देश की पहली महिला कॉम्बैट एविएटर -अभिलाषा बराक
‘बोये जाते हैं बेटे पर उग आती है बेटियां, खाद पानी बेटों को पर लहराती है बेटियां, स्कूल जाते हैं बेटे पर पढ़ जाती है बेटियां, मेहनत करते हैं बेटे पर अव्वल आती है बेटियां।’
कविता की ये पंक्तियां हरियाणा की छोरी अभिलाषा बराक पर सटीक बैठती हैं। कैप्टन अभिलाषा बराक देश की पहली महिला ‘कॉन्बेट एविएटर’ बनीं हैं। अभिलाषा की इस उपलब्धि को भारतीय सेना ने ‘गोल्डन लेटर डे’ माना है।
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कैप्टन अभिलाषा बराक का इस मुकाम तक पहुंचने का सफर किसी फिल्म से कम नहीं है।
खून में है देश सेवा:
देश की पहली महिला कॉम्बैट एविएटर बनने वाली 26 साल की अभिलाषा का संबंध रोहतक के बालंद गांव से है। परिवार अब हरियाणा के पंचकूला में रहता है। पिता ओम सिंह रिटायर्ड कर्नल हैं और भाई भी आर्मी अफसर है। सो देश सेवा का जज्बा उन्हें विरासत में मिला है।
अमेरिका की नौकरी छोड़ी:
कैप्टन अभिलाषा की पढ़ाई हिमाचल के मशहूर द लॉरेंस स्कूल, सनावर से हुई है। साल 2016 में दिल्ली की टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक किया। इसके बाद उन्हें अमेरिका में एक मोटी तनख्वाह वाली नौकरी भी मिली लेकिन करीब एक साल बाद ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और इसके पीछे भी कहीं ना कहीं देश सेवा का जज्बा था।
भाई की पासिंग आउट परेड देख पक्का किया इरादा:
अभिलाषा के भाई मेजर अविनाश भी नॉर्थ जोन में तैनात हैं। अविनाश ने 12वीं के बाद एनडीए के जरिये सेना को चुना। साल 2013 में आईएमए में अविनाश की पासिंग आउट परेड हुई। पिता रिटायर्ड कर्नल ओम सिंह बताते हैं कि अभिलाषा ने भी अपने भाई की पासिंग आउट परेड देखी। जिसके बाद उसने भी देश सेवा से जुड़ने का पक्का इरादा कर लिया।
हाइट कम होने के कारण
ज्वाइन नहीं कर सकी एयरफोर्स:
कर्नल ओम सिंह ने बताया कि इंडिया आने के बाद अभिलाषा एयरफोर्स में जाना चाहती थी। वो फाइटर पायलट बनना चाहती थी। इसके लिए उसने दो-दो बार एग्जाम भी पास किया लेकिन हाइट की वजह से उसका सेलेक्शन एयरफोर्स में नहीं हो पाया। अभिलाषा के पिता ने बताया कि एयरफोर्स फाइटर पायलट बनने के लिए 165 सेंटीमीटर लंबाई होनी चाहिए, लेकिन अभिलाषा की हाइट 163.5 सेंटीमीटर थी। मात्र डेढ सेंटीमीटर की लंबाई की वजह से वह एयरफोर्स में नहीं जा पाई।
नाकामी मिली लेकिन हार नहीं मानी:
जूड़ो, हॉर्स राइडिंग से लेकर हर फील्ड में अव्वल रहने के बावजूद वो कभी अपनी हाइट की वजह से अपना सपना पूरा नहीं कर पाई। तो पहले एयरफोर्स में महिलाओं के लिए सिर्फ फील्ड वर्क ही होता था। एयरफोर्स और आर्मी में कुल 4 बार पास होने के बावजूद कभी अपने कद तो कभी वेकेंसी कम होने के कारण वो नाकाम होती रही लेकिन अभिलाषा ने कभी हार नहीं मानी।
हवा में उड़ने की अभिलाषा:
अमेरिका से नौकरी छोड़कर अपने वतन लौटी अभिलाषा साल 2018 में आॅफिसर्स ट्रेनिंग अकेडमी के जरिये भारतीय सेना में शामिल हुईं। अभिलाषा ने स्वेच्छा से लड़ाकू विमानवाहक के रूप में ट्रेनिंग ली। यहां उन्होंने आर्मी एविएशन कॉर्प्स को चुना, अभिलाषा को भरोसा था कि एक ना एक दिन सेना में महिलाओं का हवा में उड़ने का ख्वाब जरूर पूरा होगा। क्योंकि पहले भारतीय सेना में महिलाएं सिर्फ ग्राउंड ड्यूटी का हिस्सा थीं। उन्होंने कई प्रोफेशनल मिलिट्री कोर्स किए और एक पायलट बनने के हर एग्जाम को पास करती रहीं। अभिलाषा का सपना था कि वो एक पायलट बनकर देश सेवा करे लेकिन हाइट कम होने के कारण एयरफोर्स में सपना पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने सेना की राह चुनी और आज उनका सपना पूरा हो गया।
कॉम्बैट एविएटर बनने के लिए ट्रेनिंग:
नासिक स्थित कॉम्बेट आर्मी एविएशन ट्रेनिंग स्कूल में उन्होंने बाकी पायलट साथियों के साथ 6 महीने की कड़ी ट्रेनिंग ली। अभिलाषा ने कॉम्बैट आर्मी एविएशन के पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा किया। एक समारोह के दौरान अभिलाषा समेत कुल 37 पायलटों को विंग्स प्रदान किए गए।
इकलौती कॉम्बैट एविएटर:
अभिलाषा के पिता बताते हैं कि एविएशन ट्रेनिंग स्कूल में 15 लड़कियों ने अप्लाई किया था। जिनमें से सिर्फ 2 का सेलेक्शन हुआ और बाकी मेडिकल या अन्य टेस्ट में पास नहीं हो पाईं। फ्लाइंग के टेक्निकल टेस्ट पास करने वाली अभिलाषा इकलौती लेडी आॅफिसर थी। बैच में कुल 40 अफसर थे जिनमें से 37 अफसरों को विंग्स दिए गए। इन 37 पायलट में से 36 पुरुष पायलट थे और अभिलाषा इस बुलंदी तक पहुंचने वाली देश की पहली बेटी बनी।