बच्चों में पैदा करें जिम्मेदारी का अहसास
अक्सर आजकल बच्चों के मुंह से यह सुनने को मिलता है कि ‘आपने मुझे कभी कुछ नहीं दिया। बाकी माता-पिता बहुत कुछ देते हैं अपने बच्चों को।’ ऐसा बच्चों से तब सुनने को मिलता है जब माता-पिता बच्चों की हर मांग को बिना किसी झिझक के पूरी करते हैं।
वैसे तो आज के व्यस्त समय में माता-पिता का पूरा ध्यान बच्चों पर ही केन्द्रित रहता है। उनसे बच्चे को पूरी सुरक्षा और प्यार मिलता रहता है, पर कभी किसी कारणवश माता-पिता बच्चों की कोई ख्वाहिश पूरी न कर सकें तो बच्चे सब कुछ भूल कर उसी बात को याद रख निराश हो जाते हैं।
आज के समय में बच्चों की खुशी और उनके आराम के लिए माता-पिता सब कुछ करने को तैयार रहते हैं चाहे स्वयं कितनी मुश्किलें उठानी पडेंÞ। लेकिन बच्चे उन मुश्किलों को नहीं समझते। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को इस बात का अहसास शुरू से करवाएं कि हर चीज आसानी से नहीं मिलती। जो मिलता है उसमें प्रसन्न रहना सीखें। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को हर प्राप्त की हुई चीज की कद्र करना सिखाएं।
बच्चों को भरपूर प्यार दें। प्यार की भरपाई कभी बच्चों को चीजें देकर न करें। खिलौने या खाने का सामान प्यार का विकल्प न बनाएं। बच्चों को प्यार से गले लगाएं, उन्हें थपथपाएं। यह महसूस करवाएं कि आप उनके साथ हैं। बच्चों की हर मांग को एकदम पूरा न करें। बहुत आवश्यक चीजें तो मांग करने पर दिलवा दें पर जिन चीजों की एकदम आवश्यकता न हो, उन्हें कुछ समय पश्चात दिलवाएं, ताकि आपकी लाई हुई वस्तुओं की कद्र कर सकें। यदि हर मांग उसी समय पूरी करेंगे तो बच्चों में कद्र का अहसास नहीं हो पाएगा।
कोई मनपसंद खिलौना टूट जाता है या गुम हो जाता है तो उसके बदले में दोबारा चीज लाने में शीघ्रता न बरतें। टूटने पर उसके साथ मिलकर जोड़ने का प्रयास करें। अगर न जुड़ सकें, तो नई चीजÞ कुछ समय बाद दिलवाएं, ताकि बच्चा अगली बार अपनी प्रिय चीजÞ के प्रति अधिक सतर्क रहे।
बच्चों के बदतमीजी करने पर या कहना न मानने पर उसे डांटें या मारें नहीं बल्कि उससे बात न करें या उसका प्रिय टी. वी. प्रोग्राम न देखने दें ताकि वंह आगे के लिए आपसे वैसा बर्ताव न दोहराए। माता-पिता को कुछ निर्णयों पर दृढ़ रहना चाहिए। ऐसे में माता-पिता को मिलकर फैसला करना चाहिए कि क्या उचित है, क्या अनुचित। यदि बच्चे निर्णय मानने में आनाकानी करें या चिल्लाएं तो आप शांत हो जाएं। वे स्वयं समझ जाएंगे कि चिल्लाने का कोई लाभ नहीं है।
कई बार बच्चे खाने की मेजÞ पर घर के बने खाने को पसन्द नहीं करते। ऐसे में बच्चों को अहसास करवाएं कि माता-पिता यदि दोनों काम पर जाते हैं या मां घर रहकर सारा घर संभालती है तो मां कैसे परिवार के हर सदस्य की पसन्द को ध्यान में रख खाना बना सकती हैं। आखिर वह भी एक इन्सान है। उसके पास पूरा घर संभालने का बहुत बड़ा काम है। ऐसे में बच्चों को छोटे-छोटे कामों में मदद करना सिखाएं ताकि वे महसूस कर सकें कि हर काम करना बहुत आसान नहीं है।
बच्चों को जो मिल रहा है, उसमें सन्तोष करना सिखाएं और जो नहीं मिल रहा है, उसकी व्यर्थ चर्चा पर बहस न करें। बच्चों को यह भी अहसास करवाए कि ‘वंड खांदा, खंड खांदा‘ या ‘शेयरिंग इजÞ केयरिंग।’ जो भी चीज या खिलौना उनके पास है, अपने दूसरे भाई-बहनों और साथियों के साथ मिलकर उसका आनन्द उठाएं न कि अकेले। न तो अकेले खेलने में मजा आता है और न ही अकेले खाने में। मिलकर खाने और खेलने का मजा कुछ और ही है।
-नीतू गुप्ता