गुस्सा कभी भी किसी को भी किसी उम्र में आना आम बात है। बच्चे हों, बड़े या बूढ़े, गुस्सा हर आयु में नुकसान पहुंचाता है। अगर बच्चों को बचपन से उनके गुस्से पर काबू रखना सिखाया जाए तो बड़े होकर वे गुस्सैल स्वभाव से दूर रह पाएंगे।
बच्चे के गुस्से का कारण जानें
बच्चे के गुस्से का कारण माता-पिता के साथ टीचर को भी जानना चाहिए। क्लास में जो बच्चे गुस्से वाले होते हैं या जिन्हें जल्दी गुस्सा आता है, टीचर को उन्हें डांटने के स्थान पर उनसे प्यार से अलग बात करनी चाहिए ताकि उनके गुस्से के कारण को जाना जा सके।
इसी प्रकार माता-पिता का वास्ता बच्चों से अधिक रहता है। उन्हें विश्वास दिलाना चाहिए कि हम आपके गुस्से को दूर करने में उनकी मदद कर सकते हैं। उनसे प्यारपूर्वक बात कर उन स्थितियों में स्वयं को कैसे उबारा जाए या रिएक्ट किया जाए, बताना चाहिए ताकि उन बातों पर अमल कर वे अपना गुस्सा कंट्रोल कर सकें।
शिष्टाचार सिखाएं
बचपन से ही बच्चों को सामाजिक व्यवहार की शिक्षा दें, स्वयं भी उन बातों पर चलें, दूसरों के सामने या बातों पर कैसे रिएक्ट किया जाए, सही तरीके से समझाएं। कैसे दूसरों की छोटी मोटी बातों को दिल से न लगाया जाए, दूसरों के खराब व्यवहार को कैसे नजरअंदाज किया जाए और अपने धैर्य को कैसे बरकरार रखा जाए। स्वयं भी इन बातों को अपने जीवन में पूरी तरह उतारें ताकि उन्हें यह न लगे कि माता-पिता खुद तो जल्दी धैर्य खोते हैं और हमें भाषण देते हैं। ऐसे में उन पर प्रभाव सही नहीं पड़ेगा।
पैरंटस को चाहिए कि बच्चों के क्र ोध को कैसे काबू करना है, इस बात को प्यार से समझाएं और उन्हें इसका अभ्यस्त भी बनाएं। उन्हें बताएं कि क्र ोध आने पर ठंडा पानी पिएं। जिस कारण से क्र ोध आ रहा है, वहां से कहीं और चले जाएं या अपने आपको किसी काम में लगा लें ताकि ध्यान वहां से हट जाए, म्यूजिक सुनें आदि। ऐसे बच्चों को योगासन सिखाएं, लाफ्टर क्लब ले जाएं, थोड़ा इनडोर गेम्स उनके साथ खेलें ताकि उनकी एनर्जी सही रूप से प्रयोग हो सके।
बच्चों के साथ बिताएं क्वालिटी टाइम
अधिकतर बच्चों के क्र ोधी स्वभाव का कारण स्वयं माता-पिता भी होते हैं। वे बच्चों के सामने आपस में छोटी छोटी बात पर बहस करते हैं या क्र ोध आने पर एक दूसरे पर चिल्लाते है। बच्चों पर भी थोड़ी गलती होने पर, पेपरों में नंबर ठीक न आने पर, पढ़ाई न करने पर, अधिक समय खेलने पर वह बच्चों पर चिल्लाते हैं।
ऐसे में बच्चे सोचते हैं कि कुछ भी अपनी मर्जी चलानी हो, सामने वाला न मान रहा हो तो चिल्ला कर अपनी बात मनवानी चाहिए। इसी तरह वह क्र ोधित होना सीख जाते हैं। माता-पिता को चाहिए कि न तो एक दूसरे के लिए आक्र ामक या गुस्सैल बनें, न ही बच्चों पर और न ही बाहर किसी पर गुस्सा करें, क्योंकि आक्र ामक और गुस्सैल रवैय्या बच्चों को गलत संदेश देता है जिसका अनुकरण वह शीघ्रता से करते हैं।
व्यायाम, आउटडोर गेम हैं जरूरी
बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रि य बनाएं ताकि खाली दिमाग शैतान का घर न बने। उन्हें शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रेरित करते रहें जैसे शाम को पार्क में दौड़ने को कहें, साइकिल चलवाएं, बॉल कैच करने वाली गेम खिलाएं, रस्सा कूदना, बैंडमिंटन, बास्केट बाल, तैराकी आयु अनुसार उनसे क्रियाएं करवाते रहें।
एक शोध के अनुसार शारीरिक रूप से एक्टिव बच्चे तनावग्रस्त कम रहते हैं, गुस्सा कम आता है और नकारात्मक सोच भी कम रहती है। दूसरी ओर जो बच्चे टीवी अधिक देखते हैं, वीडियो गेम्स खेलते हैं या कंप्यूटर पर चैटिंग, सर्चिंग या सोशल साइट पर अधिक रहते हैं वे स्वभाव में गुस्सैल, चिड़चिड़े अधिक होते हैं।
बच्चों की न करें पिटाई
अधिकतर माता-पिता की सोच होती है कि बच्चे अधिक लाड़ प्यार से बिगड़ते हैं। उन्हें सुधारने के लिए उन्हें मारना जरूरी है। यह सोच बिल्कुल गलत है। मार खाने से बच्चे ढीठ हो जाते हैं। इस प्रकार आपका बच्चा भावनात्मक स्तर पर आपसे दूर हो जाएगा और स्वभाव भी उसका चिड़चिड़ा हो जाएगा। इसलिए बच्चे को उसकी गलती पर प्यार से समझाएं।
बस हाथ उठाने का डरावा रखें, मारें नहीं। कभी-कभी हल्का सा एक थप्पड़ डराने हेतु मार सकते हैं। रूटीन में इसे न अपनाएं।
– नीतू गुप्ता
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