रोगों से लड़ने में खुद सक्षम है मानव शरीर -नेचुरोपैथी चिकित्सा -Naturopathy treatment

मानव शरीर खुद रोगों से लड़ने में सक्षम है, किंतु इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों से समीपता आवश्यक है। नेचुरोपैथी एक ऐसी चिकित्सा प्रणाली है जो शरीर की अपनी उपचार प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करती है।

सच्ची शिक्षा’ की ओर से नेच्युरोपैथी विषय पर चिकित्सक जितेंद्र सिंह इन्सां (बी.ए.एम.एस.(ए.एम.) से विस्तृत चर्चा की गई।

डेरा सच्चा सौदा के शाह सतनाम जी मल्टी स्पेशिलिटी अस्पताल में एमएसजी नेच्युरोपैथी सेंटर एक प्राकृतिक चिकित्सा अस्पताल है। यह अस्पताल प्राकृतिक चिकित्सा जैसे षटकर्म आदि पद्धतियों में विशेषज्ञता रखता है।

इसमें इनडोर की सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिनमें 108 बेड है। यह क्षेत्र का एकमात्र निजी प्राकृतिक अस्पताल है, जिसमें प्रशिक्षित विशेषज्ञ डॉक्टर और पंचकर्म चिकित्सक की सेवाएं उपलब्ध हैं।

बातचीत के दौरान डॉ. जितेन्द्र इन्सां ने बताया कि नैचुरोपैथी यानि प्राकृतिक चिकित्सा उपचार के लिए पंच तत्वों आकाश, जल, अग्नि, वायु और पृथ्वी को आधार मानकर चिकित्सा पूरी की जाती है। इसमें आहार व इन्सान की जीवनशैली में बदलाव बड़ा अहम विषय है। उन्होंने बताया कि नैचुरोपैथी और भारतीय प्राचीन दर्शन के अनुसार, मानव शरीर की रचना प्रकृति ने की है। प्रकृति ने इस सृष्टि और शरीर को बनाने के लिए पांच महाभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश (आकाश तत्व) का उपयोग किया है। ये पांचों तत्व केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि शरीर की कार्यप्रणाली में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इसमें तीन चीजें अहम होती हैं जैसे कफ, वात और पित्त।

आइये, इनको विस्तार से समझते हैं:-

कफ, जो शरीर को मजबूती और स्थिरता देता है

डॉ. इन्सां ने बताया कि कफ शरीर के दिखाई देने वाले और भौतिक भागों का प्रतिनिधित्व करता है। यह पृथ्वी और जल तत्व से मिलकर बना होता है, जो त्वचा, मांसपेशियां, हड्डियां, ऊतक आदि को मजबूत बनाता है। कफ से शरीर को मजबूती, स्थिरता और चिकनाई हासिल होती है।

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वात, जो रक्त संचार को सुचारू बनता है

‘वात’ वायु और आकाश तत्व से मिलकर बना होता है, जो हमारे शरीर की गतिविधियों और गति को नियंत्रित करता है। शरीर में सांस लेना, रक्त का संचार, शारीरिक गतिविधियां, तंत्रिका संदेश, भावनाएं और विचार सभी वात के द्वारा ही नियंत्रित किए जाते हैं। यह शरीर में लचीलापन और गति लाता है।

पित्त, जो पाचन को नियंत्रित करता है

यह अग्नि तत्व से बना है, जो शरीर की रूपांतरण और स्थिरता की प्रक्रिया को दर्शाता है। शरीर में पाचन, चयापचय, तापमान नियंत्रण और कोशिकाओं की ऊर्जा सब पित्त के नियंत्रण में होते हैं। बता दें कि शरीर में लगभग 120 ट्रिलियन कोशिकाओं की स्थिरता को भी अग्नि तत्व से जोड़ा जाता है। यह बुद्धि, स्पष्टता और रासायनिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है।

प्रकृति स्वयं शरीर के दोषों को संतुलित करती है

डॉ. जितेंद्र इन्सां बताते हैं कि नेचुरोपैथी प्रकृति की अद्भुत और स्वचालित प्रणाली है। प्रकृति इन्सान के शरीर के वात, पित्त, कफ दोषों को संतुलन में रखने के लिए ऋतु के अनुसार आवश्यक ऊर्जा पैदा करती है।

गर्मी के अनुसार बढ़ता है पित्त दोष

ग्रीष्म ऋतु में शरीर में अग्नि तत्व का प्रभाव बढ़ने लगता है, जिससे जलन, गर्मी, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं आने लगती हैं। किंतु प्रकृति ने इसका समाधान खुद ही निकाला है जैसे तरबूज, खरबूजा, खीरा, नारियल पानी, बेल आदि फल शरीर को ठंडक देने वाले हैं। इनके प्रयोग से पित्त दोष को संतुलित किया जा सकता है।

सर्द मौसम में कफ दोष का खतरा

शीत ऋतु में शरीर में कफ की शिकायत बढ़ जाती है, जिससे भारीपन, जुकाम, आलस्य, जमाव जैसी समस्याएं सामने आने लगती हैं। किंतु प्रकृति ने इस मौसम में भी बचाव के लिए कई ऐसी वस्तुएं इन्सान को प्रदान की हैं जिससे बेहतर तरीके से बचाव हो सकता है जैसे तिल, मूंगफली, सूखे मेवे, अदरक, हल्दी, गोंद इत्यादि। ये चीजें शरीर को गर्मी देती हैं और कफ को कम करने में कारगर साबित होती हैं।

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प्रकृति जो देती है, वही सर्वश्रेष्ठ औषधि

सूर्य की गर्मी शरीर में ऊर्जा, पाचन शक्ति और अग्नि तत्व को बढ़ाती है। वहीं चंद्रमा की शीतलता इन्सान के मन, विचार और नींद में शांति लाती है। यही कारण है कि चंद्रग्रहण और पूर्णिमा का प्रभाव इन्सान की मानसिकता पर पड़ता है।
इस प्रकार नेचुरोपैथी का मूल सिद्धांत है कि प्रकृति जो देती है, वही सबसे श्रेष्ठ औषधि है।