे बारह बजे शहनशाह जी ने अपना नूरी चोला बदल लिया तथा वह संगत की आंखों से ओझल हो गए। जब कि शहनशाह जी ने इशारे व रमज से सारी साध-संगत को अपनी नूरी बॉडी बदलने का ठीक समय लगभग 10 महीने पहले ही बता दिया था।
इसके उपरान्त परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां अपनी जीवोद्धार यात्रा के दौरान सन् 1998 में गांव मसीतां में पधारे। उस समय हजूर पिता जी ने कई घरों में अपने पवित्र चरण टिकाए। जब सर्व सामर्थ सतगुरु सच्चे पातशाह जी मेरे(प्रेमी साधु सिंह इन्सां) घर पधारे तो परिवार की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। पिता जी ने बैडपर विराजमान होते ही फरमाया, ‘लेआ भाई चाह नाल की खवाएंगा। असीं तेरी मंग पूरी करन आए हां।
तेरा सारा कुझ ही मंजूर है।’ यह वचन सुनकर मैं वैराग्य में आ गया व मुझे अपने आप की होश न रही। मेरे सामने सारी वह रील घूम गई जब मैं परम पिता जी व हजूर पिता जी की हजूरी में शब्द के द्वारा मसीतां आने, चाय पीने तथा चाय के साथ कुछ खाने की अर्ज की थी। मैंने अर्ज तो परम पिता जी को की थी परन्तु उन्हीं के स्वरूप हजूर पिता जी ने मेरी अर्ज प्रवान करके मुझे बेअंत खुशियां बख्शी तथा मुझे अहसास करवा दिया कि हम ही परम पिता (शाह सतनाम सिंह जी महाराज) जी हैं।