ऐतिहासिक नगर बीकानेर
राजस्थान की भूमि-सप्तरंगी रंगों में रंगी अपनी विविधता से सांस्कृतिक जगत को महक प्रदान करती है। आन-बान-शान की यह धरती वीर प्रसूता रही है। संस्कृति की सप्तरंगी किरणों का प्रकाश यहां के जन-जन को प्रकाशित करता रहा है। ’पधारो म्हारे देश का‘ उद्घोष करती यह भूमि आगन्तुकों को रोमांचित कर देती है। पूरे राजस्थान के नगर और गांव, कस्बा हो या देहात, सभी में विलक्षण संस्कृति के चिन्ह देखने को मिलते हैं।
राजस्थान का बीकानेर नगर भी अपनी अलहदा साख रखता है। यहां के लकड़ी तथा पत्थरों पर तराशी गई सूक्ष्म नक्काशी जहां पर्यटकों को आनंदित कर देती है वहीं मधुर संगीत, कलात्मक हवेलियां, वैभवपूर्ण गढ़ लोकलोचनों को अपनी ओर आकर्षित करने से नहीं चूकते। यहां की मथेरण कला उस्ता कला, हर किसी को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।
राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में बसे इस शहर की स्थापना सन् 1488 में हुई थी। नेरा नामक व्यक्ति का यहां के सुनसान इलाके पर पहले कब्जा था। उसने इस शर्त पर इस स्थान का स्वामित्व छोड़ दिया कि शहर का जो नाम होगा, उसके पीछे उसका भी नाम जुड़ेगा। जोधपुर नरेश राव जोधा के पुत्र राव बीका ने यहां शहर बसाने का बीड़ा उठाया था, फलत: उसके नाम के पीछे नेरा शब्द लगाना पड़ा। कालान्तर में यह शब्द बीकानेरा से बीकानेर हो गया।
रेल एवम् सड़क मार्ग दोनों ही यातायात के साधनों से यह देश से सीधा जुड़ा हुआ है। धर्मशालाएं, होटल तथा खाने-पीने के उत्तम भोजनालयों की यहां कोई कमी नहीं है। नगर के आराध्यदेव भगवान लक्ष्मीनाथ को मानने वाले यहां के निवासी लहसुन-प्याज से भी दूर भागते नजर आते हैं लेकिन उनका प्रतिशत कम है।
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बीकानेर के दर्शनीय स्थल
कोडमदेसर:-
बीकानेर नगर से लगभग 24 किमी. दूर पश्चिम दिशा में कोडमदेसर नामक गांव स्थित है जहां एक बड़ा जलाशय है। जलाशय के तट पर भैरूजी का मंदिर है। संगमरमर से निर्मित इस मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर विग्रह के ऊपर छत नहीं है।
खुले प्रांगण में स्थित भगवान भैरूजी का विशालकाय विग्रह है। इस विग्रह को बीकानेर के प्रथम शासक राव बीका मण्डोर से लाये थे। राव बीका ने ही कोडमदेसर में इस विग्रह की स्थापना की थी। नगर के निवासी यहां जात- झड़ूला करने के लिए बड़ी संख्या में आते हैं।
गजनेर पैलेस/अभयारण्य:-
यह पिकनिक की दृष्टि से सुन्दर स्थान है। बीकानेर नगर से दक्षिण पश्चिम में स्थित यह स्थान बीकानेर से 32 किमी. दूर है। भव्य महल के अलावा यहां सुन्दर झील भी है जो विशालकाय आकार में है। इसी स्थान के पास में ही अभयारण्य है जहां दूर-दूर से पक्षी आते हैं। साथ ही अभयारण्य में नील गाय, चिंकारा, काले मृग, जंगली सुअर, शाही रेतीली तितरों के झुण्ड आदि देखने योग्य हैं।
कोलायत:-
यह हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है जो जैसलमेर मार्ग पर है। यह नगर से 55 किमी. दूर स्थित है। तीर्थस्थल पर लम्बी-चौड़ी झील है। साथ ही सांख्य दर्शन के प्रणेता भगवान कपिल का विग्रह स्थित है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां बड़ा मेला लगता है जो पांच दिन तक लगातार चलता है। उस दिन दीप दान का पर्वोत्सव मनाया जाता है जो देखने योग्य होता है। बीकानेर नगर तथा आस-पास के लोग मरे हुए सनातन मतावलम्बी की राख यहां डालते हैं।
देशनोक:-
बीकानेर नगर से 30 किमी. दूर देशनोक गांव जहां करणी माता का मंदिर है। इस मंदिर की अनूठी विशेषता यह कि यहां पर असंख्य चूहे यहां विचरण करते हुए दिखाई देते हैं। इन चूहों को खाने के लिये सामग्री श्रद्धालु बड़े चाव से देते हैं।
मंदिर की दूसरी विशेषता यह है कि इसका सिंहद्वार बहुत ही भव्य है। संगमरमर प्रस्तर पर उत्कीर्ण की गई सूक्ष्मतम नक्काशी देखने योग्य है। देशी, विदेशी दोनों ही प्रकार के पर्यटक यहां शूटिंग करते हुए नजर आयेंगे।
राष्टÑीय उष्टÑ अनुसंधान केंद्र:-
बीकानेर नगर से 8 किमी. दूर जोड़बीड़ गांव में स्थित यह देश का अकेला उष्टÑ अनुसंधान केंद्र है जो दो हजार एकड़ भूमि पर फैला है। यहां ऊंट से संबंधित अनुसंधान व शोध के कार्य किये जा रहे हैं। ऊँट के दूध से विभिन्न प्रकार के उत्पाद यहां बनाये जाते हैं। ऊँट का दूध किन-किन रोगों में लाभदायी होता है, इस विषय में यहां मार्गदर्शन किया जाता है।
यहां ऊँट की सवारी भी पर्यटकों के लिए सुलभ है। ऊँट के संदर्भ में ही बीकानेर में प्रतिवर्ष जनवरी माह में कैमल फेस्टिवल मनाया जाता है जिसमें ऊँटों के करतब, ऊँट दौड़, ऊँटों का शृंगार, ऊँट दुहना सहित अन्य कई क्र ीड़ाएं आयोजित की जाती हैं जिनको बड़े चाव से विदेशी पर्यटक एवम् देशी पर्यटक देखते हैं।
जूनागढ़ का किला:-
यह बीकानेर का प्रमुख दर्शनीय स्थल है जिसका निर्माण राजा रायसिंह ने सन् 1593 में करवाया था। स्थापत्य कला, मूर्ति कला, वास्तु कला, नक्काशी कला का नायाब नमूना है। यहां ढुलमेरा के लाल पत्थरों एवम् मकराना के संगमरमर के पत्थरों से बने कई महल देखने योग्य हैं।
किले के चारों तरफ लम्बी-चौड़ी तथा गहरी खाई भी है। किले के भीतर सुनहरी कलम का जमकर उपयोग हुआ है। अपने फन में माहिर मथेरण एवम् उस्ता कलाकारों ने इस किले की शोभा को द्विगुणित कर दिया। पत्थर पर की गई नक्काशी एवम् कांच का कार्य यहां देखते ही बनता है। यह किला सदैव अजेय रहा है। इस किले के चारों तरफ मजबूत परकोटा है तथा कई बुर्ज हैं।
लक्ष्मीनारायण मंदिर:-
यह बीकानेर का सुप्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राव लूणकरण ने करवाया था। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। संगमरमर से निर्मित इस मंदिर की छत भी देखने योग्य है।
जब हम मंदिर के सभा मंडप में प्रवेश करते हैं तो गर्भगृह की ओर दृष्टि डालने पर मन को सुखद शांति की अनुभूति होती है। हमें ऐसा लगता है कि हमें काफी देर तक यहां ठहरना चाहिए। मंदिर परिसर में छोटे-बड़े दूसरे और भी मंदिर हैं। इसके अलावा संपूर्ण लक्ष्मीनाथ परिक्षेत्र में उद्यान, झूले आदि भी हैं। महत्त्वपूर्ण तिथियों तथा पर्वों पर यहां लोगों का तांता लगा रहता है।
उक्त स्थानों के अलावा बीकाजी की टेकरी, लालगढ़ पैलेस, गंगा गोल्डन जुबली संग्रहालय, पब्लिक पार्क, रतन बिहारी मंदिर, भाण्डासर जैन मंदिर, नागणेची जी का मंदिर, देवीकुण्ड सागर, शिवबाड़ी आदि अन्य दर्शनीय स्थल हैं जिन्हें दो-तीन दिन की यात्र के दौरान देखा जा सकता है।
-पवन कुमार कल्ला