नाकामयाबी की ओर ले जाती हैं गलत आदतें
कामयाब होने के लिए परिश्रम, विश्वास, धैर्य व किस्मत की आवश्यकता होती है पर नाकामयाब होने पर हम किस्मत को ही दोष देते हैं। उसके आगे नहीं सोचते कि हमें कामयाबी क्यों नहीं मिली। अगर हम इसके बारे में शांत मन से मनन करें तो पता चलता है हमारी नाकामयाबी के कई ऐसे कारण हैं जो हमारी ही गलतियों का परिणाम हैं।
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आइए जानें क्या कारण हो सकते हैं:-
हम हमेशा गलती दूसरों में ढूंढते हैं
बहुत से लोगों की आदत होती है कि कामयाब न होने पर वे गलती का ठीकरा दूसरों पर फोड़ते हैं। दूसरों को जिम्मेदार ठहराना बुरी आदत है। हर असफलता के लिए किसी दूसरे को दोषी ठहराना और स्वयं को निर्दोष साबित करना ठीक नहीं। नाकामयाब होने पर अपने में गलती को ढूंढें और आगे उसे सुधारने का प्रयास करें, तभी सफलता हासिल हो सकती है।
यह मैं नहीं कर सकता
बहुत से लोगों की आदत होती है कि उन्हें कुछ करना हो तो करने से पहले ही उस काम के न होने की बात करते हैं। यदि आप सीढ़ी चढ़ने से पहले ही निराश होंगे तो चढ़ने का प्रयास कर ही नहीं पाएंगे और आगे कैसे बढ़ेंगे। निराशावादी न बन कर उस काम को पूरे मनोबल से करने का प्रयास करें तो परिणाम अच्छा ही मिलेगा। जो लोग पहले ही निराश होते हैं, वे निश्चित रूप से असफल होते हैं। मुमकिन शब्द उनके जहन में होता ही नहीं। ऐसे लोग नकारात्मक होते हैं।
मैं अकेले कर लूंगा
कालेज में, आफिस में कुछ प्रोजेक्ट्स ऐसे होते हैं जिन्हें मिलकर विचार कर किया जाए तो परिणाम अधिक बेहतर होते हैं पर बहुत से लोग प्रोजेक्ट मिलते ही कहते हैं अरे, इसे तो मैं अकेले कर लूंगा। ऐसे लोग महत्त्वाकांक्षी होते हैं और बस अपनी ही कामयाबी के बारे में सोचते हैं। वे टीम वर्क का महत्त्व नहीं समझते। वे भले ही कुछ समय के लिए कामयाब हो जाएं पर अंत में फ्लाप ही रहते हैं। अगर आपको टीम वर्क का प्रोजेक्ट मिला है तो टीम के साथ मिलकर काम करें, फिर सफल होने के चांस अधिक होंगे।
अपना आइडिया ही बेस्ट ठीक नहीं
कुछ लोगों को केवल अपने विचार और सोच ही बेस्ट लगती है। ऐसे लोग स्वार्थी और दूसरों की कदर न करने वाले होते हैं। ऐसे लोगों की सोच होती है कि किसी और को कामयाबी हासिल न हो। कोई कंपनी एक ही व्यक्ति की सोच या आइडिया को हमेशा फॉलो कर सफल नहीं हो सकती। दूसरों के विचारों को भी जानें और उस पर मनन करें। शायद उनका आइडिया कुछ नया हो।
मुझे परेशानी है इनसे
कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के लिए भी दूसरों को दोष देते हैं और उनकी कमियां सबके सामने कहते हैं। इस व्यक्ति से मुझे परेशानी है, ऐसा कहते हुए सोचते भी नहीं। उसको दूसरों की निगाह में गिरा देते हैं। ऐसे लोग यह नहीं सोचते कि वे स्वयं भी सबकी निगाह में गिर रहे हैं और अपने लिए अपनी कामयाबी का रास्ता बंद कर रहे हैं।
किसी की भी सलाह की कद्र नहीं
कुछ लोगों को कोई ठीक सलाह भी दे रहा होगा तो उनका कहना होगा- आपकी सलाह की आवश्यकता नहीं, मैं कर लूंगा। ऐसे लोग यह तय कर चलते हैं कि उन्हें टीम में या लोगों के साथ रहकर काम नहीं करना। उनका यह स्वभाव उन्हें अलग थलग-रहना दर्शाता है। ऐसे लोग टीम के साथ रहकर काम करने में सक्षम नहीं होते जिसके कारण कभी कभी वे अकेले रह जाते हैं और आगे बढ़ने का अवसर उन्हें कम मिलता है।
मुझे सब पता है
आज की युवा पीढ़ी की यह खास आदत है कि उन्हें कुछ समझा दो तो उनका जवाब होता है- मुझे पता है, मैं पहले से जानता हूं इसे कैसे करना है। उनकी यह आदत आगे बढ़ने में उन्हें सहयोग नहीं देती।
मैं सही हूं , तुम गलत हो
बहुत से लोग ओवर कांफिडेंट होते हैं जो बड़ी दृढ़ता से हमेशा यह कहते हैं कि मैं सही हूं और आप गलत हैं। यह आदत भी सफलता की राह में बहुत बड़ा रोड़ा है। अपने आगे औरों को सही न समझना गलत आदत है। दूसरों को भी अवसर दें, उनको भी सुनें, उन्हें भी स्वीकारें तो परिणाम बेहतर मिल सकता है। अपनी सीमाओं को भी जानें।
बीच में ही छोड़ देने की आदत
अगर कोई काम थोड़ा मुश्किल है तो कुछ लोगों की प्रवृत्ति असफलता की ओर धकेलती है। अगर काम मुश्किल है या समझ नहीं आ रहा तो हाथ खड़े मत करें, उस समस्या का हल ढूंढें और दूसरों से मदद लेने में संकोच न करें।
सामाजिक नेटवर्किग नहीं है फालतू चीज
बहुत से लोग सोशल नहीं होते। इसके कारण उनका चहुंमुखी विकास भी नहीं हो पाता और वे अपने आप को कई चीजों में पीछे महसूस करते हैं। आज के युग में नेटवर्किंग होना बहुत जरूरी है, ऐसा मानना है मनोवैज्ञानिकों का। बेहतर है ऐसे लोगों से संबंध बढ़ाएं जो मेहनती और अपने लक्ष्य को पूरा करने में लगे हों। ऐसे लोग आपका मनोबल बढ़ाएंगे और निराश नहीं करेंगे। किसी से भी कुछ समझने या सीखने में पीछे न रहें। -नीतू गुप्ता