admiration

विचारशील व्यक्ति ही प्रशंसा का पात्र है -क्या सही है और क्या गलत, इसका फैसला करना बहुत कठिन होता है। एक ही कार्य किसी की दृृष्टि में ठीक होता है और किसी दूसरे की नज़र में गलत होता है। पानी से आधे भरे गिलास को कोई आधा भरा हुआ कहता है और कोई आधा खाली। दोनों प्रकार के ही लोगों के विचार अपने आप में सत्य हैं। बस कहने का तरीका उन दोनों तरह के लोगों का अलग-अलग है। उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता।

कुछ उदाहरणों से इस विषय को समझने का प्रयास करते हैं। पानी धरा पर है तो उसके साथ अग्नि भी है। पानी के स्थान पर अग्नि को तो नहीं पिया जा सकता। इसी तरह अग्नि के स्थान पर पानी को नहीं जलाया जा सकता। दोनों की ही हमारे जीवन में उपादेयता है। दोनों के बिना ही हम नहीं रह सकते। वे अपने-अपने कार्यों को दक्षता से करते हैं। दोनों में से किसी को भी हम श्रेष्ठ या बेकार नहीं कह सकते।

दिन में सूर्य आकाश में प्रकाशित होता है और रात्रि में चन्द्रमा। दिन और रात का यह चक्र सृष्टि के आदिकाल से इसी प्रकार चलता आ रहा है। सूर्य के प्रकाश से अँधेरा दूर होता है और सूर्य का प्रकाश अन्धकार में तिरोहित (लुप्त) हो जाता है। सूर्य और चन्द्रमा का यह आँख मिचौली का खेल यूँ ही अनवरत चलता रहता है। सूर्य और चन्द्रमा दोनों का अपने-अपने स्थान पर बहुत महत्त्व है।

यदि सूर्य नहीं होगा तो दिन का आरम्भ ही नहीं होगा। सर्वत्र बर्फ की चादर फैल जाएगी, पेड़, पौधे और वनस्पतियों की उत्पत्ति नहीं हो सकेगी। संसार के सारे कार्य-व्यवहार थम जाएँगे। चन्द्रमा नहीं होगा तो संसार अपनी दिनभर की थकावट दूर करके विश्राम नहीं कर सकेगा। आने वाले दिन के लिए लोग ऊर्जावान और स्फूर्त नहीं हो सकेंगे। इस प्रकार चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाएगी।

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सज्जन लोग सहृदयता, करुणा, दया, परोपकार आदि कार्यों से समाज का हित करते हैं। वे किसी का अहित नहीं करते। ‘सर्वजन हिताय‘ मंत्र को आत्मसात करके वे दिन-रात जन कल्याण के कार्यो में रत रहते हैं। उनसे किसी भी व्यक्ति को कभी शिकायत नहीं होती। वे सब लोगों के हृदयों में वास करते हैं। समाज को दिशा देने का कार्य करते हुए ये अपना जीवन धन्य करते हैं।

इनके विपरीत असामाजिक तत्त्व सदा ही समाज में विद्वेष फैलाते हैं। समाज विरोधी कार्य करने में मानो इन्हें महारत हासिल होती है। चोरी, डकैती, रिश्वतखोरी, जमाखोरी, दूसरों का गला काटना आदि कृत्यों को करने में इनके मन को कष्ट नहीं होता। न इन्हें समाज का डर होता है और न ही न्याय-व्यवस्था का ही भय होता है। अनाप-शनाप तरीकों से कमाए पैसे के बल पर ये अनावश्यक ही उछलते रहते हैं। ये लोग अपने सामने किसी को कुछ भी नहीं समझते।

इस प्रकार विश्लेषण करने पर यही समझ आता है कि किसी एक पहलू के विषय में जानकर अपनी मूल्यवान टिप्पणी नहीं करनी चाहिए और न ही अपनी कोई विशेष राय बनानी चाहिए। आधे-अधूरे ज्ञान के कारण बाद में सबके सामने शर्मिन्दा होना पड़ता है और फिर स्पष्टीकरण देना पड़ता है। ऐसी कष्टदायी परिस्थिति से मनीषियों को सदैव बचने का प्रयास करना चाहिए।

जब कभी ऐसी अपरिहार्य स्थिति समक्ष आ जाए, तब समझदार व्यक्ति को अपने विवेक का आश्रय लेना चाहिए। बिना किसी पूर्वाग्रह के उसे पहले हर पक्ष की निष्पक्ष जाँच कर लेनी चाहिए। उसके बाद ही उसे अपना मत समाज के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए अथवा अपने मन में किसी के प्रति कोई राय बनानी चाहिए। इस प्रकार का विचारशील व्यक्ति सर्वत्र ही प्रशंसा का पात्र बनता है। -चन्द्र प्रभा सूद

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