सत्संग में होता है पाप-कर्मों का खात्मा : रूहानी सत्संग (23 अक्तूबर 2016) शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा, सरसा
मालिक की साजी-नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ! सत्संग में जब जीव चलकर आता है, जन्मों-जन्मों के पाप-कर्म नाम में बैठते ही कटने शुरू हो जाते हैं।
इस जन्म में किए गए पाप-कर्म संत, पीर-फकीर प्रार्थना करके कटवा देते हैं और जन्मों-जन्मों के पाप-कर्मों को काटने के लिए राम का नाम उसे सौंप देते हैं कि भाई, सुमिरन करता जा, तेरे पाप-कर्म कटते जाएंगे और मालिक की दया-मेहर के लायक तू बनता जाएगा। फिर ज्यों-ज्यों लोग सुमिरन, भक्ति-इबादत करते हैं, त्यों-त्यों मालिक की दया-मेहर के लायक वे बनते चले जाते हैं।
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भक्ति-इबादत जरूर करो
इन्सान के सामने कितने प्रकार का भोजन पड़ा हो, जब तक खाते नहीं स्वाद नहीं आता और ताकत भी नहीं आती। उसी तरह राम का नाम, अल्लाह, वाहेगुुरु, मालिक का नाम है, जब तक इंसान जाप नहीं करता, तब तक न तो उसकी शक्ति मिलती है, न ही पाप-कर्म कटते हैं और न ही अलौकिक नजारे मिलते हैं। इसलिए भाई, सुमिरन, भक्ति-इबादत करो। इससे आपके पाप कर्म कटेंगे, अंदर के नजारे मिलेंगे, आप रूहानी तंदुरुस्ती-ताजगी हासिल करेंगे और खुशियों से मालामाल हो जाएंगे। जो लोग सुमिरन, भक्ति-इबादत में, चाहे थोड़ा समय ही क्यों न लगाते हों, उन्हें फल लाजमी मिलता है। कोई भी दिन ऐसा न जाए, जिस दिन उस मालिक की भक्ति न की हो। इससे आने वाला समय खुशियों का कारण बन जाएगा, अगर आप मालिक के नाम की भक्ति करेंगे।
बच्चों के प्रति कर्त्तव्य-निर्वाह करो, उनमें लंपट मत हो जाओ
इन्सान हर समय खोया रहता है बाल-बच्चे, परिवार में, मोह-ममता में, लोभ-लालच में। खोया रहता है काम-वासना, अहंकार में! पर सच्चाई यही है कि सिवाय दु:खों के, दर्द के, कोई भाग्यशाली ही होगा जो बच पाता है, वरना इनसे दर्द ही मिलता है। उदाहरण के तौर पर आप बच्चों को पालते हैं, बड़ा करते हैं। इंडियन कल्चर ये है कि बड़ा लाड लडाया जाता है! आप न खाकर बच्चों को खिलाया जाता है!
हम आजकल की बात नहीं करते, आजकल तो शायद ऐसा न हो, लेकिन हमारा कल्चर ऐसा है। …और बच्चों को पढ़ाना, उनके लिए सपने संजोना हर मां-बाप का एक कर्तव्य हो जाता है और मां-बाप ऐसा करते हैं। बच्चे बड़े होते हैं, मां-बाप को और खुशी होती है कि अब ये मेरा साथ देंगे, कंधे से कंधा मिलाकर हमारे साथ चलेंगे। पर बच्चे बड़े होते हैं, उनकी सोहबत गलत हो जाती है, तो कंधे से कंधा मिलाकर साथ देने की बजाए, वो आपका कंधा झुका देते हैं! फिर जो दर्द होता है कि वो मां-बाप किसी से शेयर नहीं कर सकते, क्योंकि अपने ही बच्चे हैं, और न ही सहा जाता है। लेकिन बच्चों पर कोई असर नहीं होता।
वही बच्चा अपना होता है, जो रूहानियत में साथ दे
किसी संत, महापुरुष के समय की बात है। एक बार उनके पास एक सज्जन गए और कहने लगे कि जी, भक्त कैसा होता है? मैंने तपस्या की है, त्याग किया है, पर मुझे भगवान की प्राप्ति नहीं हुई! अजी भगवान भी छोड़िए, मुझे तो आपके अलावा कोई भक्त ही नहीं मिला! तो संतों ने कहा कि फलां जगह एक दुकानदार है, वो तगड़ा भक्त है। तू उसके पास जा, वो तुझे ज्ञान देंगे! वो तुझे बताएंगे कि भक्ति क्या होती है।
…अब एक त्यागी, ब्रह्मचारी कहलाने वाला और उसको भेज दिया एक गृहस्थी के यहां! तो उसको वैसे ही आग लग गई कि मैं बड़ा कि वो बड़ा! पर संतों ने कहा है, तो इसका मतलब कोई बात है। लेकिन अंदर गुस्सा है कि मैं तो त्यागी, तपस्वी हूं और मुझे कहा जा रहा है कि गृहस्थी के पास जाओ, अगर भक्ति सीखनी है! तो वो सज्जन वहां गया।
उसने सोचा कि पहले उसका पता करवाता हूं! तो गांव वालों से पूछकर उसका पूरा बायोडाटा ले लिया। फिर उसके पास गया और कहने लगा कि जी, मुझे संतों ने भेजा है, आप बहुत अच्छे भक्त हैं! तो दुकानदार हाथ जोड़कर बोला कि कौन-सा भक्त! उनकी कृपा है तो भक्त हूं! मेरे अंदर कुछ नहीं कि मैं भक्त कहलाऊं! लेकिन मुझ पर उनकी रहमत इतनी है कि मैं भक्त बन गया। यह सुनकर उसे कुछ तो लगा कि यार, इसमें अहंकार तो है ही नहीं! और मैं फटने वाला हूं अहंकार से! फिर पूछा कि आपके बच्चे कितने हैं? तो उसने जवाब दिया कि मेरा एक बच्चा है। ब्रह्मचारी तो गुस्सा हो गया! बोला कि आप झूठ बोल रहे हो! मैंने गांव वालों से अभी पता किया है कि आपके पास तो चार बच्चे हैं! साहुकार हंसने लगा और बोला कि इसीलिए तो आप भक्त नहीं बन पाए! ब्रह्मचारी को और भी गुस्सा आ गया, बोला कि झूठ तुम बोलते हो और मुझे कह रहे हो कि भक्त नहीं बन पाए!
उसने ब्रह्मचारी को बैठाया और बोला कि बच्चे तो चार हैं, लेकिन मैं उन्हें बच्चे नहीं मानता! दो मेरे बच्चे हैं, वो ठग्गी मारते हैं, बिजनेस करते हैं, बेईमानी करते हैं, लोगों का खून चूसते हैं। मैं सिखाता हूं कि मेरे गुरु जी ने सिखाया है कि हक-हलाल की करके खाओ! पर वो बेइमानी, भ्रष्टाचार करते हैं! राम-नाम की परवाह नहीं करते। तीसरा, सारी बुरी आदते हैं उसमें! नशा वो करता है, वेश्यावृत्ति वो करता है। ब्रह्मचारी बोला कि वो जिसको आप अपना बेटा बताते हो, वो कैसा है! उसने कहा कि वो तो मेरे वाली दुकान पर बैठता है, हक-हलाल की खाता है। सुबह मैं सुमिरन पर बैठता हूं, मेरे से पहले उठकर मुझे भी उठाता है और खुद भी सुमिरन पर बैठता है।
कमाई का दसवां, पद्रहवां हिस्सा निकालता है और उसे दीन-दुखियों की मदद में जाकर लगा आता है। जितने गुुरु जी ने बताए वचन हैं, सौ प्रसेंट अमल करता है, तो हे ब्रह्मचारी जी! मेरी निगाह में तो मेरा यही बेटा है, जो रूहानियत में साथ देता है! जो मेरा नाम रोशन कर रहा है! जो मेरे साथ चल रहा है! जन्म देना पड़ता है, क्योंकि भगवान का हुक्म होता है। लोग एक-एक बच्चे के लिए तड़पते रहते हैं। लेकिन भगवान का हुक्म होता है, बच्चे तो होते हैं, लेकिन सारे बच्चे खुद के नहीं होते। बस वही बच्चा अपना होता है, जो रूहानियत में साथ देता है। यही सौ प्रसेंट सच था, सच है और सच रहेगा।
यही हकीकत है आज के दौर की। आपका जो साथ दे मां-बाप, जो आपका साथ दे बेटा-बेटी, वही आपके अपने हैं, बाकि तो बस गुजरे हुए सपने हैं। पता नहीं कब वो सपना लिया और कब वो गुजर गया।