दोबारा नाम-शब्द लेने वालों को ऐसे बाहर भेजा

दोबारा नाम-शब्द लेने वालों को ऐसे बाहर भेजा

सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज की कृपा-दृष्टि

ज्ञानी करतार सिंह गांव रामपुर थेड़ी(सरसा) से खुद-खुदा वाली दो जहान पूज्य शहनशाह मसताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्में के बारे में इस प्रकार बयान करता है:-

सन् 1955 की बात है। उन दिनों परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज यहीं डेरा सच्चा सौदा (सरसा) में बिरजमान थे। दरबार का मासिक सत्संग था। उन दिनों सत्संग अकसर रात-भर ही हुआ करते थे। बहुत जबरदस्त सत्संग हुआ। सत्संग की निश्चित कार्यवाही लगभग प्रात: 3:00 बजे तक पूरी हो गई थी। सत्संग के बाद पूज्य बेपरवाह जी ने अधिकारी जीवों को नाम-दान देना था।

इसलिए उन सभी बहन-भाइयों को एक अलग निश्चित जगह पर बैठा दिया गया।

उस दिन उन नाम लेने वाले जीवों में कुछ ऐसे भाई भी आकर बैठ गए थे जिन्होंने पहले से ही नाम ले रखा था। उस दिन नाम-शब्द की दात प्राप्त करने आए भाइयों की पूछ-पड़ताल करने की ड्यूटी शहर के ही एक प्रेमी खेम चन्द जी की हुआ करती थी। अन्तर्यामी दातार जी ने खेमचन्द को बुलाकर आदेश फरमाया, ‘नाम लेने वालों में कुछ ऐसे जीव हैं जो दोबारा बैठे हुए हैं, तुम उनसे बोल कर बाहर निकाल देना।’

प्रेमी खेमचन्द जी ने अपने मुर्शिद प्यारे दातार जी के हुक्मानुसार कम से कम दो-तीन बार बोल दिया कि जिन्होंने परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज से पहले नाम-दान ले रखा है, उन्होंने दोबारा नाम लेने वालों में नहीं बैठना जी। अगर कोई नाम को भूल गया है तो उन्हें हुक्म लेकर दोबारा याद करवा दिया जाएगा, परन्तु नाम दोबारा नहीं लेना है, लेकिन कोई भी बहन-भाई बाहर नहीं आया।

उसके बाद उस प्रेमी-भाई ने अपने प्यारे मुर्शिद के आदेशानुसार नाम लेने आए उन जीवों को सच्चा सौदा की पावन मर्यादा के बारे में समझाना शुरु कर दिया।
उन दिनों यहां पर बिजली नहीं हुआ करती थी। सत्संग भी गैस-लाइटों में किए जाते थे।

जहां परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने नाम देना था, उस कमरे में पधारे अचानक वह गैस भी भभक कर बुझ गया। कमरे में बिल्कुल अंधेरा हो गया। पूजनीय बेपरवाह जी की पावन हजूरी में पहले की तरह एक बार फिर भी बोल दिया गया कि नाम लेने वालों में जो भाई दोबारा नाम-शब्द लेने के लिए बैठे हुए हैं, कृपया वे इसी समय उठकर बाहर चले जाएं, लेकिन उस सेवादार की बात उन भाइयों ने अनसुनी कर दी और उनमें से कोई भी जीव नहीं उठा। सभी बहन-भाई चुपचाप बैठे रहे।

परम पूजनीय शहनशाह जी अपने मूढ़े पर विराजमान थे। गैस के बुझ जाने से कमरे में पूरा अन्धेरा था। सार्इं जी ने एकदम से कड़कती आवाज में फरमाया, ‘जिस भाई को पहले नाम-रस्ता मिल चुका है वह इसी वक्त उठकर बाहर चला जाए।’ लेकिन फिर भी कोई नहीं उठा। इस पर सर्व-सामर्थ प्यारे दातार सार्इं जी ने अपनी डंगोरी हाथ में ली और उसी अंधेरे में ही उन्हीं कुछ व्यक्तियों के सिर पर डंगोरी रख उन्हें बाहर चले जाने का हुक्म फरमाया। यह उनकी मौज थी, आप उन्हें दोबारा नाम नहीं देना चाहते थे और वो लोग हुक्म मानकर चुपचाप बाहर चले गए।

इस पर प्रेमी खेमचन्द ने सर्व-सामर्थ प्यारे दातार जी के पवित्र चरण-कमलों में विनती की, सार्इं जी! इस अंधेरे मेें आपजी को यह कैसे पता चला है कि इन लोगों ने पहले नाम ले रखा है जी? यह सुनकर अन्तर्यामी दातार जी ने फरमाया, ‘खेमा! जिस रास्ते पर आत्मा ने जाना है, वहां पर अन्धकार ही अन्धकार है।

इतना कि हाथ को हाथ दिखई नहीं देता। पूरा सतगुरु ही अपनी रूह की उस अन्धकर में मदद करता है और अपने पवित्र नाम का प्रकाश करता है। जो गुरु उस अन्धेरे में अपनी रूह की पहचान नहीं कर सकता, उह अग्गे की खोहण खोहवेगा?’
सर्व-समर्थ वाली दो जहान दातार जी ने नम-शब्द देने के बारे में स्पष्ट वचन फरमाया ‘अधिकारी जीव को नाम-रस्ता देने से पहले दरगाह में उसका फोटो उतरवाते हैं और फिर उसको नाम-रस्ता बताया जाता है।

जिसने पहले नाम ले लिया है, उसका फोटो दरगाह में उतरा हुआ है।’ बाद में उन प्रेमियों ने परम पूजनीय शहनशाह जी से अपनी उपरोक्त गलती की क्षमा मांगी कि ऐसा वे जान-बूझकर कर रहे थे।

हर बार नाम-दान लेने वाले सभी बहन-भाइयों को नाम-शब्द की दात बख्शने से पहले समझाया जाता है कि अगर किसी ने वचनों में कोई गलती कर ली है या जिसे नाम-शब्द के अक्षर याद नहीं है और उन्होंने पहले डेरा सच्चा सौदा से नाम ले रखा है (परम पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज, परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से या मौजूदा हजूर महाराज जी से) तो उन्होंने नाम लेने के लिए दोबारा नहीं बैठना। वचनों पर अमल करना साध-संगत का फर्ज है। तीनों प्रहेजों में कोई गलती हुई है, तो माफी ली जा सकती है।

अगर नाम याद नहीं ता दोबारा याद करवा दिया जाता है। लेकिन दोबारा नाम लेने के लिए बैठना अपने मुर्शिद कुल मालिक के वचनों के उलट चलना है। प्रेमी का ेऐसी गलती कभी नहीं करनी चहिए। मुख्य रूप से अपने मुर्शिद का वचन हमेशा सामने रखें, इसमें ही खुशी मिलती है।

सतगुरु सर्व-सामर्थ है। वह अनतर्यामी और घट-घट की जाननहार खुद कुल मालिक है। उपरोक्त उदाहरण के द्वारा परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी माहराज ने इसी सच्चाई को ही दुनिया के सामने प्रकट करके दिखाया है।

सच्ची शिक्षा हिंदी मैगज़ीन से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें FacebookTwitterGoogle+, LinkedIn और InstagramYouTube  पर फॉलो करें।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!