Coarse grain cultivation

हरदीप सिंह ने मोटे अनाज की खेती से कमाया मोटा मुनाफा -सुखजीत मान, मानसा। Coarse grain cultivation

कोधरा, कुटकी, कंगणी, रागी व नवांक ये नाम वर्तमान युवा पीढ़ी के लिए बेशक अपरिचित हैं, किंतु बुजुर्गों के लिए यह वरदान और तन्दुरुस्ती का खजाना रहे हैं। स्वास्थ्य के प्रति सजग लोग जिन खाद्यानों को अब ‘मोटे अनाज’ या ‘मिलेट’ कहकर खरीदते हैं, वो कोधरा, कुटकी व कंगनी आदि के ही नवीनतम नाम हैं। अब इन पुरातन विरासती फसलों की खेती को बढ़ावा दे रहा है गाँव जटाना खुर्द की माटी में पला-बढ़ा हरदीप सिंह जटाना।

डबल एमए, बीएड तक शिक्षित यह किसान मोटे अनाज की खेती ही नहीं कर रहा, बल्कि इसकी मार्केटिंग का जिम्मा भी खुद संभाल रहा है, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति काफी सुदृढ़ हुई है। वर्तमान में ख्याला कलां में रहने वाले प्रगतिशील किसान हरदीप सिंह जटाना ने बताया कि उसने साल 2018 में ‘वीट ग्रास’ (गेहूँ के जूस) से शुरूआत की थी। वीट ग्रास के अच्छे परिणाम मिलने से जब लोगों को अच्छी सेहत का अहसास होने लगा तो उसने स्वास्थ्यवर्धक व घरेलू फसलों को अपनाया। इसके साथ ही उसने गन्ना, कोधरा, कुटकी, कंगणी, रागी, मूंगफली, काली व पीली सरसों, चने व मोठ की खेती शुरू की।

शुरूआती परेशानी ने मजबूत बनाया, तभी मिली सफलता

इन फसलों की उपज के बाद इनसे प्रोडक्ट (उत्पाद) तैयार करने में शुरू-शुरू में थोड़ी परेशानी आई, लेकिन फिर इसका हल ढूँढकर प्रोडक्ट भी खुद तैयार किए, जो गांव ख्याला कलां के ‘मलवई स्टोर’ पर बेचे जा रहे हैं। इसके साथ ही एक ही समय में कृषि भूमि से कई फसलें लेने का अनुभव भी हासिल किया, जैसे गन्ने की काश्त के साथ-साथ उसमें मिर्च व हल्दी की बिजाई की, जिसमें सफलता मिली। इस खेती व मार्केटिंग आदि के जरिए करीब दो दर्जन लोगों को रोजगार मिला हुआ है। जटाना ने बताया कि खेती उनको विरासत में मिली है। इसलिए यह छोड़ी नहीं जा सकती, बल्कि शौंक से करते हैं। वैसे योग्यता के आधार पर वह गाँव ख्याला कलां में अपना प्राईवेट स्कूल व गांव माखा में ईटीटी कॉलेज भी साथ-साथ चला रहे हैं।

गुड़ बैंक’ से उपभोक्ताओं को दोहरा लाभ

हरदीप सिंह ने बताया कि उनकी तरफ से पारंपरिक तरीके से तैयार किए गए गुड़ व शक्कर की विदेशों में भी बिक्री होती है। अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, आॅस्ट्रेलिया आदि देशों में जो पंजाबी रहते हैं, वह गुड़-शक्कर की खरीद करते हैं। कुछ लोग भारत आने पर खुद खरीदकर ले जाते हैं व अन्यों की मांग पर विदेशों में भेज दिया जाता है। उन्होंने ‘गुड़ बैंक’ भी बनाया हुआ है, जहां लोग एक बार इकट्ठा गुड़ खरीदकर जमा करवा देते हैं और बाद में जरूरत अनुसार लेकर जाते हैं। हरदीप सिंह ने विदेश जाने को आमदा युवाओं को सलाह दी कि लाखों रुपए खर्च कर विदेशों में जाने की बजाय अपने ही देश व प्रदेश में रहकर कृषि के साथ-साथ कई तरह के लघु उद्योग शुरू किए जा सकते हैं, जिससे सिर्फ मुनाफा ही नहीं मिलेगा, बल्कि आप लोगों को रोजगार देने के काबिल भी बनेंगे।