Why do children move shy and move away form relatives? Sachi Shiksha

यह एक चिंता का विषय है कि अब रिश्तेदार बच्चों को खटकते हैं और उनकी सोच भी बहुत सीमित है रिश्तेदारों को­  लेकर। हमें इस समस्या को सीरियस होकर सोचना चाहिए और बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार कर पूछना चाहिए
छोटे परिवार होने पर बच्चों को ज्यादा रिश्तेदारों से मिलना पसंद होना चाहिए क्योंकि वो समय उनका मौज मस्ती का होता है, न पढ़ाई, न डांटडपट पर फिर भी आज के समय में बच्चे रिश्तेदारों से मिलना पसंद नहीं करते। बच्चों में अब उनसे मिलने की कोई उमंग नहीं रहती। अगर मिलना भी पड़े तो बस बनावटी मुस्कान ही चेहरों पर रहती है, दिल से खुशी नहीं होती।

यह एक चिंता का विषय है कि अब रिश्तेदार बच्चों को खटकते हैं और उनकी सोच भी बहुत सीमित है रिश्तेदारों को लेकर। हमें इस समस्या को सीरियस होकर सोचना चाहिए और बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार कर पूछना चाहिए ताकि रिश्तों में दूरियां बढ़ने से पहले संभाल लें।

वैसे तो सभी बच्चों का स्वभाव अलग होता है। कुछ बच्चे शर्मीले स्वभाव के होते हैं, कुछ चुलबुले, तो कुछ जल्दी हिलमिल जाते हैं और कुछ अपने में खोए रहते हैं। अपने बच्चे के स्वभाव को पहचानें और उसी रूप से उसे डील करें। हाजिर जवाब बच्चे अपनी दुनिया में रहते हैं। उन्हें और लोगों से कुछ लेना देना नहीं होता। बच्चों को समझाया जा सकता है। अपनी दुनिया में मस्त रहना भी ठीक है पर घर पर कोई भी आए तो उससे मिलना, उनसे बात करना भी जरूरी है।

जो बच्चे कम बोलने वाले होते हैं वह अपने माता-पिता, दादा-दादी,नाना-नानी और बहन भाई के साथ भी कम बोलते हैं, फिर रिश्तेदारों की तो बात ही अलग है। माता-पिता को चाहिए बच्चों से किसी न किसी तरीके से बात करें और उन्हें पूरा अवसर दें ताकि वह अपनी बात रख सकें और उनकी बात पर पूरा ध्यान भी दें ताकि उन्हें लगे कि आप उनकी केयर करते हैं।

कुछ जिद्दी बच्चे बस अपनी बात मनवाते हैं या अपनी जरूरत पूरी करवाने से मतलब रखते हैं। उन्हें भी व्यवहार स्वरूप् माता-पिता को समझाना चाहिए कि जिद् पूरी करवाना अलग है पर प्यारपूर्वक व्यवहार अलग। इस तरह उन्हें रिश्तेदारों के समारोहों में ले जाएं और घर पर भी आए संबंधियों से उसकी अच्छी बातों की चर्चा करें।

ज्यादा पढ़ने लिखने वाले बच्चों को तो रिश्तेदार परेशान करने वाले लगते हैं क्योंकि वह अपनी परीक्षा, प्रोजेक्टस कंपीटिशन में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें तो रिश्तेदारों से मिलना, उनके साथ समय बिताना समय की बर्बादी के अतिरिक्त कुछ नहीं लगता। माता-पिता को समझाना पड़ता है कि पढ़ाई अपनी जगह है पर थोड़ी देर के लिए उनसे मिलना उन्हें दिमागी आराम देगा। थोड़ी ही देर बाद माता पिता उसे होमवर्क के बहाने भेज दें, ताकि बच्चे को भी ज्यादा विध्नता न हो और संबंधियों से मेलजोल भी हो जाता है।

माता-पिता को चाहिए बच्चों पर ज्यादा दबाव न डालें। उन्हें रिश्तों की अहमियत समझाएं। बच्चों को रिश्तों के महत्त्व को समझाएं। उदाहरण दें, जैसे- उन्हें दोस्त अच्छे लगते हैं, वैसे ही वह उनके माता-पिता के प्रिय हैं। थोड़ा समय अपने माता-पिता की खुशी के लिए उनके साथ बिताएं। यह भी समझाएं अगर आप उनसे नहीं मिलोगे तो कभी हमें उनके घर जाना पड़ेगा तो वे भी हमसे नहीं मिलेंगे। बच्चे संवेदनशील होते हैं। अगर प्यार से समझाया जाए तो वह बेहतर समझते हैं। बच्चों को रिश्तेदारों के घर ले जाया करें ताकि वह भी उनसे घुलमिल सकें।

रिश्तेदारों के सामने बच्चों की तुलना न करें। न ही उनकी अधिक तारीफ करें, न उन्हें नीचा दिखाएं। नार्मल व्यवहार रखें। माता-पिता का व्यवहार रिश्तेदारों के सामने और बाद में एक समान होना चाहिए। उनके पीछे उनके व्यवहार के बारे में बच्चों के समाने कुछ न कहें, न ही उनकी किसी कमी को बच्चों के सामने डिस्कस करें। इससे बच्चे असमंजस में पड़ जाते हैं और उनका व्यवहार भी बदल जाता है।

माता-पिता को चाहिए बच्चों को निश्चित समय के लिए वीडियोगेम्स, मोबाइल फोन पर खेलने को दें। अगर पहले से रिश्तेदारों का आना पता है तो समय थोड़ा आगे-पीछे कर लें। अचानक रिश्तेदार आ रहे हो तो उस दिन बच्चों को एडजस्ट करना सिखाएं। सब मिलकर इस समस्या का समाधान ढंूढेंगे तो समाधान मिल जाएगा।

– नीतू गुप्ता

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