satsangi experiences of gurmeet ram rahim singh ji Sachi Shiksha Hindi

पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत

सत्संगियों के अनुभव

प्रेमी सुखदेव सिंह इन्सां पुत्र श्री सुरजीत सिंह गांव भंगचिड़ी तहसील व जिला मुक्तसर साहिब (पंजाब)।

20 सितम्बर 2005 की बात है। मैं सुबह चार बजे सच कहूँ प्रैस सरसा से अखबारों वाली गाड़Þी लेकर चला। उस दिन प्रैस-मशीन खराब होने के कारण अखबार कुछ देरी से छपा था। मैं चाहता था कि अखबार निश्चित समय पर पहुँचे। गाड़ी 110 किलोमीटर की स्पीड से जा रही थी। जब मैं खुबह छ: बजे मुक्तसर से तीन किलोमीटर आगे कोटकपूरा रोड़ पर जा रहा था तो किसी किसान ने गऊओं के झुंड को लाठी से अपने मक्की के खेत में से निकाल दिया। वह सड़क पर मेरे सामने आ गई। गऊओं को बचाने के लिए मैंने गाड़ी को एकदम कट मारा।

गौयें तो बच गई, परन्तु एक गाय का सींग गाड़ी के शीशे में लगने से शीशा टूट कर मेरे मुँह पर लगा। गाड़ी बेकाबू होकर सड़क की दायी तरफ कीकर के वृक्ष से जा टकराई। जब गाड़ी उछल कर पलटने लगी तो मैंने अपने सतगुरु पूज्य हजूर पिता जी(संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) के चरणों में विनती की कि पिता जी, बचाओ। तो गाड़ी सीधी ही नीचे गिर पड़ी। मैं गाड़ी बंद करके बाहर निकला तो धान के खेत की मेंड पर लगी काँटेदार तारों पर गिर गया। जब मैं उठने लगा तो मुझसे उठा नहीं गया। मुझे ऐसे लगा कि मेरी टाँगें टूट गई हैं। मैं बाजुओं के सहारे घिसट कर सड़क किनारे तक आ गया। एक मजदूर तथा एक सामने ढाबे वाला लड़का भाग कर आए।

मेरे आग्रह पर उन्होंने मेरा चारपाई से ढो (सहारा) लगवा दिया। मैंने लड़के मनदीप सिंह को फोन लगाया। उन्होंने फिर डा. मलकीत सिंह मुक्तसर को फोन किया। उसने शाह सतनाम जी ग्रीन एक वैल्फेयर फोर्स के सेवादारों को फोन घुमा दिया कि सच कहूँ अखबार ले जा रहे सुखदेव सिंह का ऐक्सीडैन्ट हो गया है। तो बीस-पच्चीस सेवादार कुछ ही समय में वहाँ पहुँच गए। सेवादार कुछ ही मिन्टों में मेरा घुटना बाँध कर, राजकुमार ग्रोवर की गाड़ी में डालकर डॉ. जैन के हस्पताल में ले गए। मेरे होंठ, आँखों व सिर पर जो चोटें थी, उन पर टाँके लगा दिए गए। जब दाएँ घुटने का एक्सरे किया तो पता चला कि चपनी के बारह टुकड़े हो गए। डॉक्टर कहने लगा कि चपनी तो निकालनी पड़ेगी, अब पलास्टिक की चपनी पड़ेगी और उसकी कोई गारन्टी भी नहीं है। परन्तु खर्च लाख रुपया आएगा।

तो गुरमेल सिंह पटवारी कहने लगा कि तुझे डा. हरदास सिंह के पास अमृतसर साहिब ले चलते हैं। मैंने कहा कि मुझे डेरे में ले चलो। वह कहने लगा कि डेरे में इतना बड़ा हस्पताल नहीं है। मैंने कहा कि पूज्य हजूर पिता जी जहां हुक्म करेंगे, अपने वही चलेंगे। सेवादारों ने कई डाक्टरों की राय ली तो डॉ. बोहड सिंह कहने लगा कि अब यह काम करने के योग्य नहीं रहेगा। मैंने सेवादारों क ो जोर देकर कहा कि मुझे डेरे में ही ले चलो। हम डेरे (डेरा सच्चा सौदा सरसा) में पहुँच गए। मेरे लड़के और एक जिम्मेवार सेवादार ने पूज्य हजूर पिता जी(डॉ. एमएसजी) को मेरे बारे सारी बात बताई और ईलाज के लिए अर्ज की। पूज्य पिता जी ने वचन किए कि डॉ. प्रेम के पास मोगा ले जाओ और मुझे अपनी दया-दृष्टि का प्रशाद भी दिया। मेरे द्वारा विनती करने पर शाम की मजलिस के समय मुझे रिक्शा में डालकर पूज्य हजूर पिता जी के दर्शन करने के लिए सचखण्ड हाल में लाया गया।

जब पिता जी मजलिस के बाद सचखण्ड हाल में मेरे पास आए तो मैंने पिता जी को सजदा किया और सारी बात बताई और अर्ज की कि मैं आप जी की मेहर से ही बचा हूँ तो पिता जी ने वचन किए, ‘बचाने वाला तो भगवान है। बेटा तू फिक्र नहीं करना। हमें तेरा फिक्र है।’ इतने वचन करके पिता जी ने मुझे दोबारा प्रशाद दिया। जिम्मेवार सेवादार को वचन किए कि भाई डॉक्टर से बात की है? तो सेवादार ने कहा कि बात हो गई है और सेवादार ने मुझे कहा कि जल्दी से जल्दी मोगे पहुँच जाओ। दूसरे दिन मुझे मोगा ले जाया गया। जब मेरे घुटने का एक्सरे किया गया तो डॉक्टर हैरान रह गया कि इसमें चपनी के पाँच टुकड़े आए हैं जब कि पहले एकसरे में बारह थे।

मैंने कहा कि यह सतगुरु की रहमत है, बारह से पाँच टुकड़े बन गए। डॉक्टर ने अमृतसर साहिब से भी एक डॉक्टर बुला कर मेरा अपरेशन कर दिया। जब मेरी छुट्टी के बारे पूछा गया तो डॉक्टर ने कहा कि कम से कम छ: महीने लगेंगे। पाँचवें दिन जब डॉक्टर बाहर गया हुआ था, मैंने खुद में महसूस किया कि मैं वाकर के सहारे चल सकता हूँ। मैं अपने मालिक सतगुरु को याद करके वाकर के सहारे चलने लगा तथा हस्पताल में चक्कर लगाए। छठे दिन सुबह डॉक्टर मेरे पास आए और दवाई लिखने लगे। मैंने कहा कि डॉक्टर सािहब, मुझे छुट्टी दे दो। तो डॉक्टर ने कहा कि तुझे बताया तो है कि छ: महीने लगेंगे। तो मैंने कहा कि डॉक्टर साहिब, मैं कल सारा दिन वाकर से चलता रहा हूँ। मैं ठीक महसूस करता हूँ। तो डॉक्टर हैरान हो गया कि यह कैसे हो सकता है! कम्पाऊडर डर गए। नर्स ने डॉक्टर को कहा कि सर, हमने इसे रोका था कि न चल, परन्तु यह रुका नहीं, चलता रहा।

तो डॉक्टर ने हाथ जोड़ कर मालिक का शुक्राना किया कि मेरा तो एक बहाना है। यह तो मालिक-सतगुरु ने स्वयं ही ठीक किया है। फिर पलस्तर करके मुझे छुट्टी दे दी गई। मैं डॉक्टर को बारह हजार रुपये बिल देकर घर आ गया। फिर नौवें दिन डॉक्टर मलकीत सिंह से टांके कटवाए और ग्यारवें दिन सतगुरु का नारा(धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा) लगा कर पलस्तर उतार दिया। और अठारहवें दिन श्री मुक्तसर साहिब नामचर्चा-घर में खुद गाड़ी चला कर चला गया और इक्कतीवें दिन चण्डीगढ़ में रैली में पैदल मार्च किया। मैं पूज्य हजूर पिता डॉ. एमएसजी की दया मेहर से दोबारा अखबार पहुँचाने की ड्यूटी ले ली। मैं अपने सतगुरु के उपकारों का बदला कैसे भी नहीं चुका सकता, बस धन्य धन्य ही करता हूं।

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