अप्रयुक्त वस्तुएं हों अथवा ज्ञान उनका नष्ट हो जाना स्वाभाविक है
अपने घरों में हम अनेक प्रकार की वस्तुओं अथवा उपकरणों का प्रयोग करते हैं। वे सालों तक हमारे काम आते रहते हैं लेकिन यदि किसी कारण से किसी उपकरण का प्रयोग लंबे समय तक न किया जाए तो बिना प्रयोग किए ही उसके खराब हो जाने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
कई बार हम भूल तक जाते हैं कि ऐसा कोई उपकरण हमारे घर में रखा भी है। कुछ ऐसा ही प्राप्त अथवा संचित ज्ञान व कुशलताओं के साथ होता है अत: मात्र सीखना अथवा याद रखना पर्याप्त नहीं होता। उसे व्यवहार में लाना भी अनिवार्य है। एक बार जो चीज हमारे व्यवहार में आ जाती है उसे याद रखना अत्यंत सरल हो जाता है और याद रखने के लिए किसी बात को दोहराते रहने से अधिक अच्छी बात कोई अन्य हो ही नहीं सकती। हम जो भी उपकरण खरीदें, न केवल उन्हें ही निरंतर उपयोग में लाएं अपितु हम जो सीखें उसे भी याद रखें व व्यवहार में लाएं।
इसमें संदेह नहीं कि ऐसे अनेक व्यक्ति हैं जो जो भी अच्छा पढ़ते-लिखते अथवा चिंतन करते हैं उसे दोहराते रहते हैं और इससे वे बातें स्वाभाविक रूप से उनके आचरण में आ जाती हैं लेकिन जिन व्यक्तियों को अच्छी बातों की जानकारी ही नहीं होती या जिन्हें अच्छी बातें कंठस्थ नहीं होतीं, वे कैसे अपने आचरण अथवा व्यवहार को उत्तम बनाएं? ऐसे व्यक्तियों को भी अच्छी बातों को अपने सामने रखने का प्रयास करना चाहिए जिससे वे उनके जीवन को सकारात्मकता प्रदान कर उनके व्यक्तित्व को प्रभावशाली व उनके आचरण को सात्विक बना सकें और इसके लिए शास्त्रों की अच्छी बातों को बार-बार पढ़ने अथवा उन्हें दोहराते रहने के अतिरिक्त अन्य कोई प्रभावशाली उपचार दिखलाई नहीं पड़ता।
यदि हमारे समक्ष मिष्टान्न नहीं रखे होंगे तो हम मिष्टान्न नहीं खा सकते। भोजन के समय हमारे सामने जो भी रखा जाता है हमें उसे ही ग्रहण करना पड़ता है। जिस प्रकार से मिष्टान्न अथवा अन्य अपेक्षित उपयोगी भोजन का उपभोग करने के लिए वो हमारे समक्ष होना अनिवार्य है उसी प्रकार से जीवन की गुणवत्ता को सुधारने अथवा उसे अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमने जो भी अच्छा सीखा है अथवा जो स्वाध्याय अथवा चिंतन किया है वो भी हमारे सम्मुख ही रहना चाहिए।
यदि ऐसा होगा तो देर-सवेर उसका प्रभाव भी अवश्य ही हम पर पड़ेगा। साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग भी संभव हो सकेगा। यदि समय पर किसी चीज का उपयोग न हो पाए तो उसका होना या न होना बराबर है। यदि हमें मिठाइयां खानी हैं तो मिठाइयां लाकर रखनी होंगी और यह तभी संभव है जब हम याद रखें कि हमें मिठाइयां लानी हैं अथवा बनानी हैं। इसके लिए हमें मिठाई शब्द याद रखना होगा और तब याद रखना होगा जब तक उसकी छवि हमारे मन पर अंकित न हो जाए।
मन का यह स्वभाव है कि उसमें कुछ न कुछ नया आता रहता है जो अच्छा अथवा बुरा दोनों प्रकार का हो सकता है। बुरे अथवा अनुपयोगी से बचने के लिए भी हमें अच्छे अथवा उपयोगी को प्राथमिकता देनी पड़ेगी। अच्छी बातों को सामने रखकर उनके लिए मन की कंडीशनिंग करनी पड़ेगी। अच्छी बातें जब तक हमारे व्यवहार में न आ जाएं उन्हें याद रखना होगा।
उन्हें पहाड़ों की तरह सही-सही रटना और याद रखना होगा। यदि हम पहाड़े भूल जाएं तो गणित के आसान से आसान प्रश्न भी हल नहीं कर पाएंगे। जीवन के गणित को ठीक से हल करने के लिए, उसमें अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए हमें अच्छी बातों अथवा जीवनोपयोगी सूत्रों को भी पहाड़ों की तरह ही सदैव याद रखना होगा। शास्त्रों की उपयोगी बातों को बार-बार दोहराने से जीवन की दशा व दिशा दोनों के बदल जाने में संशय की कोई संभावना नहीं।
-सीताराम गुप्ता