बाल कथा: चबाने की आदत Children’s story
श्रेयांश अपनी मम्मी के साथ उछलता-कूदता स्कूल जा रहा था। रास्ते में उसका मित्र वासु मिल गया। ‘कैसे हो श्रेयांश? तुम्हें याद है, आज दीपांशु का जन्मदिन है?’ वासु ने श्रेयांश को याद दिलाया।
‘हां, याद है।’ श्रेयांश ने खुश हो कर कहा। उसे पार्टियां अच्छी लगती थीं। दीपांशु की मम्मी तो बेटे के जन्मदिन पर कई तरह के खेलों का आयोजन करती थी और सभी बच्चों को अच्छे-अच्छे उपहार देती थीं। इसलिए बच्चे दीपांशु के जन्मदिन का इंतजार करते थे।
‘श्रेयांश, पानी की बोतल का पट्टा चबाना बंद करो।’ उसकी मम्मी ने कहा। श्रेयांश विचारों में खोया पट्टा चबाने में व्यस्त था। उसने एक बार तो उसे मुंह से निकाला परंतु पांच मिनट बाद ही दोबारा चबाने लगा। उसे चीजों को चबाने की बुरी आदत थी। उसने अपनी सभी पेंसिलों के ऊपरी सिरे चबा-चबा कर ब्रश जैसे बना डाले थे। अगर उसके हाथ में कुछ न होता तो वह अपने नाखून ही चबाने लगता। कई बार तो कागज तक खा जाता।
‘श्रेयांश, यह गंदी आदत छोड़ दो।’ उसकी मम्मी अक्सर उसे कहतीं परंतु वह जल्दी ही उनकी बात भूल जाता। ‘श्रेयांश, इसे हटाओ।’ उसकी मम्मी ने जब दोबारा उसे पट्टा चबाते देखा तो डांटा। जैसे ही वे स्कूल के गेट पर पहुंचे, श्रेयांश का मित्र मयूर भागता हुआ आया और बोला, ‘कैसे हो खरगोश, क्या तुम पार्टी में आ रहे हो?’
‘हां, क्यों नहीं।’ श्रेयांश ने कहा। उसके सभी मित्र उसकी चबाने की आदत के कारण उसे ‘खरगोश’ कह कर चिढ़ाते थे। श्रेयांश चित्रकारी अच्छी तरह करता था। उसने एक बहुत सुंदर गांव का चित्र बनाया था। ‘बहुत सुंदर।’ उस दिन उसकी मैडम चित्र देखते ही बोलीं, ‘इसे आज हम स्कूल के बोर्ड पर लगाएंगे। जैसे ही छुट्टी की घंटी बजे, तुम मेरे पास आ जाना।’
श्रेयांश बहुत खुश था कि उसके चित्र को सब देखेंगे।
वह सोचने लगा कि घंटी बजते ही वह भाग कर मैडम के पास जाएगा ताकि पार्टी में समय पर पहुँच सके। उसे चित्र बनाने के लिए ईनाम भी मिलेगा। शाम को जैसे ही घंटी बजी, श्रेयांश अपने चित्र को ले कर भागता हुआ मैडम के पास पहुंचा। मैडम पुराने चित्रों को हटाने व नए चित्र लगाने में व्यस्त थी। मैडम बोलीं, ‘एक मिनट रूको, श्रेयांश।’
श्रेयांश उनके बुलाने का इंतजार करते हुए अनजाने में अपने चित्र का ऊपरी हिस्सा चबाने लगा। मैडम बोलीं, ‘श्रेयांश, अब तुम मुझे अपना चित्र दो।’ ‘ओह नहीं….‘ श्रेयांश ने अपने हाथ में पकड़े चित्र को देखा तो भौचक्का रह गया। वह उसका ऊपरी हिस्सा चबा चुका था।
‘जल्दी करो, श्रेयांश।’ मैडम ने कहा, फिर उसकी ओर देखा। जब उन्होंने चबाया हुआ चित्र उसके हाथ में देखा तो बोलीं, ‘अब तुम यहां पर बैठ कर नया चित्र बनाओ, मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगी।’ श्रेयांश की हालत दयनीय हो गई। वह मैडम के पास बैठ कर चित्र बनाने लगा। उसे पार्टी में देर से पहुंचने का भी दु:ख हो रहा था।
उस दिन के बाद श्रेयांश ने अपनी इस गंदी आदत को छोड़ने का इरादा कर लिया। उसके मित्रों ने भी उसकी सहायता की। जब भी वह भूल से कोई चीज चबाने लगता तो सभी ‘चित्र’ कह कर चिल्लाते और श्रेयांश उस वस्तु को मुंह से निकाल देता। इस तरह कुछ ही दिनों में श्रेयांश ने अपनी गंदी आदत से पीछा छुड़ा लिया। -नरेंद्र देवांगन
































































