कृषि क्षेत्र में आधुनिक बदलाव का दौर देखने को मिल रहा है। परंपरागत खेती के साथ-साथ किसान आधुनिक खेती की
ओर भी आकर्षित होने लगे हैं। इसका एक ताजा उदाहरण देखने को मिला है गांव खैरा करंडी (पंजाब) में, जहां एक समृद्ध किसान मनीराम (सरदूलगढ़ निवासी) ने फसली चक्र से बाहर निकलते हुए पौषक एवं औषधीय गुणों से भरपूर अंजीर की खेती शुरू करने की पहल की है। शहद की मानिंद मिट्ठे अंजीर के फलों की यह खेती क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है।
फसली चक्र को खत्म करने के साथ-साथ यह खेती प्रति वर्ष एक एकड़ में 6 लाख रूपये से ज्यादा का मुनाफा दे सकती है। किसान मनीराम ने शुरूआती चरण में एक एकड़ का प्लांट तैयार किया, जिसमें 400 पौधे लगाए गए हैं। इस खेती का दायरा अभी एक एकड़ में बढ़ाने की योजना है। करीब डेढ़ वर्ष पूर्व शुरू की गई अंजीर की यह खेती अब फलदार पौधों का रूप ले चुकी है। अंजीर के पौधे की उम्र 25 वर्ष बताई जा रही है। यानि एक बार पौधा लगाने के बाद आगामी दो दशक तक दोबारा पौधा रोपित करने की आवश्यता नहीं होगी। किसान के लिए यह फसल दोहरा लाभकारी साबित हो सकती है। एक बार-बार फसल बोने का झंझट नहीं होगा, दूसरा मुनाफा भी कई गुणा ज्यादा होगा।
- हर सीजन में प्रत्येक पौधा देता है 25 किलो उत्पादन किसान मनीराम के भाई प्राण जैन ने बताया कि जयपुर की कृषि मार्केटिंग कम्पनी की मदद से यह प्लांट तैयार किया गया है। कंपनी का दावा है कि अंजीर का एक पौधा एक सीजन में 25 से 30 किलोग्राम उत्पादन दे देता है। कंपनी ने किसान मनीराम के साथ करार किया है कि अंजीर के खेती का जो शुरूआती उत्पादन यानि प्रत्येक पौधे का जो पहला 5 किलोग्राम उत्पादन होगा उसको वह 300 रूपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदेगी। बाकि उत्पादन पर 95 रूपये प्रतिकिलो का भाव तय हुआ है। इसका हर फल 80 ग्राम तक वजनी होता है और प्रत्येक पौधे से एक सीजन में 25 से 30 किलोग्राम फल का उत्पादन हो सकता है। हफ्ते में दो बार फल तुड़ाई की जाती है। एक अनुमान के अनुसार, यदि प्रत्येक पौधे के हिसाब से 5 किलोग्राम उत्पादन मान लिया जाए तो यह औसतन दो क्विंटल उत्पादन हुआ। जिसको कंपनी तीन सौ रूपये के हिसाब से खरीदेगी, तो यह 6 लाख रूपये का मुनाफा हुआ।
- 50 डिग्री तापमान को भी झेल सकता है यह पौधा किसान प्राण जैन ने बताया कि अंजीर की फसल 5 डिग्री सेल्सियस से लेकर 50 डिग्री तापमान तक गर्मी सहन करने की क्षमता रखती है। इसके लिए जमीन का ज्यादा ताकतवर होना कोई जरूरी नहीं। यह शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्र में भी कारगर साबित होती है। उन्होंने बताया कि खेत में पौधों के बीच में 10 गुणा 10 फुट की दूरी होनी चाहिए। प्रति एकड़ में करीब 400 पौधे लगाए जाते हैं। अंजीर का पौधा समान्यत: 1 वर्ष के अंतराल में पैदावार देता शुरू कर देता है। इसी कारण यह फायदेमंद है। कंपनी का दावा है कि इसकी फसल का समय वर्ष में दो बार होता है (यह पौधारोपण पर निर्भर करता है कि पौधारोपण किस समय में हुआ है)। यह पौधा एक बार अक्तूबर-नवंबर में दूसरी बार मार्च-अप्रैल में फल देता है। फरवरी में इन पौधों में फुटाव शुरू हो जाता है जिसके बाद मार्च में फल आना शुरू हो जाता है। नवंबर में इन पौधों की छंगाई कर दी जाती है ताकि आगामी फुटाव में पौधे की ज्यादा बढ़ोतरी हो सके। किसान के अनुसार, कंपनी का यह भी दावा है कि इसकी 1 एकड़ की पैदावार लगभग 4 टन से लेकर 6 टन तक होती है। मिश्रित रूप से एक पौधा 200 से ढाई सौ फल देता है।
- कम सिंचाई में भी अधिक उत्पादन फसल की देखरेख करने वाले सुलतान सिंह का कहना है कि अंजीर की फसल को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। इसका एक कारण यह भी है कि खेत में अंजीर के पौधों के बीच की दूरी काफी होती है, जिससे पौधों के लिए विशेष तौर पर नाली बना दी जाती है। हफ्ते में एक बार सिंचाई काफी है। यह पौधा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वैसे ही अपनी छांव तले नमी को संजोकर रखने लगता है। इस फसल पर सर्दी का भी ज्यादा प्रभाव नहीं होता, क्योंकि नवम्बर में इन पौधों की छंगाई शुरू हो जाती है, जिसके बाद फरवरी में इन पौधों की बढ़वार शुरू होती है।
- निमोटोड बीमारी कर सकती है हमला किसान मनीराम ने बताया कि अंजीर की फसल 6 माह के बाद ही उत्पादन देना शुरू कर देती है। हालांकि शुरूआती चरण में फल आकार व क्वालिटी के अनुरूप पूरा आकार नहीं ले पाता। इसलिए कंपनी इसको लेने से गुरेज करती है। उन्होेंने बताया कि इस फसल मेंं हालांकि बहुत कम बीमारियों का प्रकोप होता है, लेकिन फिर भी इसमें निमोटोड नामक बीमारी आने का खतरा बना रहता है। कंपनी के डाक्टरों की टीम समय-समय पर फसल का निरीक्षण करती रहती है। जैसे ही किसी भी बीमारी के लक्षण मिलते हैं तो तुरंत उसकी रोकथाम के उपाय शुरू कर दिए जाते हैं।
पौष्टिकता से भरपूर है अंजीर
अंजीर स्वास्थ्य के नजरीये से दोहरे महत्व की फसल है। अंजीर को ताजा व सुखाकर दोनों प्रकार से काम में लिया
जाता है। यह बहुत ही पौष्टिक व औषधीय गुणों वाला पौधा है, जिसमें मुख्यत प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन-ए
शामिल होते हैं। इसकी खेती मुख्य तौर पर एशिया के शुष्क और अर्धशुष्क दोनों स्थानों पर की जाती है। यह कम
फैलने वाला व अधिक उत्पादन देने वाला पर्णपाती पौधा होता है। यह रेतीली, बाढ़ की मिट्टी व मिश्रित मिट्टी में
अच्छी तरह से विकसित होता है।
फसली चक्र से बाहर निकलें किसान भाई: मनीराम
किसान मनीराम व प्राणजैन ने किसान भाइयों को सुझाव दिया है कि वे फसली चक्र से बाहर निकलें। किसानों में
अकसर ऐसी फसलों को लेकर वैचारिक मतभेद रहता है कि कहीं इन फसल से उन्हें नुकसान न उठाना पड़ जाए।
लेकिन इस भ्रम को तोड़ना होगा। फसली चक्र में जहां जमीन की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है, वहीं उन फसलों पर
आने वाला खर्च भी दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है, जिससे औसतन लाभ में कमी आ रही है। प्राणजैन ने कहा कि ऐसी
फलदार फसल किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हो सकती हैं, बशर्ते पहले वे इन फसलों के बारे में पूरी
जानकारी हासिल करें।
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