हर्षोल्लास से मनाएं होली
होली आपसी प्रेम, सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक तथा उमंग, उल्लास से भरा ऐसा पर्व है जो भेद में अभेद के दर्शन कराता है। वस्तुत: इसका प्रयोजन रहा है कि सालभर तक हम अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते हुए खुलकर आपस में मिलने-जुलने का अवसर ही नहीं निकाल पाते और होली के सुअवसर पर उमंग व उत्साह के साथ मिलते, परस्पर अबीर-गुलाल उड़ाते हुए विनोदपूर्ण व्यवहार करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसका स्वरूप बदलता जा रहा है।
पहले ‘रंग बरसे….‘, ‘होली है होली, मस्तों की टोली….‘, ढोल की थाप पर गीत गाते, अबीर गुलाल मलते युवकों की टोली, कभी लोगों को सहज ही आकर्षित कर लेती थी, पर अब लोग इस टोली के नजदीक जाने से कतराने लगे हैं। आजकल ज्यादातर हुड़दंगी युवकों की टोलियां हर नुक्कड़ पर दिखाई देती हैं। नि:संदेह होली में मित्रों, रिश्तेदारों के बीच छेड़छाड़ की परंपरा तो बरसों से चली आ रही है, लेकिन होली के नाम पर नशा करके आपसी रंजिश और लड़ाई-झगड़े का माहौल तैयार करना कहां तक उचित है, जोकि आज ऐसा देखा व सुना जाता है।
पहले लोग अपने अथाह प्रेम और सद्भावनाओं का इज़हार आपस में रंग, अबीर, गुलाल आदि मल कर करते थे, पर अब कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो होली खेलने के बहाने स्त्रियों से अभद्र व्यवहार या छेड़छाड़ करते हैं। कई लोग होली के किसी पुरानी दुश्मनी का बदला लेने का अच्छा अवसर समझते हैं। परिणामस्वरूप हंसी-खुशी से भरे इस त्यौहार का माहौल आपसी मन-मुटाव, रंजिश और अदावत में बदल जाता है।
होली का यह उत्सव आत्मविस्तार का एक रूप है। आप वसंत ऋतु में प्रकृति को नए-नए रूपों में सजते-संवरते देखते हैं। वसंत के पहले पतझड़ की ऋतु होती है। पतझड़ में पत्ते झड़ जाते हैं और लगता है कि वनस्पतियां सूख गई हैं लेकिन प्रकृति मानो अपनी सारी जीवनी, हरियाली बाहर से अंदर समेट लेती है, संचित कर लेती है और ऊष्मा पाते ही नए वेग से अरूणिमा और हरीतिमा किसलयों में फूट पड़ती है।
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किरकिरा न होने दें होली का मजा:
उत्तर-भारत में होली का त्यौहार बड़ी उत्सुकता और खुशी से मनाया जाता है। होली का त्यौहार रंगों के त्यौहार के रूप में जाना जाता है जिसका इंतजार सभी बेसब्री से करते हैं। इस त्यौहार को जितने लोग मिलकर मनाएं, उतना ही आनंद महसूस होता है।
कभी-कभी पहले मन नहीं करता कि रंगों से स्वयं गीला हुआ जाए। बस देखकर मजा लेने की इच्छा होती है। पर जब विवश होकर खेलना पड़े तो मन और खेलने को करता है। होली का त्यौहार कुछ संभल कर और समझदारी से खेला जाए तो मजा बढ़ जाता है। यदि इसे गंदे रूप में, जैसे कीचड़, ग्रीस, गुब्बारे आदि से खेलना तो त्यौहार का मजा किरकिरा करना है। आइए देखें, कि साल में एक बार आने वाला त्यौहार जिसका इंतजार बच्चों, किशोरों और बड़ों को होता है, उसे और रंगीन कैसे बनाया जाये।
- रंग व गुलाल बाजार से पहले ही मंगा कर रख लेना चाहिए ताकि कोई आपके घर होली-मिलन के लिए आए, तो आप बिना रंग के शर्मिदा महसूस न करें। गुलाल प्रात: ही खोलकर प्लेटों में डालकर मुख्य द्वार के पास ही रखें, ताकि इधर-उधर रंग ढूंढना न पड़Þे।
- बच्चों को गुब्बारों के साथ होली खेलने के लिए निरुत्साहित करें। गुब्बारों से खेलने पर दूसरों को चोट लग सकती है, जिससे त्यौहार का मजा किरकिरा भी हो सकता है।
- बच्चों को गुलाल के रंगों के अलग से पैकेट दे दें, ताकि वे अपनी मस्ती पूरी ले सकें और बार-बार आपको परेशान न करें।
- बच्चों को गुब्बारों के स्थान पर पिचकारी से खेलने के लिए प्रेरित करें। उसके लिए एक रात पहले टेसू के फूल बड़ी बाल्टी या टब में भिगो दें। इन फूलों से बना (प्राकृतिक रंग) पीला रंग स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
- होली से एक दिन पूर्व ही कपड़ों का चयन कर निकाल कर रख लें ताकि सुबह उठते ही या रात्रि में पहले से उन कपड़ों को पहन लिया जा सके। वस्त्र ऐसे हों, जो अधिक से अधिक त्वचा को ढक कर रखें। थोड़े मोटे वस्त्र ही पहनें। पारदर्शी वस्त्रों को न पहनें। बच्चों हेतु दो-तीन जोड़ी वस्त्र निकालें।
- जो वस्त्र होली खेलने के उपरान्त पहनने हों, उन्हें भी पहले निकाल लें ताकि गीले रंगों वाले वस्त्रों और हाथों से अलमारी को न खोलना पड़े। साफ-सुथरे कपड़े भी उन हाथों से खराब हो सकते हैं।
- अपनी त्वचा को रंगों से बचा कर रखने हेतु सारी त्वचा और बालों पर तेल लगा लें। बच्चों को भी तेल अच्छी तरह से चुपड़ दें।
- होली खुले आंगन में खेलें तो अधिक मजÞा आएगा। बड़े नगरों में आंगन न के बराबर होते हैं, ऐसे में छत पर भी होली खेली जा सकती है, पर ध्यान रखें कि छत के चारों ओर ऊंची दीवार (जंगला) होनी चाहिए।
- घर पर आने वाले अतिथियों हेतु मीठा, नमकीन, गुजिया का प्रबन्ध पहले ही कर लें। चाय हेतु पर्याप्त दूध, चीनी, चाय-पत्ती का भी प्रबंध कर लें। आप पेपर-प्लेट और फोम के डिस्पोजेबल गिलास रखें, ताकि बर्तनों की सफाई के लिए परेशानी न उठानी पड़े। बड़े गार्बेज बैग रखें ताकि प्रयोग में लाई हुई प्लेटें और गिलास इधर-उधर न फैलें।
होली खेलें पर सावधानी से:
होली हर्षोल्लास व भाईचारे का त्यौहार है। लोग एक-दूसरे पर रंग डालकर व चेहरे पर गुलाल लगाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं तथा एक-दूसरे से गले मिलते हैं। यह हर्षोल्लास का त्यौहार कहीं गम का त्यौहार न बन जाए, इसका सदैव ध्यान रखना चाहिए।
एक-दूसरे पर रंग डालते समय तथा चेहरे पर गुलाल लगाते समय सावधान रहना चाहिए कि ये आंखों में न चला जाए। अच्छी गुणवत्ता वाले रंग व गुलाल का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि त्वचा को किसी प्रकार का नुक्सान न पहुंचे। नकली व घटिया रंग और अबीर आंखों व त्वचा, दोनों के लिए हानिकारक होते हैं। अबरक मिले गुलाल का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योेंकि ऐसे गुलाल को चेहरे व माथे पर लगाने से त्वचा छिल सकती है।
चूंकि होली रंगों व गुलाल से खेली जाती है, इसलिए प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे टेसू के फूलों का तरल रंग तथा अरारोट का गुलाल। गुलाल में थोड़ा इत्र डालकर इसे और मनमोहक व बढ़िया बनाया जा सकता है। इनके संग होली खेलने से किसी प्रकार की हानि नहीं होगी।
पक्के रंग, पेंट व घटिया गुलाल त्वचा के संपर्क में आते ही प्रतिक्रिया करते हैं और व्यक्ति एलर्जी का शिकार हो जाता है।
इन रंगों से सराबोर त्वचा को साफ करना भी काफी मुश्किल होता है क्योंकि ये रंग रोमकूपों द्वारा त्वचा में प्रवेश कर जाते हैं जिसकी वजह से रगड़ते-रगड़ते भले ही त्वचा छिल जाए लेकिन होली के दिन ये पक्के रंग त्वचा से नहीं उतरते।
होली खेलने के बाद एलर्जी के कारण त्वचा पर लाल-नीले धब्बे उभर आते हैंं। ऐसा होने पर फौरन किसी त्वचा रोग विशेषज्ञ से मिलकर परामर्श लेना चाहिए तथा उसके निर्देशानुसार दवाईयां लेनी चाहिएं। इससे एलर्जी से जल्दी छुटकारा मिल जाएगा।
कुछ यूं रखें बचाव:-
- पूरी बाजू की कमीज, फुलपैंट, पैरों में मोजे तथा सर पर टोपी लगाकर ही होली खेलें। होली खेलने से पहले सिर तथा शरीर पर तेल या वैसलीन लगा लेना चाहिए ताकि रोमकूपों द्वारा रंग व गुलाल त्वचा में न प्रवेश कर सकें।
- होली खेलने के बाद रंग से रंगे कपड़ों को जल्दी उतार दें क्योंकि रंगे कपड़े जितने समय तक त्वचा के संपर्क में रहेंगे, त्वचा को नुक्सान पहुंचाएंगे।
- अरारोट से बने गुलाल व टेसू के फूलों से बने प्राकृतिक रंगों से ही होली खेलें। ये रंग व गुलाल बड़े व बच्चे सभी के लिए सुरक्षित होते हैं।
- यदि होली खेलते समय रंग या गुलाल लगाते ही जलन महसूस हो तो तुरंत किसी मुलायम कपड़े से त्वचा साफ कर के धो डालें।
- यदि होली खेलते समय शरीर पर रैश उभर आएं या खुजली होने लगे तो त्वचा रोग विशेषज्ञ से मिलकर निदान करा लें।
- होली के नकली, घटिया रंगों व गुलाल से सबसे ज्यादा आंखों को नुक्सान पहुंचने की आशंका होती है, इसलिए घटिया रंगों, छीना-झपटी तथा रंग भरे गुब्बारे आदि से बचना चाहिए।