बाल कथा : बर्गर Children’s Story
छुट्टी वाले दिन अलार्म का शोर कितना सुहाना लगता है। यह कोई दस साल के हर्ष से पूछे। काश! ऐसा बाल दिवस रोज आए, स्कूल की छुट्टी हो और मम्मी-पापा ने बाज़ार घुमाने का वादा किया हो। वाह! हुई न मजेदार बात। इत्तेफाक से आज आनंद की भी दफ्तर से छुट्टी थी, इसलिए अधिक देर का सो रहा था। उधर रश्मि का भी मन अति आनंदित था, क्योंकि न बेटे का स्कूल न पति का आॅफिस। उस पर घूमने जाने की खुशी अलग।
‘पापा हम हमेशा आपकी वजह से लेट होते हैं। अभी तक आप नहाए भी नहीं।’ ‘अभी नहाने ही जा रहा हूँ।’ ‘तो जाइये न।’
‘उफ् ये लड़का! आज ज़रा तसल्ली से अखबार तो पढ़ने दे बेटा।’ ‘देखा! अब अखबार पढ़ने लगे। पापा ऐसे तो हम शाम तक भी नहीं जा पाएंगे। आप जानते हैं मुझे नई बैट्री वाली गाड़ी खरीदनी है, जैसी गगन के पास है, और सबसे जरूरी – बर्गर!’ ‘अच्छा बाबा, जा रहा हूँ। तुम जल्दी से तैयार हो जाओ।’ ‘मम्मी, आप भी अपना फोन रख के मुझे जल्दी से तैयार कर दीजिए।’
मम्मी – ‘जरा एक मिनट बेटे, ये नया व्हाट्सएप्प आया है बाल दिवस पर। जरा अपने गु्रप में फारवर्ड कर दूँ।’ सभी तैयार होकर बाज़ार पहुंच चुके थे। वाकई आज बाज़ार की रौनक देखने लायक थी। बच्चों के शोरूम में तरह-तरह की सेल लगी हुई थी। एक से बढ़कर एक कपडेÞ, जूते, खिलौने और भी बहुत कुछ। हर्ष ने मम्मी-पापा के साथ खूब खरीदारी की। ‘पापा मैं थक गया हूँ और मुझे जोरों की भूख लगी है।’ रश्मि ने भी सुर में सुर मिलाते हुए कहा – ‘हाँ, मुझे भी। चलिए किसी अच्छे रेस्टोरेंट में बैठकर खाना खाते हैं।’
सबने भरपेट खाना खाकर एक बर्गर पैक भी करवा लिया। रेस्टोरेंट से बाहर निकलते ही आनंद को याद आया कि वह रेस्टोरेंट में अपनी बाकी के पैसे लेना भूल गया है, सो वह भागकर अंदर गया। रश्मि को वहीं एक दुकान में चमकती साड़ी ने आकर्षित किया और वह बोली – ‘हर्ष बेटे, यहीं रहना। मैं वहां दुकान में हूँ, अभी पापा आ रहे हैं।’ हाँ मम्मी बेफिक्र रहिए। मैं कोई छोटा बच्चा नहीं रहा। आप जाओ।
बच्चे के आत्म विश्वास भरे शब्द सुनके रश्मि को बड़ी तसल्ली हुई और वह पड़ोस की दुकान में घुस गई। तभी हर्ष के सामने एक उसका हमउम्र बच्चा खड़ा उसको देख रहा था। उसकी गड्ढों में धंसी खाली आँखें, बदन पर घिसे-पिटे कपड़ों के चीथड़े, पतले-पतले हाथ पैर देख मालूम होता था उसने कई दिनों से ठीक से खाना नहीं खाया है। ऐसे बच्चे अक्सर हमें सड़कों पर, फुटपाथों पर देखने को मिल ही जाते हैं।
पहले तो वह बच्चा कुछ दूर था लेकिन देखते-देखते हर्ष के नजदीक आ पहुंचा और बोला – ‘बड़ी भूख लगी है भैया। बड़ी भूख लगी है।’ इस वक्त हर्ष का दिल बहुत मुश्किल में था। भूख के अहसास से कोई अपरिचित तो होता नहीं फिर चाहे वह छोटा बच्चा ही क्यों न हो। अगर मम्मी पापा के साथ होता तो वे लोग इस बच्चे को दुत्कार कर हर्ष की इस कशमकश को वहीं खत्म कर देते, लेकिन अब क्या किया जाए? दुत्कार या करुणा?
‘भैया खाना दे दो न भैया।’ बच्चे ने दोबारा हाथ फैला कर मांग की। इतना सुनते ही हर्ष ने यकायक अपना अजीज बर्गर का पैकेट उस बच्चे को दे दिया। पैकेट खोलने का भी सब्र नहीं छोड़ा था उस बच्चे की भूख ने। उसने पैकेट को बीच में से फाड़ा और गपगप करके बर्गर खाने लगा। हर्ष को ऐसी खुशी आज तक न हुई थी जो इस वक्त हो रही थी। वह चुपचाप खड़ा उस बच्चे को निहारता रहा। आज उसने पहली बार किसी भूखे को खाना खिलाया था।
तभी आनंद ने चिल्लाकर कहा, ‘अरे, ये क्या कर रहा है! मेरे बच्चे का खाना छीनता है?’ ‘नहीं-नहीं पापा! मैंने खुद इसको अपना बर्गर दिया है। खाने दीजिए न। इसको भी तो भूख लगी थी। पापा बाल दिवस का सही अर्थ मुझे आज समझ में आया है। यह केवल व्हाट्सप्प पर आए मैसेज या अखबार में आने वाले सेल धमाकों का त्यौहार नहीं। बाल दिवस तो बचपन का जश्न मनाने का नाम है। आज का बाल दिवस मुझे हमेशा याद रहेगा।’ -शिवांगी शर्मा
































































